गढ़वाल का गबर : जिसे हर साल ब्रिटेन में दी जाती है श्रद्धांजलि
– प्रथम विश्व युद्ध में अदम्य साहस दिखाकर ब्रिटिश सेना का सर्वोच्च सम्मान पाने वाले गब्बर सिंह नेगी की जयंती आज
PEN POINT, DEHRADUN : गढ़वाल राइफल्स का एक जवान, जिसे उम्र तो कुल 20 साल की ही मिली लेकिन आज भी उसकी जयंती के मौके पर उसे इंग्लैंड में उसकी याद में बने मैमोरियल में ब्रिटिश सेना व सरकार श्रद्धांजलि अर्पित करती है। आज है जयंती राइफलमैन गबर सिंह नेगी की, जिसने 20 साल की उम्र में पहले विश्व युद्ध में फ्रांस सेना के छक्के छुड़ा दिए थे और साढ़े तीन सौ फ्रेंच सैनिकों को कैद कर लिया। युद्ध मैदान में अपनी वीरता का उच्च प्रदर्शन कर शहादत दे दी तो इंग्लैंड ने गढ़वाल राइफल्स के इस जवान को देश का सर्वोच्च वीरता सम्मान दिया और उसकी याद में इंग्लैंड में एक मेमोरियल भी बनाया।
गबर सिंह नेगी का जन्म उत्तराखंड में टिहरी जिले के चंबा के समीप स्थित मंजयूड़ गांव में आज के ही दिन 21 अप्रैल, 1895 को हुआ था। पिता की असमय मौत के बाद परिवार की जिम्मेदारी गबर सिंह के कंधों पर आ गई। कुछ समय तक राज दरबार टिहरी में नौकरी की और 18 साल की उम्र में 6 अक्टूबर 1913 को गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हो गया। इसके अगले साल ही पहला विश्व युद्ध शुरू हो गया और 1914 में उन्हें प्रथम विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस भेजा गया।
ब्रिटेन प्रथम विश्व युद्ध में कूदा तो 39 गढ़वाल राइफल्स उन चुनिंदा रेजिमेंट्स में थी जिन्हें भारतीय सेना के लिए चुना गया। इस फ़ोर्स को वेस्टर्न फ्रंट पर तैनात किया गया था। और इसी फ्रंट पर 10 मार्च 1915 को फ्रांस में न्यू चेपल की लड़ाई लड़ी गई।
राफइलमैन गब्बर सिंह की बटालियन द्वितीय गढ़वाल राइफल को जर्मनी की सेना के खिलाफ युद्ध लड़ना था। बटालियन की कमान राइफलमैन गब्बर सिंह नेगी को सौंपी गई। गब्बर सिंह ने अपना शौर्य पराक्रम दिखाते हुए जर्मन सेना के 350 सैनिकों और अफसरों को बंदी बनाया था। साथ ही जर्मनी के मशहूर न्यू शैपल लैंड पर कब्जा किया। पहले विश्व युद्ध में उन्होंने कई मोर्चों पर अपने युद्ध कौशल और बहादुरी का परिचय दिया। युद्ध क्षेत्र में ही 10 मार्च 1915 को वह वीरगति को प्राप्त हो गए। ब्रिटिश सेना इस 20 वर्षीय बहादुर सैनिक की वीरता को देखकर दंग थी। तब ब्रिटेन शासन ने युद्ध क्षेत्र में अपने अदम्य साहस का परिचय देने वाले गबर सिंह नेगी को मरणोपरांत सर्वोच्च सैनिक सम्मान विक्टोरिया क्रास से सम्मानि किया था।
गबर सिंह नेगी की शहादत को पीढ़ियों के लिए प्रेरणा पुंज बनाने के लिए गढ़वाल राइफल ने 1925 में उनकी याद में चंबा में एक मेमोरियल बनाया था। तब से लेकर आज तक उनकी शहादत दिवस पर हर साल सेना उन्हें श्रद्धांजलि देती है।लंदन में भी उनके नाम पर एक मेमोरियल बना हुआ है और ब्रिटिश सेना हर साल 21 अप्रैल को विक्टोरिया क्रास राइफलमैन गबर सिंह नेगी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देती है।
पहले होती थी 21 अप्रैल को गढ़वाल राइफल में भर्ती
राइफलमैन गबर सिंह नेगी की शहादत की याद में उनकी जयंती के मौके पर 1925 से चंबा गबर सिंह नेगी मेला का आयोजन होता है। इस मेले में क्षेत्र के युवाओं को गबर सिंह नेगी से प्रेरणा लेने को प्रोत्साहित किया जाता था तो गढ़वाल राइफल के अफसर भी चंबा पहुंचकर इस मेले में शिरकत किया करते थे। मेले में गढ़वाल राइफल के लिए युवाओं को भर्ती किया जाता था। एक समय इस मेले की गढ़वाल ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखंड में धूम रहा करती थी लेकिन वक्त बीतते यह मेला बस रस्म अदायगी रह गया।
उत्तर प्रदेश के दौरान यहां हर साल मेले का भव्य आयोजन तो होता ही था यह मौका था जब गढ़वाल के युवाओं को सेना का हिस्सा बनने का मौका मिलता था। लेकिन राज्य बनने के बाद साल 2005 में इस मेले में होने वाली भर्ती प्रक्रिया को बंद कर दिया गया।