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भेदभाव के खिलाफ उठी एक चिंगारी कैसे बड़े आन्दोलन में बदल जाती है ?

PEN POINT, DEHRADUN : दुनिया का इतिहास भेद-भाव, जुल्मों-सितम और रक्त रंजित किस्सों कहानियों, श्रुतियों और दृश्यों से भरा पड़ा है। इन तमाम अमानवीय कदमों का शांति और हिंसक दोनों रूपों में बहिष्कार और विरोध का हिस्सा भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। जिसने मानव सभ्यता के वर्तमान तक पहुँचने में लंबा सफर तय किया है। आज भी दुनिया में कई तरह की परम्पराएं और कानून नए स्वरूपों में इंसानियत की दुशमन बनी हुई हैं। उनसे भी मुक्ति पाने के लिए आज भी संघर्ष जारी है। इन संघर्षों ने कुछ लोगों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में उन्हें जनता का नायक बना कर स्थापित किया। लेकिन ये आवाजें एक छोटी सी चिंगारी बन कर बड़े विस्फोट के रूप में कैसे बदलती हैं। ऐसी ही एक बानगी आज यहाँ पेश की जा रही है।

बात हो रही दुनिया के दुनया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका की। यहाँ आज ही के दिन यानि 1 दिसंबर, 1955 की। जब मोंटगोमरी, अलबामा में, रोजा पार्क्स नाम की एक अश्वेत महिला को उसके मानवीय अधिकार और प्राकृतिक अधिकार से वंचित करने वाले कानून की आड़ में मजबूर करने की कोशिश की गयी। यूं तो यह उनके समाज के लिए रोजाना सहने वाला अभिशाप जैसा था। लेकिन शायद तब का यह दिन किसी बड़े परिवर्तन के लिए होने की शुरुआत के रूप में सामने आया।

दरअसल इसी दिन रोजा पार्क्स को सार्वजनिक बस में एक श्वेत व्यक्ति के लिए अपनी सीट छोड़ने से इनकार करने के लिए जेल में डाल दिया गय। क्योंकि उसके इस कदम को शहर के नस्लीय अलगाव कानूनों का उल्लंघन माना गया। इसके बाद वहां इस कानून के विरोध के स्वर फुट पड़े और हजारों लोग आंदोलित हो कर सामने आने लगे। इस आंदोलन ने एक बड़े “नागरिक अधिकार आंदोलन” का रूप ले लिया। इसके बाद रोजा पार्क्स को “नागरिक अधिकार आंदोलन की जननी” टाइटल मिल गया। उन्हें आज भी अमेरिका में रोजा पार्क्स को इसी नाम से जाना जाना जाता है। वह 1913 में टस्केगी, अलबामा में पैदा हुई थी। इस महिला ने एक दर्जी के रूप में काम किया और 1943 में नेशनल एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ कलर्ड पीपल (एनएएसीपी) के मोंटगोमरी चैप्टर में शामिल हो गईं ।

क्या था यह भेदभाव पूर्ण कानून जिसका विरोध अमेरिकी इतिहास में बड़ा हमेशा के लिए दर्ज हो गया

1955 में अमेरिकी मोंटगोमरी शहर के एक अध्यादेश के अनुसार, अफ्रीकी अमेरिकियों को सार्वजनिक बसों के पीछे बैठना आवश्यक था। इतना ही नहीं बस के आगे का हिस्सा भर जाने पर उन पीछे की सीटों को भी किसी सफेद सवार के आने पर छोड़ने के लिए भी बाध्य होना पड़ता था। उस दिन हुआ यह कि पार्क्स ब्लैक सेक्शन की पहली पंक्ति में थीं, जब श्वेत ड्राइवर ने मांग की कि वह अपनी सीट एक श्वेत व्यक्ति के लिए छोड़ दें। पार्क्स का इनकार अनायास था, लेकिन यह केवल उसके थके हुए पैरों के कारण नहीं हुआ था, ऐसा कहा जाता है। वास्तव में, स्थानीय नागरिक अधिकार नेता कई महीनों से मोंटगोमरी के नस्लवादी बस कानूनों को चुनौती देने की योजना बना रहे थे, और पार्क्स को इस चर्चा की जानकारी थी।

पार्क्स की गिरफ्तारी के बारे में जानकर, एनएएसीपी और अन्य अफ्रीकी अमेरिकी कार्यकर्ताओं ने तुरंत सोमवार, 5 दिसंबर को काले नागरिकों द्वारा किए जाने वाले बस बहिष्कार का आह्वान कर दिया। यह बात फ़्लायर्स ने पूरी तरह फैला दी और इसके बाद तमाम समर्थक कार्यकर्ताओं ने इस विरोध को व्यवस्थित करने के लिए मोंटगोमरी इम्प्रूवमेंट एसोसिएशन का गठन किया। इस कड़ी में बस बहिष्कार का पहला दिन एक बड़ी सफलता के तौर पर दर्ज की गयी। उस रात 26 वर्षीय रेव मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने एक चर्च में एकत्रित एक बड़ी भीड़ से कहा, “अमेरिकी लोकतंत्र की महान महिमा विरोध करने का अधिकार है अधिकार के लिए।” किंग बस बहिष्कार के नेता के रूप में उभरे और उन्हें एकीकरण के विरोधियों से जान से मारने की धमकियाँ मिलीं। यहाँ तक कि इसके लिए एक साजिश के रूप में एक बार, उनके घर पर बमबारी तक की गई , लेकिन वह और उनका परिवार इस हमले में बच गए।

यह बस बहिष्कार करीब एक साल तक लगातार चलता रहा। इस दिशा में शहर प्रशासन की तरफ से कोई गंभीरता नहीं दिखाई गयी। ऐसे में जब कोई अन्य साधन संभव नहीं हो सका, तो लोगो ने अपने काम काज और स्कूल के लिए कारपूल या मीलों पैदल चलकर अपना सफर तय किया। चूंकि पहले मोंटगोमरी बस में सवारियों की संख्या 70 प्रतिशत अफ्रीकी अमेरिकियों की थी, इसलिए बहिष्कार के दौरान नगरपालिका की परिवहन राजस्व व्यवस्था को इसका बड़ा आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ा। इस बाद 13 नवंबर, 1956 को, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन के समान सुरक्षा खंड के उल्लंघन के रूप में अलबामा राज्य और मोंटगोमरी सिटी बस अलगाव कानूनों को रद्द कर दिया ।

20 दिसंबर को वहां की “सिटी बसों के खिलाफ विरोध आधिकारिक तौर पर बंद कर दिया गया। इतना ही नहीं मोंटगोमरी के नीग्रो नागरिकों से बिना किसी भेदभाव के आधार पर बसों में लौटने की अपील की गयी। अगले दिन बहिष्कार ख़त्म कर दिया गया और रोज़ा पार्क्स नई व्यवस्था के तहत बस की सवारी करने वाले पहले लोगों में शामिल थी।

इस आंदोलन की बदौलत अमेरिका के ऐतिहासिक नायक कहे जाने वाले मार्टिन लूथर किन जूनियर और उनके अहिंसक नागरिक अधिकार आंदोलन ने इसे अपनी पहली बड़ी जीत हासिल करने के रूप में देखा। उन्होंने इस जीत के बाद उम्मीद जताई कि आने वाले समय में और भी बहुत कुछ इस दिशा में बदलता हुआ दिखेगा।

बता दें कि 24 अक्टूबर 2005 को रोजा पार्क्स की मृत्यु हो गई। तीन दिन बाद अमेरिकी सीनेट ने पार्क्स के सम्मान में उनके शरीर को यूएस कैपिटल रोटुंडा में सम्मान के साथ रखने की अनुमति देकर एक प्रस्ताव पारित किया और वे अमेरिका के इतिहास का प्रमुख हिंसा बन गयी।

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