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क्लाइमेंट चेंज : मानसून खत्म होने से पहले ही आया पेड़ों का वसंत

– मौसम में बदलाव से मानसून खत्म होने से पहले ही पतझड़ के साथ ही फिर हरे भरे होने लगे हैं अखरोट के पेड़
PEN POINT, DEHRADUN : अमूमन इन दिनों अगर आप गढ़वाल के ऊंचाई वाले आबाद क्षेत्रों से गुजरों तो अखरोट के पेड़ों का पतझड़ शुरू हो चुका होता है। अखरोट की फसल तैयार हो चुकी है तो इसके साथ ही अखरोट के पेड़ों से तेजी से पत्ते गिरने भी शुरू हो चुके होते हैं और सितंबर महीने के दूसरे पखवाड़े की शुरूआत में अखरोट के पेड़ पूरी तरह से खाली होकर सर्दियों और पतझड़ की गवाही देने लगते हैं। लेकिन, इस साल हालात कुछ दूसरे हैं। अगर आप इन इलाकों से गुजरेंगे तो देखेंगे कि अखरोट के पेड़ों पर फिर से पत्ते खिल रहे हैं, अखरोट के पेड़ों का वसंत इस बार मानसून खत्म होने से पहले ही शुरू हो गया है। विशेषज्ञ इसे ‘माइक्रो क्लाइमेट चेंज’ का नतीजा मान रहे हैं।
क्लाइमेंट चेंज यानि पर्यावरण परिर्वतन पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। असमय भारी बरसात, लंबा सूखा, स्नो लाइन का तेजी से पीछे खिसकना तो क्लाइमेट चेंज का असर है ही साथ ही फसलों और पेड़ों पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। जनपद उत्तरकाशी का रैथल गांव क्लाइमेट चेंज का गवाह बना हुआ है। गांव में इन दिनों यूं तो अखरोट के पेड़ पतझड़ की चपेट में आकर खाली होने लगते हैं। गांव में सर्दियां भी दस्तक दे चुकी है लिहाजा मानसून के दौरान पसरी हरियाली भी रंग बदलने लगी है। लेकिन, इन दिनों ग्रामीणों के लिए अखरोट के वसंत शुरू होने की यह घटना अजीब सी लग रही है। अखरोट में नए पत्ते फूट रहे हैं, इन दिनों बिना पत्तों के दिखने वाले अखरोट के पेड़ हरे पत्तों से लकदक हैं। यह स्थिति में अमूमन अप्रैल मई में होती है लेकिन मौसम में हो रहे बदलावों के चलते इस बार अखरोट के लिए वसंत जैसी स्थिति मानसून खत्म होने और सर्दियां शुरू होने से पहले ही बन गई जबकि वसंत ऋतु के आगमन में अभी भी छह महीने से ज्यादा का समय बचा हुआ है।
इस पर वनस्पति विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ कहते हैं कि यह मौसम में हुए बदलावों का नतीजा है। विशेषज्ञों की माने तो इन इलाकों में इस साल सर्दियां सूखी रही तो मार्च अप्रैल से लगातार अगस्त दूसरे पखवाड़े तक भारी बारिश से उचित तापमान नहीं मिल सका वहीं अगस्त दूसरे पखवाड़े के बाद अचानक तापमान में भारी वृद्धि होने से क्लाइमेट चेंज के लिहाज से संवेदनशील पेड़ों में इस तरह का बदलाव देखने को मिल रहा है।
कलकत्ता स्थित बोटनिकल संस्थान में कार्यरत विशेषज्ञ संजय कुमार बताते हैं कि क्लाइमेट चेंज की वजह से पेड़ों की फिनोलॉजी में बदलाव आ रहा है। वह बताते हैं कि मौसम में हो रहे बदलावों से ऋतुओं का चक्र गड़बड़ाने लगा है तो इसका सबसे बुरा असर हिमालयन क्षेत्र की जैव विवधता पर पड़ रहा है। सर्दियां सूखी जा रही है, सर्दियों में बर्फवारी कम होने से बुरांश समय से पहले खिल रहा है तो अप्रैल में उगने वाले फल आमील जनवरी महीने में भी लगने शुरू हो रहे हैं।
फिनोलॉजी को लेकर संजय कुमार समझाते हैं कि फिनोलॉजी पेड़ों के पुष्पन यानि फ्लवारिंग, कोंपल, फलों के लगने की प्रक्रिया है और क्लाइमेट चेंज का सबसे बुरा असर पेड़ों की फिनोलॉजी पर पड़ रहा है क्योंकि यह सीमित क्षेत्र और भौगोलिक लिहाज से एक समान क्षेत्रों में हो रहा है तो इसे माइक्रो क्लाइमेट चेंज कहा जाता है।
हाल के सालों में हिमालयन क्षेत्र में कई पेड़ पौधों में क्लाइमेट चेंज का असर देखने को मिलता रहा है। बुरांश इस लिहाज से सबसे ज्यादा संवेदनशील है। सर्दियों में कम बर्फवारी से और तापमान में बढ़ोत्तरी से मार्च महीने में खिलने वाला बुरांश कई बार दिसंबर अंत में ही खिलता दिखने लगा है और समय पहले खत्म भी हो रहा है।
ऐसे में अखरोट के साथ इस तरह का बदलाव भी क्लाइमेट चेंज का ताजा उदाहरण है। हालांकि, हिमालय का यह क्षेत्र हाल के सालों में क्लाइमेट चेंज से बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। सर्दियों में बर्फवारी न होने से और मई जून में भारी बारिश से नकदी फसलों के उत्पादन के प्रसिद्ध उत्तरकाशी जनपद के इस क्षेत्र में नकदी फसलों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। सर्दियों में बर्फवारी बेहद कम होने से मार्च महीने तक ही पारा मई जून जैसा अहसास कराने लगता है तो मई जून में भारी बारिश से मानसून वाले हालात पैदा होने लगते हैं। जिसका असर आलू, राजमा, मटर जैसी फसलों पर हो रहा है। रैथल में ही बीते पांच सालों में अगस्त महीने में बोया जाने वाला मटर जो इस गांव की प्रमुख नकदी फसल था अब खेतों से गायब हो गया है।

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