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सिरिल रेडक्लिफ : जिसकी खींची लाइन से भारत दो टुकड़ों में बंट गया

-भारत पाकिस्तान के बीच गहरी रेखा खींचने वाले शख्सकी आज जयंती
PEN POINT DEHRADUN : दुनिया भर में जिन पड़ोसी मुल्कों में सबसे बड़ी दुश्मनी है उनमें भारत और पाकिस्तान सबसे अव्वल हैं। सात दशक पहले तक एक मुल्क रहे इन देशों के बीच 14 अगस्त 1947 को एक गहरी लकीर खींच दी गई। जिसने भारत को दो हिस्सों में बांट दिया और यह इतनी गहरी खींची गई कि आज तक भर नहीं पाई। इस लकीर को नाम मिला रेडक्लिफ लाइन, और इसे खींचने वाले शख्‍स का नाम था सिरिल रेडक्लिफ। आज उनकी जयंती है। 30 मार्च 1899 में वेल्स में जन्मे सिरिल रेडक्लिफ ने भारतीय इतिहास को एक गहरा जख्म देने के काम को अंजाम दिया। जिसके कारण हिंदु, मुस्लिम, सिक्ख समेत अन्य धर्मों के बीस लाख लोगों की जानें चली गई और एक भरा पूरा मुल्क दो हिस्सों में बंट गया। एक देश के नक्शे में लकीर खींचने वाले इस शख्स की वजह से करोड़ों लोगों को एक कभी न भूलने वाली वेदना से गुजरना पड़ा। अपना घर बार छोड़कर वर्षों तक दुश्वारियों के साथ जिंदगी गुजारनी पड़ी। सर सिरिल रेडक्लिफ ब्रिटेन के वेल्स में रहने वाले एक सेना के कप्तान के बेटे थे। उनकी शिक्षा ब्रिटेन के हेली बेरी कॉलेज में हुई थी. और ऑक्सफोर्ड में पढ़कर एक वकील के रूप में प्रसिद्ध  हुए थे।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वे सूचना मंत्रालय में आए और 1941 में उसके डायरेक्टर जनरल बन गए और 1945 में बार में वापस लौट गए थे। रेडक्लिफ पहले अपने जीवन में कभी पेरिस से पूर्व तक नहीं गए थे और उन्हें इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट के पास होने के बाद दो सीमा समितियों का चेयरमैन बनाया गया था। उनकी यह कोलोनियल ड्यूटी थी कि वे दो देश भारत और पाकिस्तान की सीमा रेखा इस तरह से खींचें कि भारत के हिस्से में अधिकांश सिख और हिंदू आएं और पाकिस्तान के हिस्से में अधिकांश मुस्लिम इलाके।
कम लोग जानते हैं कि रेडक्लिफ को इस काम पूरा करने के लिए केवल 5 हफ्ते का समय दिया गया था जो कि काम के आकार को देखते हुए बहुत ही कम समय था। रेडक्लिफ ने अपना काम निपटाकर नक्शे 9 अगस्त 1947 को ही दे दिए थे। लेकिन इसका औपचारिक ऐलान पाकिस्तान की आजादी के तीन और भारत की आजादी के दो दिन बाद यानि 17 अगस्त 1947 को हुआ था।

भारत को नहीं जानते थे इसलिए चुना गया
ब्रिटिश सरकार ने रेडक्लिफ को ही इस काम के लिए सिर्फ इसलिए चुना था क्योंकि उन्हें भारत के बारे में बिल्कुल जानकारी नहीं थी। यही रेडक्लिफ की सबसे प्रमुख योग्यता थी। अंग्रेज इस बात से वाकिफ थे कि भारत के बीच खींची गई यह रेखा भविष्य में अंग्रेजों की भूमिका को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा करेगी लिहाजा अंग्रेज चाहते थे कि यह काम ऐसा शख्स करें जो भारत के बारे में कुछ न जानता हो लिहाजा अंग्रेजों को इस मामले में निष्पक्षता का सर्टिफिकेट मिल जाता। रेडक्लिफ का भारत से कोई लेना देना नहीं था. इसलिए उन्हें एक हिंदू और एक मुस्लिम वकील की मदद से विभाजन रेखा की जिम्मेदारी दी गई।

नहीं लिया अपने काम का पैसा
रेडक्लिफ ने विभाजन के लिए किए गए काम की एक कौड़ी भी अंग्रेजों से नहीं ली। लाशों के ढेर और विभाजन का सबसे बड़ी मानव त्रासदी होते देख उन्होंने अंग्रेजी सरकार से अपना पैसा नहीं लिया। उन्होंने सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत के आदेशों का पालन किया था। बाद में उन्होंने स्वीकारा था कि अगर उन्हें दो तीन साल का समय मिल जाता तो वे अपना काम और बेहतर कर पाते और जिससे शायद बेहद कम लोगों को अपनी जान गंवाने के साथ ही यह विभाजन इतिहास का सबसी बड़ी मानव त्रासदी साबित न होती।  जब रेडक्लिफ को पता चला कि उनकी काम से दोनों ही पक्ष (भारत और पाकिस्तान) खुश नहीं हैं, तो उन्होंने इसका काम को मिलने जा रहा पैसा नहीं लिया।

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