Search for:
  • Home/
  • उत्तराखंड/
  • जयंती विशेष : जब सिस्‍टर निवेदिता ने देवप्रयाग को नियाग्रा फॉल से ज्‍यादा भव्‍य बताया

जयंती विशेष : जब सिस्‍टर निवेदिता ने देवप्रयाग को नियाग्रा फॉल से ज्‍यादा भव्‍य बताया

Pen point, Dehradun : भारतीय स्‍वाधीनता आंदोलन में सक्रिय योगदान देने वाले विदेशियों में एक मार्गरेट ऐलिजबेथ नोबल भी थी। उनका जन्‍म 28 अक्‍टूबर 1867 को आयरलैंड के काउंटी टायरोन के डुंगनोन शहर में हुअ था। वह एक स्कॉट्स-आयरिश सामाजिक कार्यकर्ता, लेखिका, शिक्षिका थी। स्वामी विवेकानन्द की शिष्या बनने के साथ ही वो भारत आ गई और उन्हें निवेदिता नाम मिला। उन्‍होंने भारत भर में भ्रमण किया और हिंदू धर्म संस्‍कृति पर कई पुस्‍तकें लिखी। बद्रीनाथ और केदारनाथ यात्रा के दौरान लिखी गई उनकी डायरी भी कई अहम जानकारियां देती हैं। यह डायरी अभिलेखों में संकलित है, हालांकि किताब के रूप में नहीं आ सकी। प्रस्‍तुत है इसी डायरी का एक अंश जिसमें यात्रा मार्ग पर उन्‍होंने देवप्रयाग का उल्‍लेख उसकी भव्‍यता और दिव्‍यता और अलनंदा और भागीरथी के रौद्र रूप के साथ किया है-

देवप्रयाग तक की दस मील की दूरी सुंदर दृश्यों  से भरी है लेकिन सफर संकीर्ण धागे जैसे रास्तों से होकर गुजरता है। यह ऊँची चट्टानों के ऊपर दौड़ने जैसा अनुभव है। देवप्रयाग पहुंचते ही हमारे साथ के आदमी खुशी से चीखने लगे। लेकिन हम अब तक इतनी खुली और सुंदर जगहों को देख चुके थे। यह देखकर निराशा हुई कि यह जगह अंधेरी सी है,  तीखे ढलान पर भीड़ है, लगभग खड़ी ढलान वाली पहाड़ियां एक जगह पर मिलती हैं और दो तेज़ और शक्तिशाली जलधाराओं का जंक्शन बन रहा है। एक दूसरे से लिपटे हुए और गंभीर शैली में। यहां सारे घर ऐसे लग रहे थे मानो एक दूसरे के पीछे पंजों के बल खड़े होकर नदी को देख रहे हों।

हालाँकि, शाम को दूसरी ओर से  जब हम लोगों के घर देखते हुए बाजार में चले। हमने कई बार इसकी झलक देखी। हर घर की आंतरिक बनाटवट एक बरामदे में समाप्त होती प्रतीत हो रही थी। जो पानी के ऊपर मध्य हवा में निलंबित था।  और फिर हमें देवप्रयाग का विचार समझ आया कि ऐसा नहीं है कि बनारस जैसा देखने में भव्‍य नहीं बनाया गया बल्कि इसकी अद्भुत नदी के वास्तविक आनंद के लिए ऐसी बनावट है। इसलिए इस जगह की खूबसूरती अंदर ही अंदर है। और निश्चित रूप से ऐसी कोई भी जाति नहीं है जिसके पास भयानक चीजों के लिए खुलापन हो।

देवप्रयाग में शहर बनाने से परहेज किया जा सकता था। मैंने नियाग्रा प्रपात को देखने के कई मौके गंवाये हैं, लेकिन मैं कल्पना नहीं कर सकती कि वह देवप्रयाग की जलधाराओं से से अधिक भव्य होगा। जब कोई देवप्रयाग पुल पर खड़ा होता है तो मैं किसी और चीज की कल्‍पना नहीं कर सकती कि इसके भंवर और गर्जन से ज्‍यादा भीषण कुछ और भी होगा।

यहां अलकनंदा और भागीरथी के संगम पर नीचे की ओर जाने के लिये चट्टान पर सीढि़यां बनी हैं। साफ हवा,  भंवर और नदी का वेग अपनी उग्रता या आवाज़ से हमें अभिभूत कर देते हैं। पानी गरज रहा है, और लगातार तूफ़ान चल रहा है, मानो विलाप और क्रोध एक साथ हो। जब तक कोई चीज़ बहुत ज़्यादा है इससे क्‍या फर्क पड़ता है कि वह कितन समझ पाया है। यह एक बार ही है या पचास गुना ज़्यादा है? कुल मिलाकर देवप्रयाग में जल का आतंक अनंत है। अनंत की जय हो ! रौद्र रूप की जय!

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required