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औद्योगिक विकास के दावों से कितनी अलग है पहाड़ों में उद्योगों की हकीकत ?

Pen Point, Dehradun : साल था 2017। विधानसभा चुनाव प्रचार जोरों पर था। पौड़ी के रामलीला मैदान में जनसभा हो रही थी। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का भाषण चल रहा था। पौड़ी के आस पास की पहाड़ियों पर नजर डालते हुए उन्होंने कहा कि ये पहाड़ी इलाका सॉफ्ट इंडस्ट्री के लिये बहुत ही मुफीद है। हमारा विजन है कि यहां आईटी कंपनियों बसाया जाएगा। जिससे पहाड़ी इलाकों में रोजगार के दरवाजे खुलेंगे, पलायन रूकेगा। उन्होंने यह कहने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी कि कांग्रेस ने इस ओर आज तक कोई ध्यान नहीं दिया। अमित शाह की बात पर सभा स्थल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

दरअसल अमित शाह ने जब ये बात कही थी, तब से आज तक राज्य में भाजपा की सरकार बनी हुई है। इस बीच भागीरथी और अलकनंदा में काफी पानी बह चुका है। लेकिन राज्य के पहाड़ी इलाकों में निवेशकों ने आज तक दिलचस्पी नहीं ली है। राज्य बनने के शुरूआती साल 2003-04 से लेकर अब अब तक पहाड़ी इलाकों में मध्यम उद्योग नहीं है। सूक्ष्म और लघु उद्योगों की हालात भी जैसी बीस साल पहले थी लगभग वैसी ही है। उद्योग विभाग के दस्तावेजों में दर्ज आंकड़े कुछ ऐसी ही तस्वीर बयां करते हैं। इन आंकड़ों के नजरिए से पहाड़ों में में औद्योगिक विकास की जिलावार स्थिति को इस तरह समझा जा सकता है।

पौड़ी- साल 203.04 में पौड़ी जिले में कुल 241 सूक्ष्म औद्योगिक इकाईयां थी। जिनमें से कुछ ही संचालित हो रही थी। जिनसे 37 लोगों को सीधा रोजगार हासिल था। इन उद्योगों में मैन्यूफैचरिंग की 32 और सेवा क्षेत्र की 201 इकाईयां शामिल थी। ठीक 10 साल बाद यानी 2013-14 में ये सूक्ष्म उद्योग इकाईयां 230 हो गई। जिनसे 122 लोगों को रोजगार हासिल था। वहीं साल 2018-19 तक 406 इकाईयां स्थापित हो चुकी थी और इनमें 1834 लोगों को रोजगार मिला था। खास बात ये है कि इस दौरान जिले में एक भी मध्यम उद्योग स्थापित नहीं हुआ।
चमोली- राज्य बनने के शुरूआती सालों में चमोली जिले में 145 सूक्ष्म उद्योग थे। जिनसे 296 लोगों को रोजगार मिला हुआ था। 2013-14 में जिले में सूक्ष्म उद्योगों की संख्या घटकर 100 रह गई और इनसे 209 लोगों का रोजगार चलता था। साल 2018-19 सूक्ष्म उद्योगों की संख्या 129 हो गई। जिनमें 508 लोगों को सीधा रोजगार मिल रहा था। इस दौरान जिले में एक मध्यम उद्योग स्थापित हुआ।

टिहरी- साल 203-04 में टिहरी जिले में कुल 215 सूक्ष्म औद्योगिक इकाईयां थी। जिनसे 504 लोगों को सीधा रोजगार हासिल था। ठीक 10 साल बाद यानी 2013-14 में ये सूक्ष्म उद्योग इकाईयां घटकर 146 हो गई। जिनसे 437 लोगों को रोजगार हासिल था। वहीं साल 2018-19 में जिले में 30 सूक्ष्म उद्योग इकाईयां रह गई। इनमें 80 लोगों को रोजगार मिला था। इस दौरान जिले में एक भी मध्यम उद्योग स्थापित नहीं हुआ।
उत्तरकाशी- साल 2003-04 में उत्तरकाशी में कुल 118 सूक्ष्म उद्योग स्थापित थे। जिनसे 180 लोगों को सीधा रोजगार हासिल था। 10 साल बाद यानी 2013-14 में ये सूक्ष्म उद्योग इकाईयां घटकर 100 हो गई। जिनसे 320 लोगों को रोजगार हासिल था। वहीं साल 2018-19 तक 406 इकाईयां स्थापित हो चुकी थी और इनमें 1834 लोगों को रोजगार मिला था। साल 2018-19 सूक्ष्म उद्योगों की संख्या 236 हो गई। जिनमें 673 लोगों को सीधा रोजगार मिल रहा था। इस दौरान जिले में एक भी मध्यम उद्योग स्थापित नहीं हुआ।

रूद्रप्रयाग- राज्य बनने से कुछ समय पहले ही रूद्रप्रयाग जिला अस्तित्व में आया था। तब इस जिले में 65 सूक्ष्म उद्योग थे। 2013-14 में यह तादाद 90 हो गई। जिनसे 293 लोगों को रोजगार मिला हुआ था। 2021 तक जिले में 238 इकाईयां स्थापित हुई। जिसे 744 लोगों को रोजगार मिला हुआ था।

पिथौरागढ़- साल 2003-04 में पिथौरागढ़ जिले में 89 सूक्ष्म उद्योग स्थापित थे। जिनसे 199 लोगों को सीधा रोजगार हासिल था। 10 साल बाद यानी 2013-14 में इनकी तादाद 116 हो गई। जिनसे 366 लोगों को रोजगार हासिल था। वहीं साल 2018-19 तक 123 इकाईयां स्थापित हो चुकी थी और इनमें 414 लोगों को रोजगार मिला था। साल 2018-19 सूक्ष्म उद्योगों की संख्या 236 हो गई। जिनमें 673 लोगों को सीधा रोजगार मिल रहा था। इस दौरान जिले में एक भी मध्यम उद्योग स्थापित नहीं हुआ।

चंपावत- राज्य बनने की शुरूआत में चंपावत जिले में 53 सूक्ष्म उद्योग थे। जिनमें 134 लोगों को रोजगार हासिल था। दस साल बाद यह संख्या घटकर 26 रह गई। जबकि 2018-19 में भी बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी नहीं हुई और महज 39 सूक्ष्म उद्योग ही स्थापित हो सके। जिनमें 142 लोगों को रोजगार हासिल हुआ।

बागेश्वर- साल 2003-04 में बागेश्वर जिले में 50 सूक्ष्म उद्योग थे। जिनमें 85 लोगों को रोजगार हासिल था। 2013-14 में 86 इकाईयां हो गई और रोजगार पाने वालों कीा तादाद 320 हो गई। इस जिले का 2018-19 का डाटा उपलब्ध नहीं है।

जाहिर है कि पहाड़ी जिलों में सूक्ष्म उद्योग के अलावा लघु या मध्यम श्रेणी के उद्यम स्थापित नहीं हो सके। सूक्ष्म उद्योग स्थानीय स्तर पर ही बेहद कम निवेश में संचालित हो जाते हैं। लेकिन लघु और मध्यम उद्योगों के लिये बड़े निवेश की जरूरत रहती है। कुछ जिलों में गिने चुने लघु उद्योग हैं लेकिन मध्यम उद्योग पहाड़ों पर नहीं चढ़ सके। जबकि औद्योगिक विकास और रोजगार के अवसरों के लिये लधु और मध्यम उद्योग बेहतर वातावरण बनाते हैं।

दूसरी ओर देहरादून, हरिद्वार और यूएस नगर में राज्य बनने की शुरूआत में अधिकांश सूक्ष्म उद्योग ही थे। लेकिन सिडकुल की स्थापना के राज्य के मैदानी इलाकों में लघु, मध्यम और भारी उद्योगों की आमद होने लगी। जबकि पहाड़ी इलाकों के लिये किसी तरह के औद्योगिक क्षेत्र विकसित नहीं किये गए। जिसके कारण पहाड़ों से पलायन की गति धीमी होने की बजाए बढ़ती गई।

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