छम्मी लाल ढौंढियाल: उत्तराखंडी समाज की सबसे लोकप्रिय रामलीला के प्रणेता
Pen Point, Dehradun : उत्तराखंड समेत देश के कई राज्यों में रहने वाले उत्तराखंडी लोगों का रामलीला से गहरा जुड़ाव रहा है। समय के साथ उत्तराखंड में कई रामलीला प्रचलन में आती गई। लेकिन गढ़वाल के अधिकांश हिस्सों में सबसे ज्यादा अगर किसी रामलीला का चलन है, वह है प्रसिद्ध निर्देशक छम्मीलाल ढौंढियाल की श्री सम्पूर्ण रामलीला अभिनय। इस किताब पर आधारित शानदार और प्रभावशाली गायन और संवाद शैली की सम्पूर्ण रामलीला का मंचन बेहद आकर्षक रूप में दशकों से किया जाता रहा है। देश के कई शहरों में पहाड़ी समाज के लोग इस रामलीला को आज भी आत्मसात किये हुए हैं। यही वजह है जहां भी उत्तराखंडी लोग बसे हैं, वहां के गली-मोहल्लों, स्कूल, क्लबों, रामलीला मंडलियों, समितियों के जरिये मंचित रामलीला के नाटक के सभी किरदारों के अभिनय के नाटकीय रूपांतरण देखने को मिल जाते हैं। जिसमें पितृभक्त श्रवण दृश्य, रावण तपस्या, रामजन्म, रामसीता विवाह, वनवास, लंका दहन, राम विजय के सम्पूर्ण अभिनय गायन और संवाद शैली में दर्शकों को नाटक कला के सभी सोपानों से भावविभोर कर देते हैं। निर्देशक और सम्पादक छम्मीलाल ढौंडियाल की श्री सम्पूर्ण रामलीला अभिनय किताब में रामलीला से जुड़े हुए तामाम प्रसंगों को बड़ी ही बारीकी से एक दूसरे से पिरोया गया है, जो मंच पर अभिनय कर रहे कलाकारों के साथ ही दर्शकों को बांधे रखने में पूरी तरह कारगर है।
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इसमें कोई दो राय नहीं कि पूरे भारत सहित उत्तराखंड में भी राम सनातन धर्म आस्था के प्रतीक पुरुष माने जाते हैं। ऐसे में यहाँ भी रामलीला मंचन से जुड़ी हुई करीब दो शताब्दियों से भी पुरानी समृद्ध परंपरा रही है। यहाँ रामचरितमानस के कथानक पर आधारित रामलीला के सभी चरित्र दर्शकों के मन के साथ जुड़े हुए देखे जा सकते हैं। इसलिए यहाँ घर-परिवारों में भी राम कथा से जुड़े हुए नाम रखने की परम्परा को बखूबी देखा जा सकता है। छम्मीलाल ढौंडियाल की श्री सम्पूर्ण लमलीला अभिनय किताब सीधे रामचरितमानस से प्रभावित दिखती है।
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इसमें अवधी के साथ ही उर्दू और पारसी भाषा का समृद्ध तारतम्य दिखता है, जो आसानी से सबकी समझ में आ जाती है। इस किताब में दोहा, चौपाई, प्रमुख रूप से शामिल किये गए हैं। संपादक ने इसे और प्रभवशाली बनाने के लिए गद्य संवाद को सरलता के साथ ही शेरो-शायरी के दोहरे संवादों के जरिये बहुत ही रोचक ढंग से पिरोने का काम किया है। ऐसे दृश्य दर्शकों को उत्साहित और उनका मनोरंजन करने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।
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उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के पौड़ी जिले में कल्जीखाल, लैंसडाउन, कोट्द्वार, सुमाड़ी, देवप्रयाग, बीरोंखाल, नौगांव-स्यूंसी, थलीसैण, राठ क्षेत्र, चौथान, नैनीडांडा, द्वारीखाल और यमकेश्वर ब्लॉक के कई गाँवों में छम्मीलाल ढौंडियाल रचित सम्पूर्ण रामलीला दशकों से बहुत प्रचलित रही है। इसमें गायन और संवाद शैली की रामलीला को सशक्त करने का काम किया गया है। यह रामलीला गढ़वाल से बाहर भी बेहद लोकप्रिय है। राष्ट्रीय राजधानी और एनसीआर के कई इलाकों में शानदार संगीत के साथ यह रामलीला आयोजित की जाती है। इसके अलावा इस बेहद लोकप्रिय रामलीला का मंचन गुजरात, राजस्थान, चंडीगढ़, मुंबई, हरियाणा के फरीदाबाद और कई राज्यों में पहाड़ी समाज के लोग कई दशकों से करते आ रहे हैं।
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करीब 1980 के दशक से गांव से लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हर साल गढ़वाली समाज की तरफ से आयोजित रामलीलाओं में लगातार अभिनय करने वाले जगजीत सिंह कण्डारी बताते हैं कि बीते तीन-चार दशक से वे खुद छम्मीलाल कृत श्री सम्पूर्ण रामलीला अभिनय के तहत होने वाली रामलीलाओं के मंचन में सक्रिय रहे हैं। उनके मुताबिक इस रामलीला में अभिनय करने से जो आनंद और सुखानुभूति होती है, उसकी किसी और माध्यम से दिखने वाली रामलीलाओं से कोई तुलना नहीं की जा सकती है। जगजीत बताते हैं, उन्होंने जब से होश संभाला और गांव से लेकर शहरों में कई तरह की रामलीलाओं को देखने का भी अनुभव रहा है, लेकिन जो जुड़ाव श्री सम्पूर्ण रामलीला अभिनय के मंचन से पैदा होता उसकी कोई भरपाई कहीं और देखने को नहीं मिलती है। हालांकि उन्होंने कहा कि उन्हें कभी छम्मीलाल ढौडियाल जी से मिलने का मौक़ा नहीं मिल पाया, जिसका उन्हें हमेशा मलाल रहता है।
पौड़ी के ढौंड गांव के थे छम्मीलाल ढौंडियाल
छम्मी लाल ढौंडियाल पौड़ी गढ़वाल जिले के ढौण्ड के रहने वाले थे, इनका जन्म ढौंढियालस्यूं पट्टी के इसी गांव में 25 नवम्बर 1928 में हुआ था। बचपन से ही इनका रुझान नाटक कला की तरफ था। जो लगातार समय के साथ आगे बढ़ता गया। वे एयरफोर्स मुख्यालय में फोटोग्राफर के पद पर सरकारी सेवा में दिल्ली में तैनात थे। इनकी एक और किताब लवकुश नाटक भी काफी सराही जाती है। इसके अलावा वे “जनि करिलु, तनी भरिलु” गढ़वाली फिल्म के निर्माता, निर्देशक और अभिनेता भी रहे। छम्मीलाल ढौंडियाल अपने पूरे परिवार के साथ जिनमें उनकी पत्नी, चार बेटियां और दो बेटों के साथ जो दिल्ली के विभिन्न इलाकों में रहे, उन्होंने अपनी सबसे लोकप्रिय किताब श्री सम्पूर्ण रामलीला अभिन्य किदवई नगर दिल्ली से ही प्रकाशित की। इसके अलावा उन्होंने पहाड़ के कई गाँव में बनी रामलीला कमेटियों को रामलीला अभिनय के लिए प्रेरित करने के साथ ही प्रशिक्षित करने का बहुत बड़ा काम किया। वहीं दिल्ली में गढ़वाल के रहने वाले लोगों की दर्जनों रामलीला समितियों ने उनके दिशा निर्देशन में रामलीला को आगे बढ़ाया और इनमें से अधिकाशं रामलीला कमेटियां देश के विभिन्न राज्यों में आज भी सक्रिय हैं और हर साल रामलीलाओं का आयोजन कर रही हैं। इसके बाद उनका परिवार आरके पुरम सेक्टर- 3 में शिफ्ट हो गया। प्रख्यात रामलीला निर्देशक और संपादक छम्मीलाल ढौंडियाल का निधन दिल्ली में 23 अप्रैल 2017 को हुआ। छम्मीलाल ढौंडियाल ने अपने इसी घर में अंतिम सांस ली।