बीर सिंह रौतेला: निर्दोष चरवाहों की हत्या से बौखला कर माणा गांव से लिया था बदला
-झाला निवासी बीर सिंह रौतेला ने लिया था माणा के ग्रामीणों से लिया था अपने दोस्तों की मौत का बदला, माणा गांव में तीन बार हमला कर मचाया था उत्पात
PEN POINT, DEHRADUN : 1840 के दशक के किसी साल में गंगोत्री के निकट बसे झाला गांव से कुछ गडरिए नई चारागाहों की खोज में निकले। यह क्रम सालों से चल रहा था। पारंपरिक रूप से भेड़ बकरियां चराने वाले इन समुदाय के लिए हर साल गर्मियों के दौरान नई चारागाह खोजने जाना पड़ता था जिससे आने वाले सालों में उनके मवेशियों को चरने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। इसी तरह झाला व उपला टकनौर के इस इलाके में भेड़ बकरी पालकों के लिए नए चारागाह की खोज में झाला का एक दल रवाना हुआ। हिमालयी बियावानों को पार करते हुए नए बुग्यालों की खोज में यह दल बदरीनाथ धाम के समीप बसे सीमावर्ती गांव माणा पहुंचा। तिब्बत से व्यापार के चलते आर्थिक रूप से बेहद संपन्न माणा गांव के लोगों ने नए चारागाहों की खोज में आए झाला गांव के इस दल का गर्मजोशी से स्वागत किया। भोटिया मूल के माणा गांव के लोगों द्वारा गर्मजोशी दिखाने से झाला का यह दल हतप्रभ था। माणा के भोटिया परिवारों ने इस दल की खूब खातिरदारी की, खाना खिला कर व पारंपरिक रूप से बनाई जाने वाली शराब पिलाकर दल को सोने के लिए भेज दिया। लेकिन, आधी रात को नशे में टुन्न यह दल गहरी में नींद में सोया था तो माणा के इन मेजबानों ने दल के एक सदस्य को छोड़ सारे सदस्यों का गला काट दिया। जीवित बचे सदस्य को चेतावनी देकर वापिस झाला भेज दिया। जिंदा बचकर लौटे उस सदस्य ने हिमालयी दर्रा पार कर झाला पहुंचकर सारे घटनाक्रम से ग्रामीणों को अवगत कराया। झाला निवासी और क्षेत्र में अपनी ताकत और साहस के लिए विख्यात बीर सिंह रौतेला इस खबर को सुनकर गुस्से से भर गया। लेकिन, उसने तुरंत माणा पर वार करने की बजाए स्थिति का आकलन करने का फैसला लिया। उसने जानकारी जुटाई तो पता चला कि व्यापार का प्रमुख केंद्र माणा के ग्रामीण सर्दियों में अपने शीतकालीन प्रवास के लिए माणा को छोड़कर निचले इलाकों में उतर जाते हैं। लिहाजा, उसने सर्दियों तक इंतजार करने का फैसला लिया।
सितंबर महीने के आखिरी में जब इन ऊंचाई वाले इलाकों में सर्दियां दस्तक देने लगती है तो बीर सिंह रौतेला ने झाला के कुछ युवकों को लेकर माणा गांव पर हमले की योजना बनाई और उसके लिए वह माणा की तरफ रवाना हो गया। लेकिन, बीर सिंह रौतेला ने माणा से सीधा युद्ध न कर ‘धड़‘ मारने का फैसला किया। धड़ शब्द गढ़वाल के टकनौर, रंवाई, हिमालच के चितकुल, चमोली के माणा क्षेत्र में एक प्रचिलत शब्द था जिसका मतलब होता था कि हमला कर लूटपाट मचाना न कि युद्ध लड़ना।
माणा गांव से कुछ दूर ऊंचाईं पर अपने साथियों के साथ ठहरकर बीर सिंह रौतेला ने माणा के उन ताकतवर लोगों के जाने का इंतजार किया जिनके साथ भिड़ने लायक संसाधन उसके पास नहीं थे। सबसे पहले गांव के ताकतवर परिवार शीतकालीन प्रवास के लिए गांव छोड़ते उसके बाद व्यापार व पशुपालन में शामिल परिवार गांव से रवाना होते। माणा के ताकतवर परिवारों के गांव छोड़ते ही बीर सिंह रौतेला ने अपने दल के सदस्यों के साथ माणा गांव पर धावा बोल दिया। उसने वहां जमकर मार काट तो मचाई ही साथ ही जो भी सामान था सारा लूट लिया और अपने साथियों का बदला लेकर वापिस झाला लौट आया। अगले साल भी सर्दियों की दस्तक से पहले बीर सिंह रौतेला ने फिर यही तकनीक अपनाई। माणा गांव में घुसकर अपने गांव के चरवाहों का बदला लेने वाले बीर सिंह रौतेला का रूतबा अपने इलाके में खूब बढ़ गया था। स्थानीय निवासी अब बीर सिंह रौतेला को भड़ यानि वीर कह कर संबोधित करने लगे थे। क्रमबद्ध तरीके से तीन सालों तक लगातार तीन बार माणा गांव पर सफल धड़ मारने के बाद बीर सिंह रौतेला के हौसले बुलंद थे। लेकिन, माणा गांव में लगातार तीन सालों से हो रही लूटपाट और हत्याओं को लेकर माणा गांव के समृद्ध व ताकतवर परिवारों ने इसे खुद को चुनौती के रूप में लिया और अब वह भी अगले हमले के लिए तैयार बैठे थे।
चौथी बार बीर सिंह रौतेला माणा गांव में धड़ मारने पहुंच कर माणा गांव के ताकतवर परिवारों के निचले इलाकों में लौटने का इंतजार करने लगा। लेकिन, इस बार माणा गांव के ताकतवर लोगों ने हमलावर को सबक सिखाने की ठान ली थी और पहले गांव के कमजोर, पशुपालकों, व्यापारियों को आगे भेजा और खुद गांव में छिप कर बैठ गए। बीर सिंह रौतेला तक खबर पहुंचाई गई कि गांव के ताकतवर लोग शीतकालीन प्रवास के लिए गांव छोड़ चुके हैं तो उत्साही बीर सिंह रौतेला ने भी अपने दल के साथ माणा गांव पर हमला बोल दिया लेकिन छुपकर बैठे माणा के लोगों ने बीर सिंह रौतेला और उसके दल को चारों ओर से घेर लिया। यह बीर सिंह रौतेला का आखिरी हमला साबित हुआ, माणा के ग्रामीणों ने बीर सिंह रौतेला समेत दल में शामिल सभी लोगों को मार डाला। लगातार तीन सालों तक सफल हमले से उत्साहित होकर झाला गांव के लगभग सभी युवा बीर सिंह रौतेला के साथ गए थे और गांव में महिलाओं के अलावा सिर्फ बुजुर्ग और बच्चे ही बचे थे। माणा गांव के ग्रामीणों ने बीर सिंह रौतेला और उसके पूरे दल की निर्ममता से हत्या कर उनके शवों को जंगली जानवरों के लिए फेंक दिया। वहीं, झाला में बीर सिंह रौतेला के चौथे धड़ के सफल होने का इंतजार कर रहे झाला के ग्रामीणों को लंबे समय तक जब बीर सिंह खबर नहीं मिली तो अगली गर्मियों की शुरूआत में आस पास के गांवों के कुछ युवा खोज खबर लेने माणा की तरफ पहुंचे तो वहां उन्हें जंगलों में बीर सिंह रौतेला और उसके दल के सदस्यों क्षत विक्षत शव मिले पड़े और शव गवाही दे रहे थे कि तीन बार की सफल धड़ मारकर बीर सिंह रौतेला चौथी बार माणा गांव से हार गया।
हालांकि, बीर सिंह रौतेला ने माणा गांव में चौथी धड़ के दौरान अपनी जान गंवा दी लेकिन अपने निर्दोष चरवाहे साथियों की मौत का बदला क्रूरता से लेने के लिए अपने उपला टकनौर क्षेत्र में वह एक वीर की तरह सम्मान पाने लगा था। उपला टकनौर क्षेत्र में बीर सिंह रौतेला को आज भी वीर यानि भड़ माना जाता है। झाला गांव में बीर सिंह रौतेला का दो सौ साल के करीब पुराना तीन मंजिला पुराना विशाल भवन इस बात की गवाही भी देता है कि माणा पर धड़ मारने और क्षेत्र में अपने ताकत के दम पर उसकी आर्थिक स्थिति अन्य ग्रामीणों के मुकाबले कई ज्यादा बेहतर थी और वह तिब्बत सीमा से सटे उस इलाके में राजसी ठाठ बाट में रहा करता था।