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बारडोली सत्याग्रह : जिसने वल्लभ भाई पटेल को दी ‘सरदार’ की उपाधि

आज के दिन 12 फरवरी को बारडोली तालुकों में किसानों ने वल्लभ भाई पटेल की अगुवाई में सम्मेलन कर संशोधित मूल्यांकन का भुगतान न करने के निर्णय को दोहराया

पंकज कुशवाल, PEN POINT : बारडोली सत्याग्रह, अंग्रेजों के अधीन रह रहे भारत का पहला किसान आंदोलन जिसने अंग्रेजों को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर किया तो इस आंदोलन ने ही वल्लभ भाई पटले को ‘सरदार’ की उपाधि भी दी। आज़ादी की लड़ाई के दौरान 1928 में बारडोली सत्याग्रह इतिहास के पन्नों में ख़ास महत्व रखता है। चार महीनों तक चले इस सत्याग्रह में सूरत के 600 वर्ग किलोमीटर में फैले 137 गांवों के किसानों ने न सिर्फ ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती दी थी, बल्कि इस लड़ाई को जीता भी था।
किसानों के इस आंदोलन का नेतृत्व गांधी जी और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किया था। कहा जा सकता है कि इस धर्मनिरपेक्ष किसान आंदोलन, अहिंसक बारडोली सत्याग्रह ने दांडी नमक मार्च के लिए एक खाका तैयार किया था। 12 फरवरी, 1928 को महात्मा गांधी ने इस सत्याग्रह की घोषणा की थी। गौरतलब है कि इसी साल भारत में साइमन कमीशन आया था, जिसका राष्ट्रव्यापी विरोध हुआ था।  इस सत्याग्रह के पीछे की वजह थी लगान का बढ़ा दिया जाना. दरअसल, किसानों द्वारा दिए जाने वाले कर में अचानक 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी गयी। अकाल की मार झेल रहे किसानों के लिए यह फैसला वज्रपात सरीका था। कर बढ़ाने का यह फैसला प्रांतीय सिविल सेवा अधिकारी की सिफारिश के आधार पर लिया गया था जिसने तर्क दिया था कि ताप्ती नदी घाटी में रेलवे लाइन की स्थापना के बाद किसान इस क्षेत्र में अधिक समृद्धि का आनंद ले रहे थे।
इस बढ़ोत्तरी के खिलाफ किसानों ने कई बार बाम्बे गवर्नर से गुहार लगाई लेकिन किसानों की अंग्रेजी हुकूमत से एक न सुनी। अंग्रेजी अधिकारियों से निराश होकर किसानों के नेता सरदार पटेल के पास पहुंचे। सरदार पटेल ने उनकी मांग सुनते हुए कहा कि इंडियन नेशनल कांग्रेस उनका साथ देगी। इसके बाद 4 फरवरी, 1928 को ( किसानों को अपने कर का पहला इंस्टालमेंट देने से के दिन पहले) पटेल ने बारडोली में एक किसानों की कांफ्रेंस आयोजित की। उन्होंने बाम्बे गवर्नर से इस कर बढ़ोत्तरी पर विचार करने को कहा लेकिन अंग्रेजी हुकूमत अपने फैसले से टस न मस हुई। कर की इस पहली किश्त का भुगतान करने की अंतिम तिथि 15 फरवरी थी, जिसके बाद स्थानीय अधिकारियों को कर न चुकाने वाले किसानों की कृषि भूमि के साथ ही जमीन जब्ती के आदेश दिए गए। आज के दिन 12 फरवरी को बारडोली तालुकों में किसानों ने वल्लभ भाई पटेल की अगुवाई में सम्मेलन कर संशोधित मूल्यांकन का भुगतान न करने के निर्णय को दोहराया। पटेल ने सत्याग्रहियों को सैन्य तर्ज पर संगठित किया था और व्यक्तिगत रूप से एक सेनापति (कमांडर) की भूमिका निभाई थी। उन्होंने एक विस्तृत प्रचार विभाग की स्थापना की जिसने लोगों के बीच सूचना पहुँचाई गयी। सत्याग्रह ने अथक कार्रवाई के लिए सरदार की संगठनात्मक क्षमता और उत्साह का प्रदर्शन किया. गांधी जी ने कहा था कि बारडोली में सरदार ने “अपना वल्लभ (भगवान)“ पाया।
किसानों का यह सत्याग्रह अगले तीन महीनों तक जारी रहा। जून महीने तक ब्रिटिश सरकार को सत्याग्रहियों का दबाव महसूस शुरू हो गया था। यहां तक कि ब्रिटिश-स्वामित्व वाले प्रकाशन भी किसानों के समर्थन में सामने आए. इसके बाद प्रशासन के लिए चेहरे के रूप में, गवर्नर काउंसिल के एक प्रमुख सदस्य चुन्नीलाल मेहता ने किसानों के साथ समझौता किया। उन्होंने 5.7 प्रतिशत वृद्धि की सिफारिश की और इस कर के भुगतान के बाद प्रशासन द्वारा जब्त की गई भूमि वापस कर दी जाएगी. इस बीच, किसानों के साथ एकजुटता में सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने वालों को बहाल किया जाएगा।
आन्दोलन को देखते हुए सरकार के पास इन सिफारिशों को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. इस तरह किसानों ने यह लड़ाई जीत ली थी, इस आंदोलन में किसानों के साथ ही महिलाओं की भूमिका भी अहम रही। वल्लभ भाई पटेल ने पहले ही साफ कर दिया था कि अगर आंदोलन में महिलाएं शामिल न हुई तो आंदोलन सफल नहीं हो सकेगा। लिहाजा, उसके बाद महिलाएं भी घर का चूल्हा चौका छोड़ आंदोलन का हिस्सा बनी और इस आंदोलन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण साबित हुई। महिलाओं को आंदोलन में बराबरी का हक दिलवाने के लिए बरडोली की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को पगड़ी पहनाकर ‘सरदार’ की उपाधि दी और सरदार नाम वल्लभ भाई पटेल के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया।

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