सिस्टम की बेशर्मी : साहब मैं ज़िंदा हूँ …तहसील के चक्कर काट रहा गोविन्द सिंह, खुद को ज़िंदा साबित करने के लिए
Pen Point, Pauri Garhwal : कुछ वक्त पहले एक फिल्म आई थी नाम था कागज। इस फिल्म में पंकज तिरपाठी एक ऐसे किरदार को निभाते हैं, जो खुद को ज़िंदा साबित करने के लिए दरदर की ख़ाक छानने को मजबूर हो जता है। ऐसा ही एक मामला इन दिनों उत्तराखंड में सामने आया है। यहाँ भी एक सख्स खुद को ज़िंदा साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने को मजबूर है।
ये मामला है पौड़ी जिले की श्रीनगर तहसील क्षेत्र का, यहाँ तहसील प्रशासन की कारगुजारी के कारण जमीनों के दस्तावेजों की खाता खतौनी से से एक अच्छे खासे स्वस्थ इंसान के नाम को गायब कर दिया गया। ऐसे में उसे खुद को ज़िंदा साबित करने के लिए कहा जा रहा है। गोविन्द सिंह बिष्ट नाम का यह सख्स सरकारी सेवा से रिटायर है और अच्छी खासी पेंशन ले रहा है। अब ऐसे में उत्तराखंड में इस तरह के मामले पहाड़ों पर भी सामने आने लगे हैं कि आपको खुद को जीवित साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ेंगे।
गोविन्द सिंह बिष्ट का ऐसा ही कुछ कहना है कि मुझे खुद को जीवित घोषित करने के तहसील के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। यहां गोविंद सिंह बीते आठ महीनों से खुद के जीवित होने का प्रमाण तहसील प्रशासन को दे रहे हैं। उनकी माने तो अपनी ही खाता खतौनी में मृत हैं, यही कारन है कि वे लंबे समय से तहसील के चक्कर काट रहे हैं ताकि उनके दस्तावेजों में सुधार हो सके।
दरअसल गोविंद सिंह दिल्ली में सरकारी नौकरी में कार्यरत थे, रिटार्यड होने के बाद वे अपने पैतृक घर श्रीनगर गढ़वाल नकोट गांव पहुंचे. यहां गोविंद सिंह अपनी पत्नी के साथ रह रहे हैं। कहते हैं कि इसके बाद वें तहसील के चक्कर काटने में लगे हैं।
पूरे मामले पर श्रीनगर तहसील के तहसीलदार का कहना है कि उनके संज्ञान में यह प्रकरण आया है। जिसमें व्यक्ति जीवित है लेकिन उसका खतौनी से नाम हट चुका है। इस विषय पर कार्यवाही की जा रही है। उन्होंने कहा कि गोविंद सिंह को मृत घोषित किया गया था, जिस कारण उनका नाम खतौनी से हट चुका है। मामले की जांच की जा रही है कि आखिर इस तरह की गलती कैसे हुई।
जो कुछ भी लेकिन ऐसे में इस पूरे मामले की गहन पड़ताल कर बजाए गोविन्द सिंह को परेशान करने के जिम्मेदार के खिलाफ कार्रवाई कड़ी करवाई होनी चाहिए।