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राजशाही बनाम आम आदमी में क्यों तब्दील हो गया टिहरी संसदीय चुनाव

Pen Point, Dehradun : प्रदेश की पांचों संसदीय सीटों में सबसे ज्यादा चर्चा इस बार गढ़वाल और टिहरी संसदीय सीट पर हो रहे चुनावों की है। टिहरी संसदीय सीट पर पहले आम चुनाव होने के बाद से लेकर अब तक 72 सालों के इतिहास में 42 साल तक टिहरी संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व टिहरी राज परिवार के सदस्य ही करते रहे हैं। पिछले 12 सालों से टिहरी रियासत के आखिरी राजा की पुत्रवधू माला राज्यलक्ष्मी शाह लगातार तीन लोक सभा चुनाव टिहरी संसदीय सीट से जीत चुकी है और चौथी बार चुनावी मैदान में है। तो वहीं उनके मुकाबले कांग्रेस के प्रत्याशी जोत सिंह गुनसोला और इस मुकाबले को रोचक बनाने वाले निर्दलीय प्रत्याशी बॉबी पंवार ने अब चुनावी प्रचार राजशाही बनाम आम जनता पर केंद्रित कर दिया है। हालांकि, अब तक कांग्रेस राष्ट्रीय व प्रांतीय मुद्दों को लेकर प्रचार प्रसार कर रही थी लेकिन हाल के दिनों में कांग्रेस भी इस चुनाव को राजशाही के खिलाफ आखिरी लड़ाई के रूप में प्रचारित करने में जुट गई है जबकि निर्दलीय बॉबी पंवार ने शुरूआती दिनों से ही अपना प्रचार राजशाही बनाम आम आदमी को केंद्र में रखते हुए शुरू किया था।
बीते डेढ़ दो सालों में राज्य में बेरोजगारों के आंदोलन का चेहरा बने 26 वर्षीय बॉबी पंवार ने जब टिहरी संसदीय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया तो प्रचार के शुरूआती दौर में वह बेरोजगारी, पेपर लीक समेत अन्य स्थानीय मुद्दों को लेकर राज्य सरकार को घेरते नजर आए लेकिन अचानक ही उन्होंने अपने प्रचार का मुख्य मुद्दा टिहरी संसदीय सीट पर चार दशकों तक सांसद रहे राजपरिवार को बना दिया। अपने प्रचार के दौरान भाजपा और नरेंद्र मोदी की आलोचना से बचते हुए बॉबी पंवार ने राजशाही को निशाने पर लेना शुरू किया। तो वहीं अब कांग्रेसी प्रत्याशी जोत सिंह गुनसोला ने भी इस चुनाव को राजशाही के खिलाफ आखिरी लड़ाई करार दे दिया है जबकि इससे पहले वह अग्निपथ योजना, महंगाई, चुनावी चंदा, ईडी का दुरूपयोग समेत कई मुद्दों पर भाजपा को घेरते रहे हैं। राजशाही को केंद्र में लेकर चुनावी प्रचार की रणनीति के पीछे वाजिब कारण भी दिखते हैं। आजादी के बाद हुए पहले आम चुनाव से लेकर अब तक टिहरी संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व सबसे ज्यादा राज परिवार से जुड़े सदस्यों के पास ही रहा है। क्षेत्र के मतदाताओं से संवाद शून्यता का आरोप इन सांसदों पर लगता रहा लेकिन इसके बावजूद भी चुनावी मैदान में उतरने के बाद राजपरिवार के लोगों ने ज्यादातर जीत ही दर्ज की।
1949 का टिहरी रियासत का भारत गणराज्य में विलय तो हो गया लेकिन आजाद भारत के पहले आम चुनाव से लेकर 17वीं लोकसभा तक टिहरी राज परिवार का ही दबदबा रहा। 1952 में राजपरिवार की कमलेंदुमति शाह टिहरी संसदीय सीट से पहली सांसद चुनी गई। उसके बाद 1957, 1962, 1967 में कांग्रेस के टिकट पर टिहरी रियासत के आखिरी राजा मानवेंद्र शाह टिहरी संसदीय सीट से सांसद चुने गए। साल 1971 में कांग्रेस से परिपूर्णांनद पैन्यूली ने टिहरी राजपरिवार का यह किला ध्वस्त कर टिहरी संसदीय सीट से जीत दर्ज की तो 1977 और 1980 में भारतीय लोक दल से त्रेपन सिंह नेगी ने टिहरी संसदीय सीट से चुनाव जीता। इसके बाद 1984 और 1989 में ब्रह्मदत ने कांग्रेस के टिकट पर टिहरी संसदीय सीट से चुनाव जीता। तकरीबन 18 सालों तक राज परिवार टिहरी संसदीय सीट से चुनाव नहीं जीत सका लेकिन 1991 के आम चुनाव में यह सूखा खत्म हुआ। भाजपा के टिकट पर मानवेंद्र शाह ने टिहरी संसदीय सीट से जीत दर्ज की और उसके बाद लगातार 1996, 1998, 1999 और 2004 में टिहरी संसदीय सीट से जीतते रहे। 2007 में मानवेंद्र शाह के निधन पर भाजपा ने उनके पुत्र मनुजेंद्र शाह को लोकसभा उप चुनाव में टिकट दिया लेकिन कांग्रेस के टिकट पर उपचुनाव में उतरे विजय बहुगुणा ने जीत दर्ज की। 2009 के आम चुनाव में भाजपा ने राज परिवार से दूरी बनाते हुए ओलंपिक विजेता जसपाल राणा को प्रत्याशी के तौर पर उतारा लेकिन वह कांग्रेस के विजय बहुगुणा से चुनाव हार गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार बनाने लायक बहुमत जुटाया तो सांसद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया। उनके इस्तीफे से खाली हुई टिहरी संसदीय सीट पर 2012 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने फिर राजपरिवार का रूख करते हुए मानवेंद्र शाह की पुत्रवधू और मनुजेंद्र शाह की धर्मपत्नी माला राज्यलक्ष्मी शाह को अपना प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस के टिकट पर उपचुनाव में उतरे तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा इस चुनाव में भाजपा के टिकट पर पहली बार चुनाव लड़ रही माला राज्यलक्ष्मी शाह से चुनाव हार गए। इस तरह पांच साल की संसद से दूरी के बाद राजपरिवार फिर लोकसभा पहुंच गया। उसके बाद 2014 और 2019 का चुनाव भी भाजपा के टिकट पर राजपरिवार की माला राज्यलक्ष्मी शाह ने जीता।
राज परिवार के निर्वाचित सांसद सदस्यों पर क्षेत्र में कम सक्रियता, लोगों से कम संवाद, लोगों तक पहुंच न होने के आरोप लगते रहे हैं। जबकि, राष्ट्रीय पार्टियों के लिए राज परिवार के सदस्य आसानी से जीतने वाले तुरूप के इक्के साबित होते रहे हैं। इन चुनावों में तीन बार की विजयी माला राज्यलक्ष्मी शाह को भाजपा का प्रत्याशी घोषित होने के बाद क्षेत्र के इनके खिलाफ लोगों की नाराजगी को भांपते हुए अब निर्दलीय प्रत्याशी बॉबी पंवार के साथ ही कांग्रेस प्रत्याशी जोत सिंह गुनसोला ने भी अपना प्रचार राजशाही के खिलाफ मोड़ दिया है।

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