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जयंती विशेष : जब स्‍वामी विवेकानंद ने ईडन गार्डन पर लिये थे सात विकेट

Pen Point, Dehradun : स्‍वामी विवेकानंद दुनिया को सनातन और भारतीय संस्‍कृति से परिचित कराने वाले महान संत थे। उन्‍होंने वेदांत दर्शन के अद्वैत वाद का अनुसरण करते हुए वैज्ञानिक दृष्टि से इसकी मिमांसा की थी। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि स्‍वामी विवेकानंद एक बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ी भी रहे। 1880 में जब भारत में क्रिकेट आज की तरह लोकप्रिय नहीं था, तब एक मैच में युवा नरेंद्रनाथ दत्‍त ने सात विकेट लेकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था। इस मैच में उन्होंने कोलकाता के टाउन क्लब का प्रतिनिधित्व किया।

ऐतिहासिक दस्‍तावेजों में दर्ज जानकारियों के मुताबिक राष्‍ट्रवादी आंदोलन के नेता हेमचंद्र घोष की नजर नरेंद्रनाथ दत्त पर पड़ी। उन्‍होंने उनके चुस्‍त और गठीले शरीर को देखकर बैट और बॉल में हाथ आजमाने को कहा। जल्‍द ही अध्‍यात्‍म की ओर अग्रसर होने को तैयार नरेंद्रनाथ इस अवसर को पाकर खुश हुए, उन्होंने कहा कि वह क्रिकेट टीम का हिस्सा बनने और उसमें अपनी प्रतिभा का पता लगाने की कोशिश करना पसंद करेंगे।

हेमचंद्र घोष के मार्गदर्शन में, युवा स्वामीजी ने एक गेंदबाज की भूमिका निभाई और ईडन गार्डन्स में कलकत्ता क्रिकेटिंग क्लब टीम के खिलाफ एक कांटे के मैच में टाउन क्लब का प्रतिनिधित्व किया। उस समय, गार्डन सिर्फ 20 साल पुराना था और भारत-ब्रिटिश क्रिकेट गतिविधियों के लिये जाना जाता था। यह एक ऐतिहासिक मैच था और विवेकानंद के लिए बेहद खास था। उन्‍होंने पूरे आत्‍मविश्‍वास के साथ घोष के बताई बातों को गेंदबाजी में अपनाया। जल्द ही, विवेकानन्द की गेंदबाजी ने क्रीज पर मौजूद बल्लेबाजों पर को परेशान करना शुरू कर दिया। उन्होंने एक के बाद एक विकेट चटकाए और सात विकेट लिए। इस दौरान विपक्षी टीम के सिर्फ 20 रन बने।

हालांकि बल्ले और गेंद के साथ बहुमुखी प्रतिभा के धनी संत के खेल के बारे में ज्‍यादा जानकारी नहीं मिलती। लेकिन यह दस्तावेजों में दर्ज है कि वह टाउन क्लब के सदस्य थे और शारीरिक गतिविधियों उत्‍साह से भाग लेते थे। क्रिकेट के अलावा उन्होंने फुटबॉल भी खेला और दोस्तों को व्यायाम करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके अलावा तलवारबाजी और मुक्केबाजी में भी उन्‍होंने खास कौशल का परिचय दिया था। लेकिन आध्‍यत्मिक रूझान और मेधा के धनी नरेंद्रनाथ ने खेलों में अपना भविष्‍य नहीं बनाया। स्‍वामी रामकृष्‍ण के संपर्क में आने के बाद उन्‍होंने अलग राह पकड़ी। दुनिया जानती है कि किस तरह उन्‍होंने भारतीय संस्‍कृति और दर्शन की दुनिया भर में अलख जगाई।

12 जनवरी को हर साल उनकी जयंती को युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके विचार और उपदेश आज भी युवाओं को संघर्ष के लिये प्रेरित करते हैं। उनका कहना था कि संघर्ष का पथ छोड़ना नहीं चाहिए और इसके लिये युवाओं को बलवान होने की जरूर है। शारीरिक शक्ति और मानसिक एकाग्रता का बेजोड़ मिश्रण खेलों में उनके बेहतर प्रदर्शन का कारण था। स्‍वामी विवेकानंद ने बच्‍चों के सर्वांगीण विकास को लेकर उनके निर्भीक होने की जरूरत भी बताई थी। उनका मानना था कि समाज में कई परंपराएं और कारक बालकों में भय भर देते हैं। उन्‍हें ऐसी परंपराओं का कारणों से दूर रखना होगा, तभी शक्तिशाली समाज बन सकेगा। कहा जा सकता है कि स्‍वामी विवेकानंद अपने संपूर्ण व्‍यक्तित्‍व के साथ एक आलराउंडर थे।

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