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गृहणी : आज का दिन गृहणियों को करें अपनी भावनाओं से समर्पित !

PENPOINT, DEHRADUN: राष्ट्रीय गृहणी दिवस बेहद ख़ास मौक़ा है। इस मौके पर राष्ट्रीय स्तर पर सदियों से गृहिणियों की भूमिका पर मंथन किया जाता है। ऐसे में हमारे देश में इस दिन को थोड़ा ख़ास बनाने की कोशिशें की जा रही हैं। इसी का असर है कि थोड़े स्तर पर ही सही गृहणियों की कड़ी मेहनत, समर्पण और प्रतिबद्धता को गंभीरता से लिया जाने लगा है। इसी कोशिश में यह अब विमर्श का विषय बन चुका है। महिलाएं आम तौर पर घरों के प्रबंधन की जिम्मेदारी निभाती हैं और परिवारों की देखभाल कराती हैं। परिवार जनों की हर एक ख्वाहिश का ख़याल रखती हैं।

लेकिन बावजूद इसके बड़ी संख्या में ऐसी मानसिकता वाले लोग भी गाहे बगाहे देखे और सुने जा सकते हैं जो गृहणी को आज भी तुच्छ समझते हैं। इसी का नतीजा है कि आज महिलाओं ने पढ़ लिख कर स्वावलंबी होना तय कर लिया है। क्योंकि वे यह सकारात्मक चाहत रखती हैं कि वे घर के अलावा बाहर भी पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल कर आगे बढ़ें। इतना ही नहीं उन्होंने इसके बावजूद भी अपने काम काज नौकरी पेशे के साथ ही घर-परिवार व अपनी गृहस्थी में संतुलन बनाए रखने की चुनौती को भी सीधे स्वीकार किया है। जिसे वे बहुत सफलता के साथ करने में सफल भी हो रही हैं।

हर साल 3 नवंबर को राष्ट्रीय गृहिणी दिवस के रूप में मनाया जाता है। एक तरह से यह दिन घर पर रहने वाली माँ, पत्नी को समर्पित है, जो अपना पूरा वक्त और जीवन अपने बच्चों, पति, परिवार और घर की देखभाल में बिताती देती हैं। यही जिम्मेदारी उन्हें चौबीसों घंटे व्यस्त रखती हैं। यानी उनका जीवन प्रियवर के लिए समर्पण करने और उसकी देखभाल करने में ही बीत जाता है।

गृहणियां यानी महिलाएं घर-परिवार में हर चीज को सही जगह पर रखने के लिए जितनी मेहनत और ध्यान देती हैं, वह कुछ शब्दों में बयां करना उनके साथ नाइंसाफ़ी होगी। बदलते दौर में देखा जा रहा है कि आज पुरुष भी बढ़-चढ़कर घर के तमाम काम काजों में महिलाओं का साथ दे रहे हैं। इतना ही नहीं पुरुषों को यह स्वीकार करने में भी कोई गुरेज नहीं होता कि वे गृह कार्यों में अपनी पत्नी या माँ-बहिन के सम्मान के साथ पूरा सहयोग करते हैं। सामान्य तौर पर गृहस्ती को संभालना महिलाओं का काम या जिम्मेदारी समझा जाता है और उसकी कोई गंभीर कॅल्क्युलेशन भी नहीं होती। लेकिन अब उसका भी एसेसमेंट होने लगा है और यह विचार और समीक्षा के स्तर तक पहुँच चुका है। ऐसे में साफतौर पर माना जाने लगा है कि एक गृहिणी होने का मतलबब वास्तव में परिवार में हर चीज की रीढ़ होना है।

अब माना जाने लगा है कि एक गृहणी के प्रयासों का पता तब चलता है जब वह वे काम नहीं करती, जिन्हें वह रोजाना करती हैं। इसके बदले में उनकी बहुत ज्यादा हसरतें भी नहीं होती, बल्कि वे परिवार से थोड़ा सा प्यार और सम्मान अगर चाहती भी होंगी, तो उसका इजहार तक नहीं करती। ऐसे में गृहिणी दिवस सभी को याद दिलाता है कि घर में माताएँ, पत्नियाँ, बहनें,भाभी या अन्य किसी भी रिश्ते के रूप में अपने घर को एक मजबूत और मधुर बनाने के लिए हर दिन इतनी मेहनत मेहनत करती हैं। परिवार के बाकी सब सदस्य वक्त पर काम पर पहुंच सकें, अच्छे भोजन का मजा ले सकें, बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी लगन से करें। यह काम केवल और केवल एक प्रेरक के रूप में गृहणियां सदियों से करती आ रही हैं। वह रोजाना अपने कठिन प्रयासों से अपने परिवार के हर एक सदस्य के जीवन को अच्छा बनाने में जुटी हुई हैं। ग्रामीण भारत में तो इन गृहणियों के जिम्मेदारी इससे भी अधिक बढ़ जाती है। खास कर पहाड़ी जीवन शैली की अगर बात करें तो यहाँ गृहिणियों के कन्धों पर बहुत ज्यादा भार है।

ऐसे में समाज की सबसे पहली इकाई माने जाने वाले परिवार नाम की संस्था को खुशहाल, आसान और अधिक सुंदर बनाने के लिए वे लगातार कोशिशों में जुटी रहती हैं। माना जा रहा है कि दुनिया में सबसे कठिन काम गृहणी बनना है, क्योंकि इसके एवज में आपको भुगतान नहीं किया जाता है और आपको साल में 24 घंटे 7 दिन यानी 365 दिन काम करना पड़ता है। लेकिन इससे भी जरूरी बात ये है कि अब जब तेजी से दुनिया बदल रही है, तो महसूस किया जा रहा है कि इंसानी जरूरतें और भौतिकवाद ने इसमें बड़े बदलाव ला दिए हैं। आज हर महिला एक कुशल गृहणी नहीं हो सकती है, क्योंकि ऐसा होने के लिए धैर्य और समर्पण की बेहद जरूरत होती है।

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