नागनाथ पोखरी का ऐतिहासिक महत्व : तीर्थाटन और पर्यटन के लिए बड़ी संभावनाओं से भरा है यह इलाका
PEN POINT, DEHRADUN : उत्तराखण्ड को नाग पूजक क्षेत्र के तौर भी जाना जाता हैं। ऐतिहासिक तौर पर उत्तराखण्ड में नाग जाति से जुड़े होने के बृहद निशान मिलते हैं। यहाॅं ये परम्परागत प्रतीकों के तौर पर आज भी साफ दिखाई देते हैं। यहाँ के देव पूजनों के अलावा शादी व्याह में प्रयुक्त होने वाले निशाण पर स्वस्तिक के साथ ही नाग के चित्र प्रदर्शित किए जाते हैं। उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र में इसके प्राचीन इतिहास गढ़वाल की तमाम गढ़ियों में नागपुर गढ़ी और नागनाथ स्वामी क्षेत्र के अलावा कई जगहों पर नाग पूजा को लेकर कई लोक कथाएं जानने को मिलती हैं। ऐसा ही एक इलाका है चमोली जिले को नागनाथ पोखरी क्षेत्र। यह पूरी इलाका प्राकृतिक तौर बेहद रमणीक और हरे भरे जंगलों से भरा हुआ है।
गढ़वाल की प्राचीन 52 राज गढ़ियों में नागपुर गढ़ी का भी जिक्र आता है, जहाॅं नागनाथ स्वामी, आदि अनेकों मन्दिर हैं। नागनाथ स्वामी मंदिर जनपद चमोली की पोखरी तहसील में स्थित नाग वंश का प्रसिद्ध मंदिर नाग मंदिर स्थित है, माना जाता है की यहाँ प्राचीन काल में नागशिला थी। इस मंदिर में
लोक मान्यताओ के मुताबिक चमोली जिले का पोखरी क्षेत्र तक्षक नाग का गढ़ रहा है। जो नाग राजवंश का प्रतापी और प्रभावशाली राजा था। इसी नागपुर क्षेत्र का प्रसिद्ध तुंगनाथ मंदिर शिखर पूरे विश्व में सबसे ऊँचाई पर स्थित शिव मंदिर के तौर पर जाना जाता है। कई इतिहासकारों ने अपने शोध में इस बात का जिक्र किया है कि इस क्षेत्र के नाग वंश के सैनिकों का इतना वर्चस्व रहा था कि हूँण, कत्यूरी, गोरखा भी यहाॅं अपना प्रभाव नहीें जमा सके। यहाँ तक की अंग्रेजों का भी इस क्षेत्र पर कोई विशेष हस्तक्षेप नहीं रहा।
पद्मश्री से सम्मानित उत्तराखंड के प्रसिद्व इतिहासकार यशवंत सिंह कठोच बताते हैं कि नागनाथ क्षेत्र जहाँ लोक श्रुतियों और धार्मिक दृष्टिकोण के चलते बेहद महत्वपूर्ण है . वहीं पुरातात्त्वाविक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इलाका है महड़ गाँव जिसे प्राचीन समय में पहाड़ी क्षेत्रों में मढ़ी कहा जाता था, जोकि मठ को स्थानीय बोली भाषा में इस्तेमाल किया जाता रहा है। आज भी कई स्थानों के नाम मढ़ी या मढ़ के नाम से अस्तित्व में हैं। कठोच बताते हैं यह शिला लेख भी पौरव वंशी राजा विष्णु बर्मा का है और कुटिला लिपि में लिखा गया है। इससे यह संकेत मिलते हैं कि विष्णु वर्मा का राज्य कुमाऊं से गढ़वाल तक फैला रहा होगा. इसके अलावा नागनाथ क्षेत्र नागवंशी राजाओं की राजधानी गोपेश्वर होने की संभावना बढ़ जाती है. वहीं इस क्षेत्र में कार्तिकेय स्वामी मंदिर कत्यूरियों के इष्ट देव के रूप में स्थापित हैं.
यह इलाका प्राकृतिक छटा से ओतप्रोत है। चारों तरफ साफ सुंदर और हरे भर जंगलों से आच्छादित पर्वत दिखाई देते हैं। यहाॅं घूमने और ट्रैकिंग का शानदार आनन्द लिया जा सकता है। यहां आसपास के इलाके में बसे हुए तमाम गाँवों कई जगहें घूमने और प्रकृति को निहारने के लिए काफी हैं। ये पैदल ट्रैक यहाॅं पहाड़ो की चोटियों पर स्थापित मंदिरों तक ले जाने के लिए हैं। इस इलाके में लोगों से कई किंवदंतियों और मिथक ओर लोक कथाएं सुनने को मिल जाती हैं, जो आपके पर्यटन और तीर्थाटन दानों को मजेदार और रोमांचक बना देती हैं। नागनाथ पोखरी का यह इलाका चारों ओर फैली अपनी सुरम्य वादियों के दर्शन करने के लिए काफी है।
नागनाथ पोखरी से विश्व प्रसि़द्ध कार्तिक स्वामी मंदिर यहां से महज 2 घंटे की दूरी पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार क्षेत्र पार्वती और गणेश का निवास स्थान था। यहाॅं कई अन्य देवी देवताओं के मंदिरों के दर्शन करने को मिल जाते है। इसके अलावा खूबसूरत और मनोहारी हिमालय के चैखंबा, केदारनाथ, नंदा देवी और हाथी पर्वत श्रंखला की चोटियों को आसानी से देखने को मिल जाती हैं। इसके अलावा यहां से कल-कल-छल-छल बहती सदा नीरा मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों की मनोरम घाटियों के नजारे दखाई देते हैं। इस इलाके में धार्मिक यात्रियों और पर्यटन के शौकीनों के लिए अपार सम्भावनाएं हैं। जो धीरे-धीरे यहां बढ़ती जा रही है। हर-साल देश विदेश से लोग इस इलाके में पहुंचते हैं।