एक हजार साल पुराना सूर्य मंदिर समूह गिन रहा आखिरी सांसे
– उत्तरकाशी के रैथल में रैथल क्यार्क के बीचों बीच स्थित एक हजार साल पुराना सूर्य मंदिर समूह देखरेख व संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रहा है, मंदिर समूह परिसर में उगी झाड़ियों के बीच हो गया है गुम
PEN POINT, DEHRADUN : उत्तरकाशी जनपद का रैथल गांव, दयारा बुग्याल ट्रैक का आधार शिविर यह गांव बीते कई सालों से पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। यहां ट्रैकिंग, होमस्टे में वक्त गुजारने के लिए देश विदेश से हर साल हजारों पर्यटक पहुंचते हैं। रैथल गांव से कुछ पहले ही एक हजार साल पुराना सूर्य मंदिर समूह है, हालांकि देखरेख के अभाव में यह हजार साल पुराना सूर्य मंदिर अपने अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। आलम यह है कि कभी दर्जन भर पुराने मंदिरों के इस समूह में सिर्फ दो मंदिर ही बचे है जिनकी हालत भी बेहद जर्जर बनी हुई है।
अक्टूबर 1991 में उत्तरकाशी जनपद में आए विनाशकारी भूकंप से पहले रैथल के ग्रामीण इस सूर्य मंदिर समूह को देवी का मंदिर मानकर पूजते आ रहे थे। तब तक इस बात का ग्रामीणों को इल्म न था कि जिस मंदिर समूह को वह देवी का मंदिर मान रहे हैं उसका वजूद एक हजार साल पुराना है। गांव से करीब दो किमी दूर रैथल व क्यार्क गांव के मध्य इस मंदिर समूह में दर्जन भर से ज्यादा शिवलिंगों के साथ ही पत्थरों पर उकेरी गई कई प्राचीन मूर्तियां भी हैं। साल 1991 तक इस मंदिर में ग्रामीण रोज पूजा अर्चना करते, पुजारी तय समय पर आकर सुबह शाम की आरती करता। लेकिन भूकंप के एक झटके ने पूरे क्षेत्र का भूगोल बदल दिया। रैथल गांव भी भूकंप के झटके से हुए नुकसान से अछूता न रहा। गांव में दर्जन भर मौतों के साथ ही गांव के ज्यादातर आवासीय भवन ध्वस्त हो गए, साथ ही इस मंदिर समूह के केंद्र में ग्रामीणों द्वारा बनाया गया मंदिर परिसर भी ध्वस्त हो गया। भूकंप के बाद आम जन जीवन पटरी पर लौटने लगा लेकिन गांव से दो किमी दूर इस मंदिर से ग्रामीणों की दूरी भी बढ़ने लगी। तभी उस 90 के दशक के किसी साल में पुरातत्व विभाग की टीम ने पहुंचकर मंदिर समूह की जांच परख की तो पाया कि यह मंदिर समूह एक हजार साल पुराना सूर्य मंदिर समूह है। लिहाजा, पुरातत्व विभाग मंदिर समूह के बाहर एक बोर्ड लगा कर इसे भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन बताते हुए इस मंदिर समूह की जानकारी लोगों को दी। लेकिन, तब तक ग्रामीण इस मंदिर समूह से दूर हो चुके थे। ग्रामीणों और मंदिर समूह के बीच आई दूरी का यहां स्थित मंदिरों पर बुरा प्रभाव पड़ा। ग्रामीणों की आवाजाही बंद हुई तो मंदिरों की देखरेख भी ठप पड़ गई।
दूसरी ओर सरकारी विभाग का बोर्ड लगने के बाद मंदिर समूह और ग्रामीणों के बीच की दूरी ज्यादा बढ़ गई। नतीजा यह हुआ कि एक हजार सालों से सलामत यह मंदिर समूह ध्वस्त होने लगा। तीन दशक में ही मंदिर समूह के 10 के करीब मंदिर बुरी तरह से ध्वस्त होकर जमीदोंज हो चुके हैं, इन मंदिरों के अंदर की प्रतिमाओं को सुरक्षित रखने के लिए एक दशक पहले पुरातत्व विभाग की ओर से बनाए गए शेल्टर में रखा गया है। वहीं, बाकी बचे हुए मंदिरों के ढांचों की हालत भी दयनीय बनी हुई है। गांव से दूर होने के कारण रैथल आने वाले हजारों पर्यटकों को भी इस मंदिर समूह से जोड़ा नहीं जा सका है। मंदिर परिसर में उगी झाड़ियां और देखरेख न होने से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनने की तमाम संभावनाओं के बाद भी यह मंदिर समूह आज आखिरी सांसे गिन रहा है।
मंदिर समूह परिसर में उगी झाड़ियों के बीच यह प्राचीन मंदिर समूह गुम हो रहा है लेकिन बीते तीन दशकों में एक शेल्टर निर्माण के सिवाय पुरातत्व विभाग की ओर से कभी भी इन मंदिर समूहों की सुध नहीं ली गई।
रैथल गांव की ग्राम प्रधान सुशीला राणा कहती हैं कि यह प्राचीन मंदिर समूह एक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता था लेकिन पुरातत्व विभाग ने इसकी कभी सुध नहीं ली जबकि इतने पुराने मंदिर समूह में पर्यटकों, इतिहास से जुड़े शोध करने वाले शोधार्थियों के लिए यह महत्वपूर्ण केंद्र बन सकता था। वह बताती है कि ग्राम पंचायत की ओर से जिला प्रशासन समेत राज्य सरकार तक को कई बार इस मंदिर समूह के संरक्षण के बारे में पत्र भेजे गए लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
वहीं, मंदिर समूह के समीप स्थित क्यार्क गांव के पूर्व प्रधान विपिन राणा बताते हैं कि रैथल क्यार्क मंदिर समूह के संरक्षण के लिए ग्रामीणों ने कई बार मांग की लेकिन इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण के लिए आज तक कोई कदम नहीं उठाया गया।