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पांच दशक बाद फिर देश में ‘एक देश एक चुनाव’!!!

– देश में शुरूआती चार चुनावों में लोक सभा और विधानसभा के चुनाव हुए थे एक साथ, राज्यों की सरकार भंग करने के प्रचलन के बाद बदल गया था एक साथ चुनाव करवाने का नियम
PEN POINT, DEHRADUN : केंद्र सरकार ने ‘एक देश एक चुनाव’ को लेकर बढ़ा कदम उठाया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर देश में एक साथ लोक सभा और विधानसभाओं के चुनाव करवाने की संभावनाओं को तलाशा जाएगा। हालांकि, देश में लोक सभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने का विचार नया नहीं है। आजादी के 20 सालों तक देश में लोक सभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ होते रहे हैं। फिर कुछ राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगने और विधानसभाओं को भंग करने का दौर शुरू हुआ तो लोक सभा चुनाव और विधान सभा चुनाव अलग अलग होने लगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीते समय अपने भाषणों में देश में एक साथ लोक सभा और विधानसभा चुनाव की जरूरत बता चुके हैं। अब केंद्र सरकार की ओर से संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है तो उससे पहले शुक्रवार को एक देश एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति की अध्यक्षता में एक कमेटी का भी गठन कर दिया है। ऐसे में माना जा रहा है कि केंद्र सरकार जल्द ही देश में लोक सभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने पर बड़ा फैसला ले सकती है। लेकिन, यह पहली बार नहीं है जब देश में एक साथ लोक सभा चुनाव और विधानसभाओं के चुनाव करवाने की बात हो रही है। देश की आजादी के बाद करीब दो दशकों तक देश में लोक सभा और राज्य की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। पहले चार आम चुनाव और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही आयोजित किए गए थे। लेकिन, उसके बाद इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में प्रदेश की सरकारों को बर्खास्त करने का चलन बढ़ने लगा तो राज्यों के विधानसभा चुनाव भी अलग अलग समयों पर होने लगे जिसके बाद लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होने का क्रम टूट गया।
देश में 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए हैं। आजादी के बाद संविधान अंगीकृत कर लेने के बाद जब पहली बार देश में आम चुनाव हुए तो इनके साथ ही देश भर के राज्यों में भी विधानसभा के लिए वोट डाले गए। यह सिलसिला अगले चार चुनाव तक जारी रहा। लेकिन, इसके बाद 1968-1969 के बीच कुछ राज्यों की विधानसभा भंग हो गई, जिससे ये सिलसिला टूट गया। वहीं, वर्ष 1971 में भी समय से पहले लोकसभा चुनाव कराए गए। 1967 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था. तब राज्य में 423 सीटें थी और कांग्रेस के खाते में 198 सीटें आईं थी जबकि सरकार बनाने के लिए 212 सीटों की जरुरत थी। दूसरे नंबर पर जनसंघ पार्टी जो आज भाजपा के नाम से जानी जाती है थी जिसे 97 सीटें मिली थीं, लेकिन कांग्रेस ने 37 निर्दलीय सदस्यों और कुछ छोटी पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बना ली और सीपी गुप्ता मुख्यमंत्री बने। लेकिन, चौधरी चरण सिंह की बगावत के चलते एक ही महीने में यह सरकार गिर गई।
इसके बाद चौधरी चरण सिंह ने भारतीय जनसंघ और संयुक्त समाजवादी के साथ मिलकर सरकार बना ली, लेकिन यह बेमेल साथ भी एक साल से ज्यादा नहीं चल सका और चौधरी चरण सिंह ने इस्तीफा दे दिया। साथ ही उन्होंने विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर दी। उत्तर प्रदेश से विधानसभा भंग करने का यह ट्रैंड अन्य राज्यों तक भी पहुंच गया। एक दशक में ही इंदिरा गांधी ने अलग अलग राज्यों में 39 बार राष्ट्रपति शासन लगाकर विधानसभा भंग कर दी। लिहाजा, एक साथ चुनाव करवाने का यह ट्रैंड भी पूरी तरह से बदल गया और 1967 के बाद अलग अलग राज्यों में अलग अलग समय चुनाव होने शुरू हो गए।
हालांकि, इसके बाद भी देश में एक साथ चुनाव करवाने की मांग उठती रही। साल 1999 में विधि आयोग ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी जिसमें देश में एक साथ चुनाव करवाने की सिफारिश की गई थी। वहीं, साल 2015 में कानून और न्याय मामलों की संसदीय समिति ने भी एक देश एक चुनाव की सिफारिश की थी। हालांकि, मौजूदा सरकार और उससे जुड़े लोग लगातार देश में एक साथ लोक सभा और विधानसभा चुनाव करवाने को लेकर आवाज उठाते रहे हैं। वहीं, एक साथ चुनाव करवाने की संभावनाओं को लेकर कमेटी के गठन के बाद साफ होने लगा है कि मौजूदा सरकार इस मामले को गंभीरता से विचार कर रही है।

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