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कैंसर दिवस : गंभीर हो रही स्थिति, कैंसर के लक्षणों को पहचानें और इलाज शुरू कराएं

-ज्यादातर मामलों में आखिरी स्टेज में उपचार करवाने पहुंच पाते हैं मरीज, बढ़ते कैंसर मामलों से विशेषज्ञ भी चिंतित
-बीते साल देश में 15 लाख के करीब लोग आए कैंसर की चपेट में, उत्तराखंड में ही बीते साल 8 लाख लोगां में कैंसर के लक्षण मिलने पर स्क्रीनिंग की गई
PEN POINT, देहरादून।
राज्य की पिछली विधानसभा में विधानसभा सत्र के दौरान कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत की भाषण देते हुए तबीयत खराब हुई, वह गश खाकर गिर पड़े। आनन फानन अस्पताल पहुंचाने पर और शुरूआती जांच में पुष्टि हुई कि उनके शरीर के भीतर कुछ गंभीर चल रहा है। आगे की जांचों से कैंसर की पुष्टि हुई, वह उपचार के लिए विदेश रवाना हो गये लेकिन महीने दो महीने के उपचार के बाद भी वह बच नहीं सके और उनका निधन हो गया।
दिसंबर 2020 को आम दिन की तरह मार्निंग वॉक से लौटने के बाद गंगोत्री विधायक गोपाल सिंह रावत चलने फिरने में खुद को अक्षम पाने लगे, पैरों का दर्द इतना बढ़ गया कि एक जगह से हिल पाना भी मुश्किल था। उत्तरकाशी से देहरादून अस्पताल पहुंचाए गए, शुरूआती जांच में उनके कैंसर से ग्रसित होने का पता चला, आगे की जांच से पता चला कि वह कैंसर के आखिरी स्टेज में है, मुंबई स्थित प्रसिद्ध एचएन रिलायंस अस्पताल में तीन महीने चले लंबे उपचार के बाद भी वह बचाए नहीं जा सके और 22 अप्रैल 2021 को कैंसर से जूझते हुए देहरादून में उनका निधन हो गया।
दोनों नेताओं का व्यस्त जीवन, लोगों के बीच घिरे रहने, शरीर में चल रही गड़बड़ी की तरफ ध्यान न देने का नतीजा था। वह शरीद के अंदर चल रही गड़बड़ी को सामान्य दर्द मानकर पेन किलर से काम चलाते रहे और दिन के 14-16 घंटे तक समर्थकों, कार्यकर्ताओं से घिरे रहते थे। एक दिन जब शरीर के अंदर चल रही गड़बड़ी ने बड़ा रूप ले लिया और इसका अहसास हुआ तो इनके पास कोई विकल्प नहीं थे।

उत्‍तराखंड में तेजी से बढ़े कैंसर के मामले
यह समस्या सिर्फ इन दो नेताओं के साथ ही नहीं रही बल्कि लाखों लोग इस लापरवाही से कैंसर के आखिरी स्टेज तक पहुंचने पर ही यह महसूस कर पाते हैं। विभिन्न रिपोर्टों और आईसीएमआर के आंकड़ों की मानें तो उत्तराखंड में बीते एक दशक में कैंसर के मामलें राष्ट्रीय औसत से ज्यादा बढ़े हैं। 2014 में जहां राज्य में विभिन्न तरह के कैंसर के 11,240 मरीज थे तो 2020 में यह संख्या 35 हजार पार पहुंच गई। वहीं, बीते साल ही राज्य के अलग अलग अस्पतालों में 8 लाख से अधिक लोगों में कैंसर के लक्षण देते हुए उनकी स्क्रीनिंग की गई। 2014 से 2016 तक राज्य में कैंसर के मामलों में 10 फीसदी से अधिक का उछाल दर्ज किया गया जो राष्ट्रीय औसत 9 फीसदी से ज्यादा था। उत्तराखंड में स्त्री रोग विशेषज्ञों से लेकर कैंसर रोग विशेषज्ञ भी मानते हैं कि राज्य में हर वर्ष एक हजार के करीब महिलाएं स्तन कैंसर की शिकार होती हैं जिनमें से ज्यादातर उपचार के लिए तब चिकित्सक के पास पहुंचती है जब यह बीमारी गंभीर रूप ले लेती है। यह चिंताजनक है।

अस्‍पतालों में बढ़ी कैंसर मरीजों की तादाद
एम्स ऋषिकेश में कैंसर उपचार व्यवस्था दम तोड़ रही है। ऐसे में मरीजों के पास कैंसर उपचार के लिए जौलीग्रांट स्थित हिमालय अस्पताल के कैंसर रिसर्च संस्थान और देहरादून में महंत इंद्रेश अस्पताल में कैंसर यूनिट के तौर पर विकल्प हैं। हर दिन श्री महंत इंद्रेश अस्पताल कैंसर यूनिट में ही साल भर में तीस हजार से अधिक कैंसर मरीज उपचार, जांच, भर्ती होने पहुंचे हैं। जबकि जौलीग्रांट स्थित कैंसर रिसर्च संस्थान में साल भर में 30 हजार से अधिक मरीज उपचार करवाने पहुंचते हैं। वहीं, दून मेडिकल कॉलेज देहरादून में बीते साल कैंसर वार्ड शुरू किया लेकिन यहां एक ही कैंसर चिकित्सक तैनात हो पाए है जिस कारण लोगां को उपचार, स्क्रिनिंग के लिए अन्य निजी अस्पतालों का रूख करना पड़ रहा है।

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