‘हिंदू मुस्लिम वाला एंगल न होता तो मीडिया को पता भी नहीं था कि पुरोला है कहां’
– पुरोला में 15 जून को प्रस्तावित महापंचायत को लेकर देश भर के मीडिया ने पुरोला में डाला डेरा, मीडिया के रवैये से स्थानीय नाखुश
PEN POINT, PUROLA : पुरोला में अंधेरा होते ही सड़कों में सिर्फ पुलिसकर्मी और मीडियाकर्मी ही दिख रहे हैं। टीवी न्यूज चैनलों के स्टीकर लगी गाड़ियां और कैमरामेन के साथ रिपोर्टर पुरोला बाजार में रात के नौ बजे तक भी सड़कों पर टहल रहे हैं, उम्मीद कर रहे हैं कि कहीं कोई महापंचायत का समर्थक दिख जाए। लेकिन, स्थानीय लोग दुकानों को बंद कर घरों को लौट चुके हैं। रात के नौ बज चुके हैं तो पहाड़ के इन इलाकों में लोग इतने समय तक खा पीकर सो जाते हैं लेकिन अब तक देश दुनिया के अनजान से इस कस्बे के बारे में दुनिया के ज्यादातर मीडिया हाउस बातें कर चुके हैं। स्थानीय लोग मीडिया की टोली देख कहने से नहीं चूक रहे हैं कि हिंदू मुस्लिम वाला एंगल न होता तो मीडिया को पता भी नहीं था पुरोला है कहां।
कमल नदी के दोनों ओर बसा पुरोला पहाड़ में चावल का कटोरा कहा जाता था। लाल चावल के उत्पादन के प्रसिद्ध पुरोला शायद ही कभी किसी विवाद के लिए सुर्खियों में रहा हो। 2011 में जब उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने यमुनोत्री घाटी को अलग जिला बनाने की घोषणा की थी तो पुरोला पहली बार प्रदेश के मीडिया की नजरों में आया था। स्थानीय लोगों ने पुरोला को जिला मुख्यालय बनाने की मांग को लेकर लंबा आंदोलन किया। जिला बनाने की मांग बाद में ठंडे बस्ते में चली गई तो पुरोला भी खबरों से गायब हो गया। एक दशक बाद हिंदू मुस्लिम टकराव और लव जिहाद को लेकर यह कस्बा फिर चर्चाओं में है। एक मुस्लिम युवक द्वारा नाबालिग लड़की को भगाकर ले जाने के प्रयास के बाद पूरा इलाका सुलग उठा। बाहर से व्यापार करने आए मुस्लिमों पर लव जिहाद फैलाने का आरोप लगाते हुए पुरोला बाजार में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, मुस्लिमों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ी तो करीब दर्जन भर मुस्लिम परिवारों को पलायन करना पड़ा। हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिकता की आग में सुलग रहे उत्तराखंड समेत पूरे देश ने पुरोला में हुए विरोध प्रदर्शनों का भरपूर समर्थन किया तो मीडिया ने भी इसे हाथों हाथ लिया। मामले में हिंदू मुस्लिम वाला एंगल था तो राष्ट्रीय मीडिया के लिए यह टीआरपी की खुराक बन गई। इस बीच स्थानीय लोगों ने 15 जून को महापंचायत का एलान किया जिसमें बाहरी व्यवसायियों के वेरिफिकेशन की मांग उठाई जानी थी लेकिन इसमें हिंदुवादी संगठनों की एंट्री हुई तो मामला हेट स्पीच तक पहुंच गया। लिहाजा, प्रशासन ने पुरोला में धारा 144 लागू कर दी तो मीडिया भी इंतजार कर रही थी कि 15 जून को महापंचायत के एलान में फिर नफरती बयान मीडिया की टीआरपी के डेली डोज को पूरा करे। 14 जून को नोएडा स्थित टीवी न्यूज चैनलों के पत्रकार अपने कैमरामेन के साथ पुरोला पहुंच गए। दिन भर पुरोला में पुलिसकर्मियों के भारी हुजूम के साथ मीडियाकर्मियों के हुजूम से सड़के जाम दिखी। एक आम सा पहाड़ी कस्बा मीडिया और पुलिस की मौजूदगी से सहम गया।
स्थानीय लोग मीडिया की गाड़ियों, न्यूज चैनलों के माइक और उन्हें थामे पत्रकारों को देखकर कटाक्ष करते हैं कि अगर यहां आपदा आती या फिर कोई अन्य समस्या आती तो मीडिया को पता भी नहीं होता कि पुरोला कहां है लेकिन हिंदू मुस्लिम वाला एंगल मिल गया तो जुट गए। स्थानीय लोग शिकायत करते हैं कि कमल नदी में बीते साल बाढ़ आई, कई आवासीय भवनों को नुकसान हुआ लेकिन कुछ स्थानीय अखबारों को छोड़ मीडिया ने इस खबर को कोई जगह नहीं दी लेकिन जब आज हिंदू मुस्लिम वाला एंगेल है तो देश भर की मीडिया यहां पहुंच गई है।