जनता और खुद के बीच लगाई कंटीले तारों को नेहरू ने खुद उखाड़ फेंका
पुण्यतिथि विशेष
– देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की सुरक्षा के लिए जनसभा स्थल पर लगाए जाते थे कंटीले तार
– जनता और अपने बीच कंटीले तारों को देख फूट पड़ा था नेहरू का गुस्सा, मंच से उतरकर खुद हटाए तार
PEN POINT, DEHRADUN : देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू अपनी सुरक्षा के प्रति बेहद लापरवाह रहा करते थे। उनके मुख्य सुरक्षा अधिकारी रहे केएफ रूस्तमजी अपनी डायरी ‘आई वास नेहरू शेडो’ में कई ऐसी घटनाओं का जिक्र करते हैं जहां प्रधानमंत्री नेहरू की सुरक्षा संबंधी लापरवाहियों के चलते सुरक्षाकर्मियों की सांसे थम गई। तो नेहरू खुद के और जनता के बीच किसी भी तरह के बेरिकेड या अवरोध के खिलाफ थे। आजादी के बाद पं. जवाहर लाल नेहरू की लोकप्रियता आसमान पर थी। देश ही दुनिया भर में उनके प्रशंषकों की तादात बहुत बड़ी थी लेकिन इसके साथ ही कुछ लोग ऐसे भी थे जो नेहरू से खार खाए बैठे थे और नेहरू को नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार बैठे थे। अपनी किताब में केएफ रूस्तमजी जिक्र करते हैं कि विभाजन के बाद हिंदु महासभा नेहरू के खिलाफ खूब जहर उगल रही थी। यहां तक कि हिंदु महासभा एक और गोडसे को तैयार करने में जुटी थी जो महात्मा गांधी की तरह ही जवाहर लाल नेहरू की हत्या कर सके। इसके साथ ही विभाजन की मार सहने वाले कुछ लोग भी विभाजन के लिए नेहरू को जिम्मेदार समझते थे तो कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े कुछ नेताओं को भी जवाहर लाल नेहरू के जीवन के लिए खतरे के तौर पर देखा जाता था। खुफिया रिपोर्ट की माने तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोग भी नेहरू से नाराज थे लेकिन वह महात्मा गांधी की तर्ज पर किसी गोडसे को तैयार कर प्रधानमंत्री की हत्या के विचार से सहमत नहीं थे क्योंकि गांधी की हत्या के बाद आरएसएस की छवि को तगड़ा नुकसान पहुंचा था। वहीं, उसी दौरान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या हो गई थी तो पाकिस्तान में एक बड़ा वर्ग मानता था कि लियाकत की हत्या के पीछे जवाहर लाल नेहरू का हाथ है और नेहरू ने पाकिस्तान को बर्बाद करने के लिए लियाकत की हत्या करवाई लिहाजा पाकिस्तान भी नेहरू के जीवन के लिए खतरे के तौर पर देखा जाता था।
जीवन पर मंडरा रहे इतने खतरों के बावजूद नेहरू बेधड़क सुरक्षा को धत्ता बताकर लोगों से घुलते मिलते थे। जवाहर लाल नेहरू इस बात पर यकीन रखते थे कि आजाद देश में देश के प्रधानमंत्री और जनता के बीच कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। वह अपनी जनसभाओं में आए लोगों से मिलने भीड़ के बीच पहुंच जाते, उनसे बातें करते, उनकी बातें सुनते। सुरक्षा को लेकर इस लापरवाही से प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात सुरक्षा अधिकारी व प्रधानमंत्री कार्यालय काफी परेशान था। इस बावत सभी प्रदेशों को पत्र भी भेजा गया कि नेहरू के भ्रमण, जनसभा के दौरान सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाएं। तो राज्यों ने इसके लिए एक हल निकाला कि जिस मंच पर नेहरू बैठे हों और उसके सामने एक कंटीली तार लगाई जाए जिससे लोग तार के पास बैठे और नेहरू तक न पहुंच सके। हालांकि, कंटीले तार का सुझाव सुरक्षा अधिकारियों को भी पसंद नहीं आया क्योंकि भारी भीड़ होने पर इससे आम जन की जिंदगी भी खतरे में पड़ सकती थी लेकिन प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए सुरक्षा अधिकारियों को इससे सहमत होना पड़ा।
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू मध्य भारत राज्य (मध्य प्रदेश) के भ्रमण पर थे, वहां जनसभा को संबोधित करना था लेकिन जनता और प्रधानमंत्री के बीच सुरक्षा की दृष्टि से बेरिकेड लगाए गए थे, नेहरू यह देखकर आग बबूला हो गए और मंच से उतरकर सारे बेरिकड खुद इधर उधर फेंक दिए।
इसके बाद अगली जनसभा में प्रदेश सरकार ने सुरक्षा की दृष्टि से बेरिकेड के साथ ही कंटीली तारों का जाल भी जनता और मंच के बीच लगा दिया। नेहरू जनसभा स्थल पर पहुंचे तो वह सुरक्षा के नाम पर जनता और उनके बीच बेरिकेड और कंटीली तारों का जाल देखकर बुरी तरह झुंझला गए। उन्होंने मंच पर ही तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. काटजू पर बिफर पड़े और मंच से उतरकर बेरिकेड हटाने के साथ ही कंटीलों तारों को हटाने लगे, यह देख सुरक्षा कर्मियों में भी अपरा तफरी मच गई। नेहरू ने तार बांधने के लिए लगाए खंबों को उखाड़ना शुरू कर दिया, इस काम में उनके साथ उनके सुरक्षा कर्मी भी जुट गए। तार हटाने के बाद वह जनता से मिले।