सूखे की चपेट में पहाड़, समय से पहले ही पेड़ों पर फूल
– पहाड़ों में बीते डेढ़ महीने से नहीं गिरी बारिश की बूंद, जंगल आग की चपेट में, पारा बढ़ने से समय से पहले शुरू हुआ परागण
PEN POINT, DEHRADUN : अमूमन इन दिनों पहाड़ों की ऊंची चोटियां बर्फ से ढकी रहती है तो बर्फ की चादर ओढ़े पहाड़ों से उठने वाली बर्फीली हवा से खुद को बचाना भी बड़ी जद्दोजहद होती है। जो इलाके स्नो ट्रैकिंग के लिए प्रसिद्ध है उन इलाकों में इन दिनों बर्फीले रास्तों से ट्रैकिंग करने के शौकीनों की भीड़ जुटी रहती है लेकिन इस साल न तो बर्फ है लिहाजा बर्फीले रास्तों पर ट्रैकिंग करने के शौकीनों की भीड़ भी नदारद है। सर्दियों के दौरान चटख धूप और साफ नीले आसमान की बजाए इन दिनों चारों तरफ छाया धुंआ और धू-धू जलते जंगल भी पहाड़ों में क्लाइमेट चेंज यानि जलवायु परिर्वतन की कहानी कह रहे हैं। डेढ़ महीने बीत चुके हैं लेकिन पहाड़ों में एक बूंद बारिश भी नहीं बरसी। केदारनाथ से लेकर हेमकुंड साहिब समेत तमाम ऊंचाईं वाले पहाड़ बर्फविहीन हो चुके हैं। जलवायु परिर्वतन का यह रूप डरावना है। पहाड़ों में बर्फवारी और बारिश न होने के चलते पेड़ों के लिए समय से काफी पहले ही वसंत ने भी आगमन दे दिया है। दहकते जंगल, समय से पहले पेड़ों पर फूलते फूल, धूल, धुएं के गुबार पहाड़ की चिंता बढ़ा रहे हैं।
ऊंचाई वाले इलाकों में इन दिनों ग्रामीण अमूमन लंगूर, जंगली सुअर समेत अन्य जंगली जानवरों से अपनी फसलों को बचाने की जद्दोजहद में लगे रहते थे। लेकिन, बीते सालों तक इन दिनों खेती फसल को नुकसान पहुंचाने वाले लंगूर, जंगली सुअर जैसे जानवर इन दिनों आबादी वाले इलाकों में दिख नहीं रहे हैं, यूं तो ऊंचाई वाले इलाकों में बसे ग्रामीणों के लिए यह राहत की बात होनी चाहिए थी कि लेकिन ग्रामीणों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही है। डेढ़ महीने से अधिक समय बीत गया है लेकिन उत्तरकाशी जनपद समेत गढ़वाल के बड़े हिस्से में एक बूंद बारिश नहीं बरसी है। जो जंगल इन दिनों बर्फ की चादर में कैद रहते थे वहां जंगल जल रहे हैं। तो दूसरी ओर लंबे समय से बारिश बर्फवारी न होने से जंगलों में समय से काफी पहले ही पेड़ों पर फूल खिलने लगे हैं। लिहाजा, जंगली जानवरों को भी जंगलों में बर्फ न होने के कारण भोजन की तलाश में आबाद इलाकों का रूख नहीं करना पड़ रहा है तो इस लंबे सूखे के कारण फसलों पर भी खतरा मंडराने लगा है तो साथ ही आने वाले महीनों में पेयजल संकट का खतरा भी पैदा होने लगा है।
पर्यावरण विशेषज्ञ बता रहे हैं कि बारिश न होने का कारण अल नीनो प्रभाव है तो साथ ही जलवायु परिर्वतन के कारण लगातार तापमान में वृद्धि भी इसका प्रमुख कारण है। पहाड़ों में इन दिनों खेतों में गेहूं, सरसों, जौ और मटर की फसल बोई गई है लेकिन बारिश न होने और सिंचाई की व्यवस्था न होने से यह फसल पूरी तरह से सूखने की कगार पर है। जंगल आग की चपेट में है, सर्दियों के लिए सुरक्षित रखे गए पहाड़ों के चारागाहों में उगी घास भी आग अपने चपेट में ले चुकी है लिहाजा फिलहाल मवेशियों के लिए चारे का भी संकट पैदा हो चुका है। हालांकि, यह इकलौता साल नहीं है जब मौसम ने ऐसा मिजाज दिखाया हो। बीते सालों से लगातार मौसम के पैट्रन में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। बेमौसमी बारिश, बर्फवारी फसलों के लिए श्राप बनकर बरस रही है। बीते साल ही उत्तरकाशी जनपद के टकनौर क्षेत्र में दिसंबर जनवरी फरवरी तो सूखी बीत गई लेकिन मार्च में आलू की बुआई का दौर शुरू हुआ तो बेमौसमी बारिश और बर्फवारी का ऐसा दौर शुरू हुआ जो लगातार अगस्त महीने तक जारी रहा। लिहाजा आलू समेत राजमा, मटर, गेहूं की फसल बर्बाद हो गई।
पहाड़ों में बारिश बर्फवारी न होने से पारे में भी रेकार्ड बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। आलम यह है जिन पेड़ों पर अप्रैल महीने की शुरूआत में कोंपले फूटनी थी उन पेड़ों की फ्लवारिंग शुरू हो गई है। पारे में बढ़ोत्तरी के चलते बीते साल से ही फलदार वृक्षों समेत जंगली पेड़ों के व्यवहार में भारी परिवर्तन देखने को मिल रहा है।