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बीटल : गाय से ज्यादा दूध देने वाली ये बकरी मिटा देगी गरीबी

Pen Point, Dehradun : डीडी कुशवाह जिला उद्यान अधिकारी के पद से रिटायर हुए हैं। देहरादून के अजबपुर में सरस्वती विहार में उनका ठिकाना है। घनी होती ये कॉलोनी पूरी तरह शहरी मिजाज में ढली है। जहां ग्रोसरी स्टोर से लेकर बूटीक और जिम जैसे व्यवसाय फल फूल रहे हैं। लेकिन कुशवाह अलग मिजाज के शख्स है। उन्होंने इन सबसे इतर बकरी पालन को चुना। उनके घर के बाहर सुबह जुटने वाली भीड़ हर हाल में बकरी का दूध पाना चाहती है। आठ सौ रूपए किलो का यह दूध डेंगू समेत अन्य बीमारियों के इलाज में काम आता है। करीब डेढ़ बीघा जमीन में उनका बगीचा और बकरी बाड़ा दोनों साथ ही हैं। बाड़े पर नजर डालें तो सामान्य से कहीं बड़ी और उंचे कद की बकरियां हर कीसी का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। कुशवाह के मुताबिक ये बीटल बकरी है। यह पंजाब के सीमांत से लाई गई है और एक दिन में तीन से चार लीटर तक दूध देती है।

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बकरी पालन को लेकर कुशवाह कहते हैं कि पहाड़ी इलाकों के लिये बीटल बकरी एकदम मुफीद है। जहां गाय एकाध लीटर ही दूध देती है और बहुत ज्यादा मेहनत लगती है। वहीं उच्च दूध उत्पादन वाली गाय या भैंस को पहाड़ में पालना आसान भी नहीं है। ऐसे में बीटल बकरी पहाड़ के किसानों और पशुपालकों के लिये बड़े फायदे का सौदा हो सकती है। एक तो इसमें चारा कम लगता है और डेढ़ घंटा सुबह और इतना ही समय शाम को देना पड़ता है। बहुत कम जगह में इसे पाला जा सकता है तो ऐसे में एक बकरी की लागत करीब नौ सौ रूपए महीना आती है। आठ सौ रूपए प्रति किलो की दर से इसका दूध बिकता है। यानी एक दिन की चौबीस सौ रूपए और महीने का शुद्ध मुनाफा अट्ठारह लाख रूपए तक हो सकता है।
इतनी कम लागत में ज्यादा मुनाफा यही बकरी दे सकती है। इसके अलावा बकरी का गोबर उच्च गुणवत्ता वाली खाद का काम भी करता है। जिसका उपयोग फल सब्जियों के उत्पादन में किया जा सकता है।
बीटल बकरी की डिमांड को लेकर कुशवाह बताते हैं कि उनके पास यूपी और दिल्ली से काफी डिमांड आती है। हालांकि उन्होंने राज्य से बाहर बकरियां देने से इनकार कर दिया, और केवल उत्तराखंड में ही किसानों को उपलब्ध कराने की बात कही। उन्होंने बताया कि अन्य राज्यों में बकरी पालन को लेकर पिछले कुछ सालों में काफी जागरूकता आई है। जिससे इस बकरी की उपलब्धता में कमी आई और कीमत बढ़ गई। फिलहाल एक नर बकरे की कीमत एक से डेढ़ लाख रूपए है। जबकि बकरी पैंतीस से पचास हजार रूपए की है। तीन माह का बच्चा बीस हजार रूपए में मिलता है।

महंगी बकरी होने पर किसान कैसे अपनी यूनिट लगा सकता है, इस सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि सरकार इसमें मदद कर रही है। इसके लिये पैंतीस से पचास फीसदी तक सब्सीडी का लोन विभिन्न योजनाओं के तहत मिल जाएगा। लेकिन उत्तराखंड में लोन लेकर उसे कहीं और इस्तेमाल करने के चलन से वे आहत नजर आए। उनका मानना है कि यही वजह है कि उत्तराखंड में बहुत चुनिंदा लोग ही सही तरीके से व्यवसाय कर रहे हैं।

बकरी के महत्व को लेकर कुशवाह एक दिलचस्प बात बताते हैं- पहले कहा जाता था कि बकरी गरीब की गाय है, लेकिन अब यह अमीर की गाय हो गई है, सक्षम और पैसे वाले लोग अब इन बकरियों के फार्म स्थापित कर रहे हैं। जबकि गरीब किसान और पशुपालक बदलाव लाकर कुछ नया करने से कतरा रहे हैं। अपने सेंटर को एक नॉलेज सेंटर का रूप देते हुए उन्होंने कई लोगों को बकरी पालन की ट्रेनिंग दी है। वहीं उत्तराखंड में विभिन्न जगहों पर यूनिट भी स्थापित करवाई हैं।
यह पूछने पर कि उन्होंने बकरी पालन ही क्यों चुना, तो कुशवाह कहते हैं कि मैंने पहले एक बकरी पाली थी, उसके दूध से मेरी और मेरी पत्नी की बीमारी ठीक हुई। खुद पर किये इस प्रयोग ने मुझे बकरी पालन और बकरी का दुध लोगों को उपलब्ध करवाने के लिये प्रेरित किया।

बकरी पालन के अलावा अपने घर के आस पास उन्होंने फलदार पेड़ और सब्जियां भी लगाई हैं। उन्होंने बताया कि बीते सीजन में एक तकनीकी प्रयोग के जरिए एक पेड़ से पैंसठ किलो टमाटर उगाए। इसी तरह के अनूठे प्रयोग उन्होंने फलों और अन्य सब्जियों पर भी किये हैं। इनकी अच्छी उपज भी बकरी के गोबर का परिणाम है।

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