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बाबा आमटे : कुष्‍ठ रोगियों की सेवा के लिए छोड़ा वकालत का पेशा

– बाबा आमटे की पुण्यतिथि आज कौमी एकता और सामाजिक सौहार्द के लिए दो बार भारत जोड़ो यात्रा PEN POINT, देहरादून। एक जमींदार के पुत्र, अपने समय के प्रसिद्ध वकील, आलीशान जीवन शैली लेकिन कुष्ठ रोगियों को देखकर मन ऐसा द्रवित हुआ कि 35 साल की उम्र में ही अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों की सेवा में खपा दिया। आज के ही दिन समाजसेवी, स्वतंत्रता सैनानी बाबा आमटे की पुण्यतिथि है। पेन प्वाइंट आज बाबा आमटे को श्रद्धा सुमन अर्पित करता है।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले के हिंगनघाट में समाजसेवी बाबा आमटे का जन्म 26 दिसंबर, 1914 को हुआ था। बाबा आमटे के पिता देवीदास ब्रिटिश भारत के प्रशासन में शक्तिशाली नौकरशाह और जिले के धनी जमींदार थे। उनकी माता का नाम लक्ष्मीबाई आमटे था। बाबा आमटे का पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे था, लेकिन उनके माता पिता व परिवार के अन्य सदस्य उन्हें बाबा कहकर बुलाते थे। अमीर परिवार में जन्में बाबा आमटे का बचपन व युवावस्था काफी संपन्नता में गुजरा। बाबा आमटे की प्रारंभिक पढ़ाई नागपुर के क्रिश्चियन मिशन स्कूल में हुई। इसके बाद बाबा आमटे ने नागपुर यूनिवर्सिटी में लॉ की पढ़ाई की और वकालत शुरू कर दी। रुतबे वाले परिवार से आने के कारण उनके पास काम की कभी कमी नहीं रही, वे अपने पैतृक शहर में भी वकालत की और काफी सफल वकील बने। बाबा आमटे ने साल 1946 में साधना गुलशास्त्री से शादी की थी।

गांधी और विनोबा से प्रेरित हुए  
अपने समय के बेहद अमीर परिवार से आने के बाद भी बाबा आमटे का मन लोगों की सेवा में लगा रहता था। बाबा आमटे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और विनोबा भावे से बहुत प्रभावित थे, इसलिए वे उनके साथ हो लिए। बाबा आमटे ने इनके साथ मिलकर पूरे भारत का दौरा किया और देश के गांवों मे अभावों में जीने वालें लोगों की असली समस्याओं को समझने की कोशिश की थी। बाबा आमटे ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में भी खुलकर भाग लिया और जेल भी गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त, 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था। तो इस आन्दोलन के दौरान बाबा आमटे ने पूरे भारत में अंग्रेजी जेलों में बंद नेताओं के केस लड़ने के लिए वकीलों को संगठित किया था।
कुष्ठ रोगी को देखकर समाज सेवा में उतरे
बाबा आमटे का जीवन उस वक्त पूरी तरह बदल गया था जब उन्होंने एक कुष्ठरोगी को देखा था। जिसके बाद उन्होंने 35 साल की उम्र में ही उन्होंने अपनी वकालत को छेड़कर समाजसेवा शुरू कर दी थी। इसके बाद उन्होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए महाराष्ट्र में आनंदवन आश्रम की स्थापना की। जहां कुष्ठ रोगियों की सेवा, उपचार निशुल्क किया जाता था।  बाबा आमटे आनंदवन आश्रम के साथ अन्य कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहां हजारों रोगियों की सेवा की जाती है।

दो बार भारत जोड़ो यात्रा की

आज कांग्रेस सासंद राहुल गांधी की हाल में ही संपन्न भारत जोड़ो यात्रा की चर्चा है। लेकिन, बाबा आमटे ने सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता के संदेश के साथ 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम से गुजरात तक दो बार भारत जोड़ो आंदोलन चलाया। नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बांध निर्माण और इसके फलस्वरूप हजारों आदिवासियों के विस्थापन का विरोध करने के लिए 1989 में बाबा आम्टे ने बांध बनने से डूब जाने वाले क्षेत्र में निजी बल (आंतरिक बल) नामक एक छोटा आश्रम बनाया।
सामाजिक कार्यों के लिए ख्‍याति मिली
बाबा आमटे की निष्काम भाव से कुष्ठ रोगियों की सेवा के साथ ही सामाजिक उत्थान के कार्यों को देश विदेश में खूब सराहा गया। उनकी सामाजिक सेवाओं के लिए भारत सरकार ने 1971 में उन्हें पद्मश्री, 1978 में राष्ट्रीय भूषण, 1986 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। साल बाबा आमटे को उनके कार्यों के लिए 1988 में मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आज के ही दिन 9 फरवरी 2008 में 94 वर्ष की आयु में उनका कुष्ठ रोगियों के लिए बनाए उनके आश्रम आनंदवन में देहांत हो गया।

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