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पुण्यतिथि विशेष: कॉफी परोसने से इंकार ने बोए फिरोज-इंदिरा के बीच अलगाव के बीज

– देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति व पूर्व सांसद फिरोज गांधी की आज 63वीं पुण्यतिथि, 1960 को ह्दयगति रूक जाने से 47 साल की उम्र में हुआ था निधन
PEN POINT, DEHRADUN : आज इंदिरा गांधी के पति व पूर्व सांसद फिरोज गांधी की 63वीं पुण्यतिथि है। 8 सितंबर 1960 के दिन ही फिरोज गांधी की ह्दयगति रूकने से महज 47 साल की उम्र में निधन हो गया था। अपनी पत्नी इंदिरा गांधी से प्रेम विवाह के बावजूद दोनों के बीच रिश्तों में कुछ सालों में कड़वाहट आने लगी थी। अपने पिता और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की विरासत संभालने की तैयारियों में जुटी इंदिरा गांधी के लिए अपने पति फिरोज गांधी के बीच दूरियां शुरू होने का भी एक रौचक किस्सा है। कड़े नियम कायदों में बंधे प्रधानमंत्री आवास में जब फिरोज गांधी के अनुरोध के बावजूद भी नौकर ने कॉफी नहीं परोसी तो इस घटना ने फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी के बीच अलगाव की स्थिति पैदा कर दी। यहीं से शुरूआत होती है फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी के अलग होने की। यह अलगाव इस तरह का था कि आज भी कांग्रेस की यात्रा, नेहरू गांधी परिवार के इतिहास में फिरोज गांधी को बिल्कुल किनारे कर दिया गया है। यहां तक कि इतिहासकारों ने भी जब जब नेहरू गांधी परिवार के बारे में लिखा तो फिरोज गांधी बिल्कुल भूला दिए गए।
12 सितंबर 1912 को बंबई में पारसी परिवार में जन्मे फिरोज गांधी ने 18 साल की उम्र में ही साल 1930 में महात्मा गांधी से प्रेरणा पाकर अपने मूल नाम फिरोज जहांगीर गेंधी को बदलकर फिरोज गांधी कर दिया और भारतीय स्वतत्रंता आंदोलन में शामिल हो गए थे। उन्होंने 1932 से 1933 में आजादी के आंदोलन में शामिल होने के चलते जेल भी भेजे गए। साल 1930 में ही उनकी मुलाकात पं. जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू और इंदिरा गांधी से हुई थी। इस दौरान फिरोज गांधी कमला गांधी से प्रभावित हुए। जब कमला नेहरू बीमार हो गई थी और इस दौरान फिरोज गांधी ने कमला नेहरू की खूब सेवा की और आखिरी वक्त तक उनके साथ रहे। इसी दौरान इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी भी एक दूसरे को पसंद करने लगे। कमला नेहरू के बेहद करीब रहने वाले फिरोज गांधी को लेकर नेहरू के विरोधियों ने उस दौरान कमला नेहरू और फिरोज गांधी के प्रेम प्रसंग के झूठे पोस्टर तक छपवा दिए थे। लेकिन, न तो इस कुप्रचार से नेहरू पर कोई फर्क पड़ा न फिरोज गांधी पर। फिरोज गांधी भोवाली में स्थित टीबी केंद्र में उपचार करवा रही कमला नेहरू के साथ उनके आखिरी समय तक रहे। साल 1942 में फिरोज गांधी और इंदिरा गांधी हिंदू रीति रिवाजों के साथ एक दूसरे से विवाह बंधन में बंध गए। इसके बाद इंदिरा गांधी भी परिवार को प्राथमिकता पर रखकर अपनी दुनिया में केंद्रित हो गई। 1947 में देश के आजाद होने पर पं. जवाहर लाल नेहरू को देश का पहला प्रधानमंत्री चुना गया। दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री आवास तीन मूर्ति भवन अब देश की सबसे ताकतवर महिला होने को लेकर नेहरू की बहनों में एक द्वंद शुरू हो गया था। देश के पहले आम चुनाव से पहले इंदिरा गांधी अपने दोनों बेटों को लेकर दिल्ली स्थित तीन मूर्ति भवन में अपने पिता पं. जवाहर लाल नेहरू के साथ रहने लगी। यहां देश की पहली महिला होने को लेकर एक द्वंद चल रहा था। नेहरू की दोनों बहनें विजयलक्ष्मी और कृष्णा के परिवारों के बीच देश की पहली महिला बनने के लिए होड़ मची थी ऐसे में बेटी होने के नाते इंदिरा गांधी ने पिता के साथ रहने का फैसला लिया लेकिन फिरोज लखनउ में डटे रहे।
साल 1952 में फिरोज ने रायबरेली ने संसदीय चुनाव जीता, देश के प्रधानमंत्री नेहरू के दामाद को यह जीत आसानी से मिल गई। फिरोज भी अब दिल्ली आकर अपनी पत्नि बच्चों के साथ अपने ससुर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आवास पर रहने लगे थे लेकिन उन्हें यहां के तौर तरीको लेकर घुटन होने लगी थी।
एक सांसद होने के साथ ही देश के प्रधानमंत्री का दामाद होने के चलते दिल्ली में उनकी खूब पूछ थी, लिहाजा यार दोस्तों का एक बड़ा नेटवर्क भी बन गया था। एक बार एक दोस्त उनसे मिलने तीन मूर्ति भवन पहुंच गया। दोस्त के घर आने पर फिरोज ने घर के एक नौकर को काफी लाने को कहा। लेकिन नौकर ने यह कहते हुए काफी परोसने से इंकार कर दिया कि घर के नियमों के हिसाब से यह चाय कॉफी का टाइम नहीं है। उन दिनों जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री आवास को कड़े नियमों में बांध दिया था जहां तय समय पर नाश्ता, खाना, चाय कॉफी परोसी जाती थी। नौकर द्वारा फिरोज गांधी और उनके दोस्त को कॉफी परोसने से इंकार करना फिरोज गांधी को काफी नागवार गुजरा। प्रधानमंत्री आवास के तौर तरीको को लेकर फिरोज गांधी पहले से ही असहज थे तिस पर उन्हें देश का दामाद बुलाए जाने से भी वह अपनी पहचान को खोने के अवसाद से गुजर रहे थे। लेकिन, नौकर द्वारा कॉफी न परोसना फिरोज को इतना नागवार गुजरा कि उन्होंने इंदिरा गांधी को फरमान सुना दिया कि वह दोनों बच्चों को लेकर प्रधानमंत्री आवास छोड़ दे। लेकिन, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री आवास छोड़ने को तैयार न थी तो फिरोज ने अपना सामान समेट कर उसी वक्त प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया। सांसद होने और प्रधानमंत्री का दामाद होने के नाते उन्हें दिल्ली में केंद्र सरकार की ओर से एक आवास आवंटित किया गया। इसके बाद वह यदा कदा बच्चों और इंदिरा गांधी से मिलने अक्सर प्रधानमंत्री आवास में नाश्ते की मेज पर मुलाकात करने पहुंचा करते थे लेकिन समय के साथ फिरोज गांधी का प्रधानमंत्री आवास में जाना भी बेहद कम हो गया। इसके बाद कई मौकों पर फिरोज गांधी ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सदन में घेरा तो उसके बाद इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी भी दूरिया आनी स्वाभाविक थी। दोनों पूरी तरह से अलगाव आ गया।
सदन में बेहद सक्रिय रहने वाले संजय गांधी का 8 सितंबर 1960 को ह्दयगति रूक जाने से दिल्ली के एक अस्पताल में उनका निधन हो गया था।

{स्रोत – The Sanjay Story लेखक विनोद मेहता,

Feroze Gandhi : The Forgotten Gandhi लेखक बेट्रील फॉक}

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