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उदय शंकर : जिसने कला जगत में नया दौर लाने के लिए अल्मोड़ा को बनाया ठिकाना

– आज भारतीय नृत्य कला को आधुनिक रूप देने वाले उदय शंकर की जयंती, फिल्मों की चमक दमक छोड़ अल्मोड़ा को चुनी अपनी कर्मस्थली
PEN POINT, DEHRADUN : भारत में आधुनिक नृत्य का जन्मदाता उदय शंकर, जब मुंबई तब की बंबई में भारतीय फिल्म उद्योग खासकर हिंदी फिल्म उद्योग आकार ले रहा था और उदय शंकर इस उद्योग के आधार स्तंभ बनने वाले थे। फिल्मों में बतौर कोरियोग्राफर सफल होने की सारी संभावनाओं को पीछे छोड़ उदय शंकर को उत्तराखंड का अल्मोड़ा ऐसा भाया कि करियर की चिंता किए बगैर भारत के आधुनिक नृत्य का जन्मदाता यहीं भारतीय शास्त्रीय नृत्य को पश्चिमी रंगमंच से जोड़ने के काम में जुट गया। अल्मोड़ा में इस प्रयोग के जरिए उदय शंकर ने पूरे देश को एक अनुपम विरासत सौंप दी।

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एक महत्वाकांक्षी सपने के तौर पर 1938 में उदय शंकर ने अल्मोड़ा में एक ऐसे सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की थी जहां रहते हुए वे भारत के कला-जगत में नया दौर लाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने तब कला क्षेत्र के दिग्गज रहे जोहरा सहगल, गुरूदत्त जैसे लोगों को भी अल्मोड़ा में जुटाया। तो अपने भाई नामी सितारवादक रविशंकर के अलावा उस्ताद अलाउद्दीन खान, उस्ताद अल्लारक्खा और उस्ताद अली अकबर खान जैसे बड़े संगीतकार ने भी उदय शंकर स्थापित इस केंद्र में रहकर अपनी कला को साधा।
बंगाली मूल के उदय शंकर का जन्म राजस्थान के उदयपुर में 8 दिसंबर 1900 को हुआ। नृत्य की कोई औपचारिक शिक्षा न लेने के बावजूद उन्होंने शास्त्रीय नृत्य में दक्षता हासिल कर ली थी। विदेशी नृत्य से आकर्षित होकर उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य को विदेशी नृत्य से जोड़ा। करियर के शुरूआती दौर में विदेशों में शास्त्रीय नृत्य और विदेशी नृत्य के फ्यूजन की कई सफल प्रस्तुति देने के बाद 38 साल की उम्र में उन्होंने वापिस भारत लौटने का मन बनाया तो अपनी कर्मस्थली अल्मोड़ा को चुना। हालांकि, तब भारतीय फिल्म उद्योग का प्रमुख केंद्र बनकर बंबई तेजी से उभर रहा था और वह उदय शंकर का खुली बांहों से स्वागत भी कर रहा था लेकिन कला को साधने और इस ज्यादा लोकप्रिय बनाने के लिए उदय शंकर ने हिमालयी क्षेत्र अल्मोड़ा को चुना। 1938 को अल्मोड़ा आ गए। धार की तुनि और पाताल देवी के बीच स्थित प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर स्थान को उदय शंकर ने अपनी कर्मस्थली बनाया और यहीं पर उदय शंकर ने अपना उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर स्थापित किया। उदय शंकर का नृत्य विभिन्न ललित कलाओं जैसे संगीत, चित्रकला, रंगमंच, कविता तथा स्थापत्य कला से परिपूर्ण था। कुमाऊंनी रामलीला में भी उदय शंकर ने नाट्यकला, लोककला को लेकर प्रयोग किए। उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर में प्रसिद्ध नृत्यांगना व नायिका जोहरा सहगल और उनकी छोटी बहन उजरा ने शिक्षक के रूप में कार्य किया। प्रसिद्ध लेखक, निर्देशक और नायक गुरु दत्त, उदय शंकर की पत्नी अमला शंकर, गायिका लक्ष्मी शंकर, उदय के छोटे भाई पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान इस संस्थान से जुड़े रहे और अल्मोड़ा में रहकर प्रतिभा को निखारते रहे।

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हालांकि, अल्मोड़ा से उनका साथ लंबा नहीं चल सका और केवल सात साल अल्मोड़ा में रहने के बाद वह अल्मोड़ा छोड़कर चले गए लेकिन अपने पीछे एक ऐसी विरासत जरूर छोड़ गए।
सात साल में ही अल्मोड़ा छोड़ने के पीछे भी कई कहानियां प्रचलित है। बताया जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध शुरू होने के चलते उन्हें अपनी नृत्य कंपनी को लेकर यहां से जाना पड़ा। हालांकि, माना यह भी जाता है कि जब उदय शंकर ने अल्मोड़ा में अपनी कंपनी स्थापित की तो उसके बाद देश विदेश से कई लोग नृत्य और कला सीखने के लिए यहां पहुंचने लगे। अल्मोड़ा में नृत्य व कला कुछ संभ्रांत लोगों को भा नहीं रही थी। वह दौर था जब नाचने गाने को नई पीढ़ी को पथभ्रष्ट करने वाला माना जाता था। लगातार हो रहे विरोध के चलते उदय शंकर को अपना सामान यहां से समेटना पड़ा। साथ ही उदय शंकर का अल्मोड़ा छोड़ने के फैसले के पीछे एक और कारण बताया जाता है कि उस समय सिटोली नगर पालिका की सीमा से बाहर था और उदय शंकर के वाहन को दिन में कई बार नगर में प्रवेश करना पड़ता था। हर समय नगर पालिका चुंगी वसूली करती थी उदय शंकर का वाहन जितनी बार लक्ष्मेश्वर चुंगी से गुज़रता था उतनी बार चुंगी वसूली जाती थी। हर दिन कई बार टैक्स चुकाने से तंग आकर उदय शंकर ने अल्मोड़ा को छोड़ने का फैसला लिया। उसके बाद वह कलकत्ता चले गए। जहां उन्होंने अपनी कंपनी स्थापित की और अपने निधन 1977 तक वहीं रहे। कला क्षेत्र में अपने कार्यों के लिए भारत सरकार ने उन्हें 1962 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 1971 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। उनके निधन के एक साल बाद 1978 में भारत सरकार ने उदय शंकर पर डाक टिकट भी जारी किया।

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