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हरिद्वार सीट: धर्म, जाति और क्षे़त्र के हथियारों से लैस चुनावी अखाड़ा

Pen Point, Dehradun : उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट हमेशा ही हॉट सीट रही है। इस बार भी सूबे के कई दिग्गज नेता हरिद्वार के अखाड़े में उतर चुके हैं। भाजपा ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को हरिद्वार के रण में भेजा है। त्रिवेंद्र का यह पहला लोकसभा चुनाव है। इससे पूर्व दो बार भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक यहां से संसद में पहुंच चुके हैं। दूसरी ओर इस बार कांग्रेस के दिग्गज हरीश रावत अपने पुत्र विरेंद्र रावत को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे हैं। जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी पर कांग्रेस ने भरोसा किया था। हरीश रावत हरिद्वार से 2009 में खुद भी सांसद चुने गए थे। लिहाजा ये सीट उनके लिये नई नहीं है। यहां निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर खानपुर के विधायक उमेश कुमार ने भी ताल ठोकी है। दिलचस्प बात है कि त्रिवेंद्र रावत और हरीश रावत दोनों ही उमेश कुमार की स्टिंगबाजी के सताए हुए हैं। हरिद्वार के खानपुर समेत आस पास के इलाकों में उमेश समर्थकों की बड़ी फौज भी है।

हरिद्वार सीट के राजनीतिक माहौल की बात करें तो यह सूबे की अन्य सीटों की तुलना में काफी अलग है। यहां एक ओर हिंदू आस्था की धर्म नगरी हरिद्वार है तो दूसरी ओर दूसरी ओर पीरान कलियर भी मौजूद है। देहरादून शहर से हरिद्वार तक पहाड़ी आबादी बहुल इलाका है तो भगवानपुर, रूड़की देहात, मंगलौर और नारसन बॉर्डर जैसे यूपी से लगे इलाके भी हैं। यूपी से लगे इन इलाकों में कांग्रेस और बसपा का बड़ा वोट बैंक रहा है।

इन सभी बातें हरिद्वार सीट पर बेहद रोचक सियासी समीकरण बनाती हैं। भले ही मोदी लहर में भाजपा लगातार दो बार से इस सीट को जीतने में सफल रही है, लेकिन यहां के चुनावी हालात अंतिम मय तक पहेलियां बुझाते रहते हैं। हिंदू संस्कृति का प्रमुख केंद्र होने के साथ ही यहां इस्लाम प्रमुख केंद्र देवंबद भी यहां से ज्यादा दूर नहीं है। लिहाजा इस बीच बड़ी तादाद में मुस्लिम आबादी भी है। जिसके कारण इस सीट पर चुनाव में धार्मिक गोलबंदी होती है। वहीं जाति भी यहां प्रमुख चुनावी फैक्टर है। एससी, एसटी और ओबीसी बहुल ग्रामीण इलाकों में चुनावों में जातीय समीकरण भी साधे जाते हैं।

इसके अलावा यहां पहाड़ी मैदानी के साथ ही भीतरी और बाहरी का मुद्दा भी हर चुनाव में उछाला जाता है। इस बार भी निर्दलीय प्रत्याशी उमेश कुमार लगातार भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी को बाहरी बता रहे हैं। इसे हरिद्वार की अस्मिता से जोड़ते हुए दलील दे रहे हैं कि हरिद्वार का दुर्भाग्य है कि यहां किसी स्थानीय व्यक्ति को लोकसभा का टिकट नहीं दिया जाता है। दिलचस्प बात ये है कि उमेश कुमार मूल रूप से खुद भी हरिद्वार के रहने वाले नहीं हैं।

इन बातों से साफ है कि हरिद्वार सीट पर अन्य सीटों से इतर धर्म, जाति और क्षेत्रवाद के मुद्दे हावी हो जाते हैं। इन्हीं सब मुद्दों के बीच भाषणों, नारों और बैनर पोस्टरों में विकास के मुद्दों को जगह मिलती है। फिलहाल सभी प्रत्याशी और उनके समर्थक हरिद्वार लोकसभा में वोटरों के बीच खाक छान रहे हैं। भाजपा भले ही आश्वस्त नजर आ रही हो लेकिन हरिद्वार के समीकरणों का रहस्य नतीजों के बाद ही समझ में आता है।

 

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