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पुण्यतिथि विशेष: ‘शांति निकेतन’ को उत्तराखंड में स्थापित करना चाहते थे गुरूदेव

आज गुरूदेव रबिंद्रनाथ टैगोर की पुण्यतिथि, उत्तराखंड से खासा लगाव रहा रबिंद्रनाथ टैगोर का
नैनीताल के रामगढ़ को ही अपना ठिकाना बनाना चाहते थे, पर बेटी व पत्नि के निधन से दुखी होकर लौट गए
PEN POINT, DEHRADUN : साल था 1913, यानि ठीक 110 साल पहले। नोबेल पुरस्कार कमेटी साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार की घोषणा करने वाली थी। भारत तो क्या एशिया महाद्वीप से अब तक किसी को भी दुनिया का सर्वाेच्च माना जाने वाला यह पुरस्कार नहीं मिला था। नोबेल समिति ने साल 1913 का साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार भारतीय लेखक रबिंद्रनाथ टैगोर को उनकी कृति ‘गीतांजली’ के लिए प्रदान किया। नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह पहले भारतीय व पहले एशिया मूल के व्यक्ति थे। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि नोबेल पाने वाली उनकी कृति ‘गीतांजली‘ का कुछ हिस्सा रबिंद्रनाथ टैगोर ने उत्तराखंड में भी लिखा था। वहीं, देश दुनिया में शिक्षा, संस्कृति के महत्वपूर्ण केंद्र ‘शांति निकेतन’ की स्थापना भी गुरूदेव रबिंद्रनाथ टैगोर उत्तराखंड में ही करना चाहते थे लेकिन उनके निजी में घटी कुछ घटनाओं के चलते उन्हें यह फैसला त्यागना पड़ा।
आज रबिंद्रनाथ टैगोर की पुण्यतिथि है। आज के ही दिन यानि सात अगस्त 1941 को संसार से विदा ली। महान कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, गायक, गीतकार, संगीतकार, चित्रकार, प्रकृतिप्रेमी, पर्यावरणविद और मानवतावादी रबिंद्रनाथ टैगोर ऐसे पहले भारतीय व एशियाई व्यक्ति थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला था, साथ ही उन्होंने भारत और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान भी लिखा। उनकी कृति ‘जन गण मन’ को भारत ने अपने राष्ट्रीय गान के तौर पर चुना तो उनकी कृति ‘ हमार सोनार बांग्ला’ को बांग्लादेश ने अपने गठन के बाद राष्ट्रीय गान के रूप में चुना।

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रामगढ़ स्थित वह भवन जहां रहकर रबिंद्रनाथ टैगोर ने गीतांजलि के कुछ हिस्से लिखे थे। यहां पर ही वह शांति निकेतन की स्थापना करना चाहते थे। फोटो साभार – राजू गुंसाई वरिष्ठ पत्रकार।

रबिंद्रनाथ टैगोर 1901 में पहली बार रामगढ़ पहुंचे। प्रकृति के सुकुमार कवि रबिंद्रनाथ टैगोर को उत्तराखंड के इस पहाड़ी हिस्से की मनोरम छटा मंत्रमुग्ध कर गई। उन्होंने यहां भविष्य की योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए 40 एकड़ जमीन खरीद ली और उसे नाम दिया हिमंती गार्डन। अब उसे टैगोर टॉप के नाम से जाना जाता है। साल 1903 में जब उनकी पत्नी मृणालिनी का निधन हो गया तो वह अपनी 12 वर्षीय बेटी रेनुका के साथ वापिस रामगढ़ लौट आए। बेटी रेनुका को भी टीबी ने अपनी चपेट में ले लिया था। रबिंद्रनाथ टैगोर को उम्मीद थी कि रामगढ़ की आबोहवा रेनुका की सेहत के अनुकूल रहेगी और उसे जानलेवा टीबी से शायद बचा सके। टैगोर रामगढ़ में विश्वभारती विश्वविद्यालय की स्थापना करना चाहते थे। जिसे बाद में उन्होंने शांति निकेतन के रूप में कोलकत्ता में स्थापित किया।
वह रामगढ़ में अपनी योजनाओं को आकार देने के साथ ही बेटी की सेहत सुधारने के काम में भी लगे हुए थे लेकिन टीबी ने उनकी 12 वर्षीय बेटी उनसे छीन ली। रामगढ़ में ही उन्होंने गीतांजलि में अपनी बेटी को समर्पित कविता लिखी। बेटी और पत्नी के असमायिक निधन से क्षुब्ध होकर वह कोलकत्ता चले गऐ और फिर लौट कर नहीं आए। उसके बाद उन्होंने कोलकत्ता में ही शांति निकेतन की स्थापना की।

अल्मोड़ा भी गए थे गुरूदेव टैगोर
रामगढ़ से जाने के बाद गीतांजलि के उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। इसके बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन में भी सक्रिय रहे। साल 1927 में रबिंद्रनाथ टैगोर अल्मोड़ा पहुंचे और वहां दास पंडित ठुलघरिया की मेहमानवाजी में रूके। इसके बाद अल्मोड़ा की प्राकृतिक सौंदर्यता से आकर्षित होकर टैगोर तीन से चार बार अल्मोड़ा पहुंचे। रबिंद्रनाथ टैगोर के अल्मोड़ा आने से उनसे प्रेरणा पाकर प्रख्यात लेखिका गौरा पंत शिवानी को भी आगे के अध्ययन के लिए शांति निकेतन जाने का मौका मिला था।

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