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संसद ही महिलाओं को हक देने को तैयार नहीं

संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का विधेयक 26 सालों से सदन में लटका, बहुमत के बावजूद भाजपा नहीं दिखा पा रही दरियादिली

PEN POINT DEHRADUN : महिला आरक्षण बिल को लेकर भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता शुक्रवार को जंतर मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठी है। के कविता की मांग है कि महिला आरक्षण बिल को मौजूदा संसद सत्र में पेश कर कानून की शक्ल दी जाए। के. चंद्रशेखर राव की नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति की वरिष्ठ नेता व विधायक के. कविता की ओर से महिला आरक्षण की मांग को लेकर इस एक दिवसीय भूख हड़ताल में आम आदमी पार्टी, टीएमसी समेत कई विपक्षी दल शामिल हो रहे हैं। 26 साल होने को है लेकिन महिलाओं को 33 फीसदी प्रतिनिधित्व का अधिकार देने वाले यह विधेयक कानून की शक्ल नहीं ले सका है। आखिरी बार करीब 13 साल पहले 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार की ओर से महिलाओं को आरक्षण देने के लिए बिल सदन में लाया। राज्यसभा में बिल तो पास हो गया लेकिन लोकसभा में जरूरी समर्थन न जुट पाने के कारण यह बिल अटक गया। करीब नौ सालों से बहुमत में सदन चला रही भाजपा महिलाओं को उनके हक देने को दरियादिली नहीं दिखा पा रही है। हर सत्र में कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इस अधिनियम को कानून की शक्ल देने की मांग करते रहे हैं लेकिन भाजपा ने महिला आरक्षण बिल को सदन में पेश करने की तक जेहमत नहीं उठाई है। आलम यह है कि सदन में उचित प्रतिनिधित्व पाने का महिलाओं का इंतजार लंबा होता जा रहा है। जैसे मौजूदा सरकार का रवैया है उसे देखकर लगता भी नहीं है कि भाजपा सरकार 2024 में आम चुनाव में जाने से पहले इस बिल को सदन में पेश करेगी क्योंकि मौजूदा विधि मंत्री किरण रिजीजू इस संबंध में अपने बयानों से सरकार की मंशा स्पष्ट कर चुके हैं।

क्या है महिला आरक्षण बिल
महिला आरक्षण बिल संविधान के 85 वें संशोधन का विधेयक है। इसके अंतर्गत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटों पर आरक्षण का प्रावधान रखा गया है। इसी 33 फीसदी में से एक तिहाई सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित की जानी है। जिस तरह से इस आरक्षण विधेयक को पिछले कई सालों से बार-बार पारित होने से रोका जा रहा है।  पहली बार इस विधेयक को देवगौड़ा के नेतृत्व वाली लोकसभा में 1996 में पेश किया गया था तब भी सत्तारूढ़ पक्ष में एक राय नहीं बन सकी थी। तब भी विधेयक के खिलाफ शरद यादव खड़े हो उठे। उनके बेहद तीखे लफ्जों में इस विधेयक की आलोचना की थी। 1998 में जब इस विधेयक को पेश करने के लिए तत्कालीन कानून मंत्री थंबी दुरै खड़े हुए थे तब संसद में इतना हंगामा हुआ और हाथापाई भी हुई उसके बाद उनके हाथ से विधेयक की प्रति को लेकर लोकसभा में ही फाड़ दिया गया था। महिला आरक्षण के लिए संविधान संशोधन 108 वां विधेयक राज्यसभा में पहले से पारित है। यह विधेयक 2010 में राज्यसभा में पारित हुआ, पर तब यह लोकसभा में पारित नहीं हो पाया था और 2014 में लोकसभा भंग होने के साथ ही यह रद्द हो गया था।  चूंकि राज्यसभा स्थायी सदन है, इसलिए यह बिल अभी जिंदा है। अब लोकसभा इसे पारित कर दे, तो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून बन जाएगा। 2019 के लोकसभा चुनाव नए कानून के तहत हो सकते हैं और नई लोकसभा में 33 फीसदी महिलाएं आ सकती हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए अब सिर्फ यही साल का समय बचा है।
हालांकि, भाजपा महिला आरक्षण बिल को लेकर साफ कर चुकी है कि जब तक सभी दलों का समर्थन नहीं होगा तब तक इसे पेश नहीं किया जाएगा जबकि कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही महिलाओं के आरक्षण को सुनिश्चित करते इस बिल के समर्थन में है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी बार बार अपने भाषणों में महिला आरक्षण बिल को तत्काल कानून की शक्ल देने की मांग करते रहे हैं। वैसे भी कांग्रेस ने 2010 में इसे राज्यसभा में पास करवाकर भाजपा पर एक तरह से इस मामले में बढ़त पा ली थी।
इसके अलावा कांग्रेस की सरकार 1993 में ही पंचायतों में महिला आरक्षण लागू कर चुकी है, जो अलग अलग राज्यों में अब पचास फीसद तक भी हो चुका है।

क्यों जरूरत है हमें महिला आरक्षण की

भारतीय संसद में महिलाओं का औसत देखें तो विश्व का औसत जहां 22.6 फीसदी है वहीं भारत में केवल 10 फीसद महिलाएं ही संसद में है जबकि राज्य विधानसभाओं में यह औसत और भी बुरा है। देश भर की राज्य विधानसभाओं में महिला का प्रतिनिधित्व 9 फीसद से भी कम है। आजादी के 75 साल बाद भी ऐसा मौका कभी नहीं आ सका कि सदन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से ज्यादा रहा हो। देश की आबादी में आधी हिस्सेदारी रखने वाली महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने में देश की सबसे बड़ी पंचायत हमेशा से फिसड्डी साबित रही है। लिहाजा इस असंतुलन को साधने के लिए ही महिलाओं को संसद व विधानसभा में 33 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव रखा गया था। इंटर पार्लियामेंटरी यूनियन की रिपोर्ट के मुताबिक, संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में दुनिया के 193 देशों में भारत का स्थान 148वां है। संसद में महिलाओं के आंकड़ें देखें तो रवांडा 63 फीसदी के स्तर पर हैं और नेपाल में 29.5 फीसदी महिलाएं संसद में हैं। चीन की संसद में 23.6 फीसदी महिला सांसद हैं। पाकिस्तान में भी संसद में 20.6 फीसदी महिला सांसद हैं। वहीं भारत का औसत केवल 12 फीसदी है। इस बिल के कानून की शक्ल लेने के बाद संसद और विधानसभाओं में महिलाआें की हिस्सेदारी 33 फीसदी तो कानूनी रूप से अनिवार्य हो जाएगी साथ ही संसद में विश्व के औसत से भी बेहतर प्रतिनिधित्व भारतीय संसद में महिलाओं को मिलेगा।

(रिपोर्ट – पंकज कुशवाल।)

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