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सालम क्रांति : जब अल्मोड़ा के वीर बाकुंरे पत्थर लेकर टूट पड़े हथियारबंद अंग्रेजी सेना पर  

-अल्मोड़ा के सालम क्षेत्र में आज के ही दिन धामदेव मैदान में जुटे आजादी के वीर बांकुरों ने छुड़ाए थे हथियारबंद अंग्रेजी सेना के पसीने
Pen Point, Dehradun : साल 1942, सालम क्षेत्र का धामदेव मैदान। अंग्रेजी हुकूमत से देश को आजाद करवाने के लिए सामल क्षेत्र के हजारों ग्रामीण इस मैदान में जुटे थे लेकिन तभी चारों तरफ से अंग्रेजी सेना ने ग्रामीणों को घेर दिया और हवाई फायर शुरू कर दिया। लेकिन, वीर पहाड़ियों ने भी भागने की बजाए पत्थरों से अंग्रेजी सेना का सामना किया। अंग्रेजी सेना और सालम क्षेत्र के ग्रामीणों के बीच घंटों चले इस युद्ध में क्षेत्र के दो नौ जवानों ने अपनी शहादत दी तो दो सौ से ज्यादा लोग घायल हो गए। तब महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश भर में अंग्रेजी हुकूमत से आजादी की लड़ाई लड़ रहे लाखों स्वतंत्रता सैनानियों के लिए सालम क्षेत्र की यह जनक्रांति क्षेत्र के वीर क्रांतिकारियों की बदौलत प्रेरणास्रोत बनी। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में कुमाऊं के जनपद अल्मोड़ा में स्थित सालम पट्टी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पूरा देश जब अंग्रेजों से देश को आजादी दिलवाने के लिए एक निर्णायक लड़ाई लड़ रहा था तो कुमाऊं का यह हिस्सा पीछे कैसे रहता। कुमाऊं के अन्य जगहों की भांति इस पिछड़े क्षेत्र में भी स्वतंत्रता संग्राम की अलख जल चुकी थी। सालम के बिनौला गांव के नवयुवक राम सिंह धौनी ने क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की अलख पूरे क्षेत्र में जलाने के लिए खूब प्रयास किए। राम सिंह धौनी अल्मोड़ा में पढ़ाई के दौरान ही आजादी के आंदोलन से जुड़े के साथ ही हिंदी के प्रचार प्रसार के काम में भी जुट गए थे। उसके बाद उन्होंने लोगांे को आजादी के आंदोलन से जोड़ने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। 1930 में मुम्बई में चेचक के प्रकोप से राम सिंह धौनी बीमार हो गये ठीक होने के कुछ दिन उपरान्त 12 नवम्बर 1930 को उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मौत के बाद 1930 में सालम के दुर्गादत्त पांडे शास्त्री जब बनारस से संस्कृत की पढ़ाई कर घर लौट आये तो उन्होंने धौनी के अधूरे छूटे कार्यों को पूरा करने का बीड़ा उठाया और आजादी के आंदोलन की कमान अपने हाथ में ले ली। पुभाऊं गांव में शास्त्री जी भाषण देते समय पुलिस ने गिरफ्तार कर अल्मोड़ा कारागार में भेज दिया था. जेल से रिहा होने के बाद वे पुनः रेवाधर पांडे, प्रताप सिंह बोरा, मानसिंह, मर्चराम, जमन सिंह नेगी व मानसिंह धानक के साथ आजादी के आंदोलन की आग को सुलगाने लगे। 1938 में सालम के एक और क्रांतिकारी रामसिंह आजाद भी स्वराज्य आंदोलन में सक्रिय हो गये।

सल 1941 में जब महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया तो इसका असर पूरे देश के साथ अल्मोड़ा के इस सालम क्षेत्र में भी व्यापक रूप से पड़ा। सविनय अवज्ञा आंदोलन को समर्थन देने के लिए पूरे क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सत्याग्रह किया गया, कई कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। सालम में 23 जून 1942 में एक बड़ी सभा का आयोजन किया गया और इसमें हरगोविन्द पंत ने ध्वजारोहण किया। महीने भर बाद 1 अगस्त 1942 को तिलक जयंती के मौके पर भी सालम के 11 जगहों पर भारतीय ध्वज फहराने का फैसला क्रांतिकारियों की ओर से लिया गया। वहीं, दूसरी ओर मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति के अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो‘ का प्रस्ताव पास होने के बाद 9 अगस्त की सुबह ही महात्मा गांधी व गोविन्द बल्लभ पंत की गिरफ्तारी का देश भर में विरोध हुआ तो इसका असर कुमाऊं में भी पड़ा। अंग्रेजी पुलिस ने कई नेताओं व कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। सालम में भी 11 अगस्त को पटवारी दल सांगण गांव में रामसिंह आजाद के घर पंहुचा जहां बड़ी संख्या में कौमी दल के स्वयंसेवक मौजूद थे। इस दौरान रामसिंह आजाद शौच के बहाने से फरार हो गये। 19 अगस्त को स्वयंसेवकों के सचल दल की जब नौगांव में आगामी कार्यक्रमों की रूप रेखा तय की जा रही थी तो प्रशासन के पुलिस बल ने गांव को चारों तरफ से घेरे दिया और बैठक में शामिल 14 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। बैठक में हिस्सा ले रहे कार्यकर्ताओं के गिरफ्तारी की बात क्षेत्र में आग की तरह फैल गई। ग्रामीण रात में ही एकत्रित हो गये।

ग्रामीण ब्रिटिश साम्राज्य की ज्यादतियों और क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी से बुरी तरह से उखड़े हुए थे। उन्हांेने कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर ले कर जा रहे पुलिस कर्मियों को ललकारते हुए कार्यकर्ताओं को छोड़ने को कहा। बंदूकों से लैस पुलिस कर्मियों को जब लगा कि लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है तो उन्होंने हवाई फायर कर दी। हवाई फायर जैसी कार्रवाई से गुस्साए ग्रामीण मशालों के उजाले में ही पुलिस बल पर टूट पड़े और पुलिस कर्मियों को लहूलुहान कर उनकी बंदूकें छीन ली। पुलिस कर्मी भी अपनी जान बचाकर भागे। इसके बाद तय हुआ कि जैंती के सरकार स्कूल में जल्द ही सब एकत्र होकर आगे की रणनीति बनाएंगे।

आज के ही दिन यानि 25 अगस्त की सुबह से ही आसपास के दर्जनों गांवों की जनता भारत के झंडे और ढोल बाजों के साथ जैंती पहुंचकर धामदेव के मैदान में एकत्र होने लगे। वहीं, इसके साथ सूचना मिल गई थी कि अंग्रेज भी इस जनाक्रोश रैली का बर्बरतापूर्वक दमन करने की तैयारियों के साथ सालम पहुंच रही है लेकिन इसके बावजूद भी धामदेव मैदान में जमा भीड़ टस से मस न हुई।

हजारों की जमा भीड़ को तितर बितर करने के लिए अंग्रेजी सेना ने पहले हवाई फायर किए लेकिन भीड़ के हौसले बुलंद थे। लगातार हवाई फायर होने से नाराज लोगों ने अंग्रेजों पर पत्थरों से हमला कर दिया। एक तरफ आधुनिक हथियारों के साथ अंग्रेजी सेना थी तो दूसरी ओर ग्रामीण। ग्रामीणों ने सिर्फ पत्थर से ही अंग्रेजी हुकूमत का सामना किया। अंग्रेजी सेना की ओर से हुई गोलीबारी में चौकुना गांव का नौजवान  नर सिंह धानक तथा कांडे गांव का टीका सिंह कन्याल शहीद हो गए। सालम के इस गोलीकाण्ड में दो लोगों के शहीद होने के साथ ही 200 से ज्यादा लोगों को चोटें आयी थी। ब्रिटिशों ने सालम के क्रांतिवीरों का मनोबल गिराने के लिए आजादी के नायक प्रताप सिंह बोरा, मर्चू राम, डिकर सिंह धानक, उत्तम सिंह बिष्ट, राम सिंह आजाद, केशर सिंह आदि क्रांतिकारियों को जेलों में ठूंस दिया था। क्रांतिकारियों के गांव कांडे, थामथोली, मझाऊं, सैनोली, दाड़िमी, चौकुना, बरम, नौगांव आदि में महिलाओं, बच्चों को अनेक यातनाएं दी गई।

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