Search for:
  • Home/
  • उत्तराखंड/
  • एक तरफा मुकाबले से फीका पड़ा चुनावी रंग, पसरा सन्नाटा

एक तरफा मुकाबले से फीका पड़ा चुनावी रंग, पसरा सन्नाटा

– उत्तरकाशी जनपद की गंगा घाटी में चुनावी माहौल में एक तरफा मुकाबले से पसरा सन्नाटा, गायब हुए प्रचार के वाहन और प्रचार दल
Pen Point, Dehradun :चुनावी सीजन है, रंग बिरंगे पोस्टरों से दीवारें सजी रहती है, प्रत्याशियों के पंफलेट, घोषणापत्र लोगों के हाथों से ज्यादा रास्तों में इधर उधर बिखरे पड़े रहते हैं। टैक्सी पर बंधे लाउडस्पीकर हर गली गांव मोहल्ले में प्रचार पर निकलते हुए अपने प्रत्याशी के पक्ष में मतदान की अपील करते हैं। प्रत्याशियों के समर्थन में बजने वाले गीत जो सिर्फ चुनाव के दौरान ही सुनाई देते हैं उनकी धूम भी खूब रहती है। चुनावी कार्यालयों में दिन भर चहल पहल, बैनर, पोस्टर, घोषणा पत्रों, उपलब्धि पत्रों से भरे प्रचार दल के साथ रवाना होते वाहन।
यह हुआ चुनावी सीजन के एक आम दिन का माहौल। शायद आप भी इत्तेफाक रखें लेकिन इस बार यह रंग पूरी तरह से गायब है। उत्तरकाशी जनपद की गंगोत्री विधानसभा में जब मैं यह बैठकर लिख रहा हूं तो लोकसभा चुनाव के नाम पर यहां सन्नाटा पसरा हुआ है। चुनावी चर्चाएं चाय की दुकानों तक ही सीमित है यह कहना भी मुश्किल है। क्योंकि, ग्रामीण इलाकों में इन दिनों लोग खेती बाड़ी के काम निपटाने पर जुटे हैं तो पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग अगले महीने से शुरू होने वाले यात्रा सीजन की तैयारियों में व्यस्त हैं, प्रमुख पार्टियों के चुनावी कार्यालयों में माहौल शांत है, न कोई भगदड़ न कोई शोर शराबा, कुछ लोग पहुंचते हैं शांति से बैठकर घंटे काट रहे हैं। न तो चुनावी शोर, न चुनावी रंग। उत्तरकाशी जनपद के इस हिस्से में गायब चुनावी रंगों के लिए सिर्फ काम काज में व्यस्त यहां के मतदाता ही प्रमुख कारण नहीं है बल्कि इस लोकसभा चुनाव में एक तरफा मुकाबले से परसी निराशा भी इस सन्नाटे की प्रमुख वजह है।
भाजपा से प्रत्याशी माला राज्यलक्ष्मी शाह लगातार तीन बार इस क्षेत्र से सांसद हैं। 2012 के उपचुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा को हराने के बाद 2014 में मोदी लहर के बूते दूसरी बार माला राज्यलक्ष्मी शाह ने साकेत बहुगुणा को शिकस्त दी थी। इस शिकस्त ने साकेत बहुगुणा के राजनीतिक करियर पर भी ब्रेक लगा दिया और वह नेपथ्य में चले गए। 2019 में मोदी लहर के बूते माला राज्यलक्ष्मी शाह ने चकराता विधायक प्रीतम सिंह को बड़े मार्जिन से हराया था। लेकिन 2014 और 2019 के लोक सभा चुनावों में इस तरह का फीकापन नहीं रहा था। 2014 में विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा के समर्थन में कांग्रेस के पास उत्तरकाशी में समर्थकों की बड़ी फौज थी। विजय बहुगुणा की उत्तरकाशी जनपद में मजबूत पकड़ रही है लिहाजा 2014 के दौरान साकेत बहुगुणा के प्रचार प्रसार के लिए उनके समर्थक जनपद के गांव गांव पहुंच रहे थे। भाजपा का धरातल पर मजबूत संगठन ने मोदी लहर पर सवार होकर प्रचार प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। हालांकि, पूरे देश की तरह ही जनपद के लोगों ने भी भाजपा के पक्ष में जबरदस्त समर्थन दिखाते हुए भाजपा प्रत्याशी माला राज्य लक्ष्मी शाह को विजयी बनाया। तो 2019 में बेहद निराशा में गई कांग्रेस को प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रीतम सिंह मिले। प्रीतम सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ और कद्दावर नेताओं में शुमार है तो उत्तरकाशी में उनके समर्थकों का भी एक बड़ा वर्ग था। लिहाजा, मोदी लहर के बावजूद भाजपा को भी उत्तरकाशी में खूब प्रचार प्रसार करना पड़ा तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी खूब जोर आजमाइश की। आखिरी दम तक दोनों पक्षों की ओर से प्रचार प्रसार में कोई कमी नहीं देखी गई। हालांकि, चुनावी परिणाम माला राज्यलक्ष्मी शाह के पक्ष में रहे और उन्होंने टिहरी संसदीय सीट से जीत की हैट्रीक लगाई।
खैर, अब 2024 के लोकसभा चुनाव के घोषणा से पहले ही इस सीट पर कांग्रेस हथियार डाल चुकी थी। प्रीतम सिंह चुनाव लड़ने से मना कर चुके थे तो कांग्रेस के नेता एक एक करके भाजपा में शामिल हो रहे थे। चुनावी कार्यक्रम की घोषणा हुई तो कभी मसूरी से विधायक रहे जोत सिंह गुनसोला ने इस सीट पर दावेदारी की तो कांग्रेस ने उन्हें झटपट टिकट भी थमा दिया। लेकिन, जोत सिंह गुनसोला को प्रत्याशी बनाने से पहले ही टिहरी संसदीय सीट के उत्तरकाशी जनपद में कांग्रेस का मुख्य संगठन ही ध्वस्त हो चुका था। कांग्रेस के कद्दावर नेता अपने समर्थकों के साथ भाजपा का दामन थाम चुके थे। लिहाजा, न तो कांग्रेस के पास प्रचार प्रसार के लिए उत्तरकाशी की तीनों विधानसभा में एक भी वर्तमान और पूर्व विधायक नहीं बचा न ही कोई ऐसा बड़ा नेता जिसके पीछे एक बड़ा समर्थक वर्ग खड़ा हो। चुनावी लड़ाई शुरू होने से पहले ही कांग्रेस इस मामले में पिछड़ गई तो लड़ाई एक तरफा भाजपा के पक्ष में मुड़ गई। लड़ाई को एक तरफा देख भाजपा ने भी उत्तरकाशी जनपद में प्रचार प्रसार की जरूरत को प्राथमिकता में नहीं रखा है तो कांग्रेस के पास प्रचार प्रसार करने के लिए कुल जमा दर्जन भर कार्यकर्ता भी नहीं जुटे। चुनावी प्रचार प्रसार की आखिरी कसर बीते दिनों भटवाड़ी में आए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की जनसभा में उमड़ी भीड़ ने खत्म कर दी। हाल फिलहाल आलम यह है कि उत्तरकाशी जनपद के इस हिस्से में चुनावी प्रचार प्रसार बस नाम मात्र का ही रह गया है।
उत्तरकाशी निवासी नागेंद्र सिंह कहते हैं कि पिछले दो ढाई दशकों में इतना नीरस चुनाव कभी नहीं देखा। वह कहते हैं कि जब टिहरी से मानवेंद्र शाह प्रत्याशी हुआ करते थे तो भी चुनाव इतने ही नीरस और सन्नाटे वाले हुआ करते थे क्योंकि उनकी जीत की गारंटी के चलते विपक्षी दल ज्यादा उर्जा खर्च नहीं करते लेकिन बीच में दो तीन चुनाव में खूब रंग दिखे पर इस बार न तो पार्टियां चुनाव प्रचार पर संसाधन खर्च कर रही है न ही उन्हें जरूरत लग रही है।
इस बात से पत्रकार शैलेंद्र गोदियाल भी इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि कांग्रेस के हथियार डालने के बाद उत्तरकाशी में चुनावी प्रचार प्रसार की गुंजाइश ही खत्म हो गई है और ऐसे में कोई पार्टी क्यों संसाधन और उर्जा खत्म करेगी जब उसे पता है कि यहां से अधिकतम वोट उसे ही मिलने हैं। वह कहते हैं कि निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर बॉबी पंवार से चुनावी लड़ाई रोचक बनाई हुई है लेकिन उसका असर गंगा घाटी में बिल्कुल नहीं दिखता।

Leave A Comment

All fields marked with an asterisk (*) are required