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पुण्यतिथि विशेष: 12 सालों में पांच बार उत्तराखंड आए थे स्वामी विवेकानंद

– देवभूमि से था स्वामी विवेकानंद को खासा लगाव, 1888 में पहली बार पहुंचे थे देवभूमि, 1901 में आखिरी बार आए थे चंपावत
PEN POINT, DEHRADUN : दुनिया को धर्म, आध्यात्म को लेकर नई दिशा देने वाले स्वामी विवेकानंद की आज पुण्यतिथि है। स्वामी विवेकानंद महान तेजस्वी प्रतिभा के धनी माने जाते रहे हैं। धर्म, आध्यात्म, जीवन को लेकर उनके विचार आज भी लोगों के लिए किसी धर्म ग्रंथ में लिखी बातों से कम नहीं है। शिकागों की धर्म संसद में अपने प्रसिद्ध भाषण के जरिए पूरे विश्व को भारतीय संस्कृति से रूबरू करवाने वाले स्वामी विवेकानंद को यूं तो कुल 39 साल की जिंदगी मिली थी लेकिन इतनी कम उम्र में जो आध्यात्म, संस्कृति को लेकर उनके विचारों से आज भी लोग प्रभावित होते हैं।
स्वामी विवेकानंद स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12जनवरी 1863 को मकरसंक्रति के दिन कलकत्ता एक कायस्थ जाति के परिवार में हुए था। इनके पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त को कलकत्ता हाई कोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे और मां का नाम भुनेश्वरी देवी जो एक धार्मिक विचार की महिला थी। बचपन का नाम नरेंद्र था और इनके 9 भाई बहन थे।
स्वामी विवेकानंद को हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड की इस धरती से विशेष लगाव था। यही कारण था कि बेहद कम उम्र पाने वाले स्वामी विवेकानंद ने सिर्फ 12 सालों में ही 5 बार उत्तराखंड का भ्रमण किया। दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत महान संत स्वामी विवेकानंद अपने जीवन के अंतिम समय उत्तराखंड के लोहाघाट स्थित अद्वैत आश्रम में बिताना चाहते थे।

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1897 में सिस्टर निवेदिता के साथ अल्मोड़ा में स्वामी विवेकानंद। स्रोत फेसबुक

स्वामी विवेकानंद ने पहली बार हिमालयी गोद में बसे इस राज्य की यात्रा साल 1888 में की थी। यह यात्रा विवेकानंद के रूप में न होकर नरेंद्र दत्त के रूप में की थी। पहली यात्रा शिष्य शरदचंद गुप्त (बाद में सदानंद) के साथ की थी। गुप्त हाथरस (उप्र) में स्टेशन मास्टर थे। नरेंद्र दत्त ने ऋषिकेश में कुछ समय बिताया और उसके बाद वह वापिस लौट गए थे।
इसके बाद दूसरी यात्रा स्वामी विवेकानंद के रूप में की। ऋषिकेश यात्रा के दो साल बाद यानि 1890 में अयोध्या से पैदल नैनीताल पहुंचे थे। प्रसान्न भट्टाचार्य के आवास पर छह दिन रुकने के बाद अल्मोड़ा से कर्णप्रयाग, श्रीनगर, टिहरी, देहरादून व ऋषिकेष पहुंचे। इस दौरान तप, ध्यान व साधना की। अल्मोड़ा के काकड़ीघाट में पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें आत्मज्ञान प्राप्त हुआ था। कसार देवी गुफा में कई दिनों तक ध्यान किया और उत्तिष्ठ भारत की प्रेरणा प्राप्त हुई।
स्वामीजी ने उत्तराखंड में तीसरी यात्रा शिकागो से लौटने के बाद 1897 में की। शिकागो में धर्म संसद में अपने प्रसिद्ध भाषण के बाद देश दुनिया में स्वामी विवेकानंद बहुत प्रसिद्धि पा चुके थे। अल्मोड़ा पहुंचने पर अल्मोड़ावासियों ने उनका फूलों की बारिश से स्वागत किया। अल्मोड़ा लाला बद्रीलाल साह के अतिथि के तौर पर पहुंचे स्वामी विवेकानंद ने देवलधार एस्टेट में स्थित गुफा में ध्यान लगाया था।
इसके साल भर बाद ही उन्होंने 1898 में चौथी यात्रा की। मई-जून 1898 में फिर उत्तराखंड के अल्मोड़ा पहुंचे। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अल्मोड़ा के थॉमसन हाउस से प्रबुद्ध भारत पत्रिका का फिर से प्रकाशन आरंभ किया। 222 साल पुराने देवदार के वृक्ष के नीचे भगिनी को दीक्षा दी। इस यात्रा में उन्होंने रैमजे इंटर कॉलेज में पहली बार हिंदी में भाषण दिया था।
अपनी अल्मोड़ा यात्रा की यात्रा के दो साल बाद 1901 में उन्होंने अपनी आखिरी हिमालय यात्रा और पांचवी यात्रा की।
1901 में मायावती के अद्वैत आश्रम में हुई थी। मायावती आश्रम का निर्माण करने वाले कैप्टन सेवियर की मृत्यु की खबर सुनने के बाद स्वामी विवेकानंद 170 किलोमीटर की दुर्गम यात्रा कर वह तीन जनवरी, 1901 को अद्वैत आश्रम लोहाघाट पहुंचे और 18 जनवरी, 1901 तक रहे। इस दौरान उन्होंने तप किया था। इस दौरान उन्होंने यहां जैविक खेती की शुरूआत भी की। 19 जनवरी 1901 को स्वामी विवेकानंद यहां से रवाना हुए। हालांकि, वह बाकी वक्त यहीं गुजारना चाहते थे लेकिन गिरते स्वास्थ्य के चलते उनके शिष्यों ने उन्हें यहां रूकने नहीं दिया।
लगातार लंबी यात्राएं और अत्यधिक श्रम के कारण स्वामी विवेकानंद का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था।
4 जुलाई 1902 को 39 साल की उम्र में उन्होंने बेलुर मठ में महासमाधि ली।

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