सीमांत गांधी : भारत रत्न पाने वाले पहले गैर भारतीय
-खान अब्दुल गफ्फार खान, महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर आजीवन अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व किया, पाकिस्तान ने जेल में भी कत्ल कर दिया, अहिंसक शख्सियत की अंतिम यात्रा में बम धमाके कर पाकिस्तान ने इसे खूनी यात्रा में बदल दिया
पंकज कुशवाल, देहरादून।
आजादी से ठीक पहले जब पाकिस्तान का निर्माण हो रहा था तो महात्मा गांधी के साथ ही सीमांत गांधी के नाम से ख्याति पा चुका एक मुसलमान भी इस बंटवारे से बुरी तरह आहत था। पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांत से तालुक्क रखने वाला वाले खान अब्दुल गफ्फार खान को बंटवारे का विचार कतई पसंद नहीं आया। महात्मा गांधी से प्रेरित होकर आजादी के अहिंसक आंदोलन की अगुवाई कर रहे खान अब्दुल गफ्फार खान को भी धर्म के नाम पर अलग देश के निर्माण का विचार ही खटकने लगा। उन्हें यह विचार अपने पश्तूनों के खिलाफ भी लगा। धर्म के नाम पर पृथक हुए देश पाकिस्तान ने इस अहिंसक नेता को उसकी मौत तक जेल में रखा। इस अहिंसा के पुजारी की अंतिम यात्रा को कट्टरपंथियों ने खून से रंग दिया। समर्थक जब उसे अंतिम विदाई दे रहे थे तो पाकिस्तान ने यहां बम धमाके करवाकर अहिंसा के विचार को खत्म करने की नाकाम कोशिश की।
बादशाह खान भी पुकारे गए
भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न पाने वाले पहले गैर भारतीय, सीमांत गांधी के नाम से प्रख्यात खान अब्दुल गफ्फार खान का जन्म आज के ही दिन 6 फरवरी 1890 को पंजाब प्रांत के पेशावर में एक सुन्नी मुस्लिम परिवार में हुआ था। पिता बैराम खान के विरोध के बावजूद उनकी पढ़ाई मिशनरी स्कूल में कराई थी। आगे की पढ़ाई के लिए वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में गए। 20 साल की उम्र में उन्होंने अपने गृहनगर उत्मान जई में एक स्कूल खोला जो थोड़े ही महीनों में चल निकला, पर अंग्रेजी हुकूमत ने उनके स्कूल को 1915 में प्रतिबंधित कर दिया। अगले 3 साल तक उन्होंने पश्तूनों को जागरूक करने के लिए सैकड़ों गांवों की यात्रा की। कहा जाता है कि इसके बाद लोग उन्हें ‘बादशाह खान’ नाम से पुकारने लगे थे।
महात्मा गांधी से ली प्रेरणा
उन्होंने सामाजिक चेतना के लिए ‘खुदाई खिदमतगार’ नाम के एक संगठन की भी स्थापना की। इस संगठन की स्थापना महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह से प्रेरित होकर की थी। वह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की जंग के अंग्रिम पंक्तियों के नेता बन गये थे। महात्मा गांधी के साथ घनिष्ठता के बाद खान ने खुद को आजादी के आंदोलन में पूरी तरह से झोंक दिया था। नमक सत्याग्रह के दौरान गफ्फार खान को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध में खुदाई खिदमतगारों के एक दल ने प्रदर्शन किया। अंग्रेजों ने इन निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया, जिसमें 200 से ज्यादा लोग मारे गए।
देश विभाजन के विरोधी रहे
आजादी से पहले ही भारत के दो टुकड़े किए जाने की मांग की जाने लगी। मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा अपने अपने धर्म के लिहाज से खुद का आजाद मुल्क चाहते थे। आजादी के दौरान देश के विभाजन का खान अब्दुल गफ्फार खान ने सख्त विरोध किया। जब उन्हें लगा कि बंटवारा इस देश की आखिरी नियती बन ही जाएगा तो उन्होंने इस बंटवारे के साथ ही जून 1947 में उन्होंने पश्तूनों के लिए पाकिस्तान से एक अलग देश की मांग की, लेकिन ये मांग नहीं मानी गई। बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गए।
पाकिस्तान ने लगातार जेल में रखा
बंटवारे के खिलाफ और अपने उसूलों के पक्के खान अब्दुल गफ्फार खान को पाकिस्तान भी अपना दुश्मन समझता था। पाकिस्तान में सिरे से खारिज किए गए पश्तूनों के बीच बादशाह खान का कद एक बड़े नेता का था तो वह पाकिस्तानी सरकार की आंखों में खूब खटकते थे। लिहाजा, पाकिस्तान जाने के बाद से ही पाकिस्तानी सरकार ने उन्हें लगातार जेल में रखा। उन्हें कड़ी पहरेदारी में रखा जाता। उनका बाहर निकलना, लोगों से मिलने पर भी पाकिस्तानी सरकार ने प्रतिबंध लगाया था। साल 1988 में हाउस अरेस्ट के दौरान पाकिस्तान में ही उनका निधन हो गया। जिंदगीभर अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले बादशाह खान की अंतिम यात्रा भी अहिंसक न रह सकी। उनकी अंतिम यात्रा में 2 विस्फोट हुए, जिसमें 15 लोग मारे गए।
हिंदुस्तान में बेपनाह मोहब्बत पाने वाले सीमांत गांधी के नाम से विख्यात खान अब्दुल गफ्फार खान ने भले ही अपने जन्म और अपने लोगों के हितों को देखते हुए पाकिस्तान चुना लेकिन वह पाकिस्तान में भी पाकिस्तानी बनकर नहीं रह सके। जबकि, वह हिंदुस्तान में बेहद लोकप्रिय शख्यिसत रहे।