राज्य के अन्य मुख्यमंत्रियों की तुलना में कैसे हैं सीएम धामी
PEN POINT, DEHRADUN : सूबे के 12 वें मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी का एक साल का कार्यकाल आज पूरा हुआ। इस एक साल को लेकर उनके कामों की समीक्षा भी हो रही है। जिनका लब्बोलुआब ये है कि कुल मिलाकर अब तक धामी ने सधे हुए अंदाज में सरकार चलाने की कोशिश की है। लेकिन उत्तराखंड की नियति है कि यहां मुख्यमंत्री बदलने की सुगबुगाहट के बीच ही मुखिया को सरकार चलानी पड़ती है। ऐसे में हर मुख्यमंत्री की उसके पूर्ववर्तियों से तुलना की जाती है। पुष्कर सिंह धामी भी इससे अछूते नहीं हैं। गाहे बगाहे उन्हें भी पूर्व मुख्यमंत्रियों के तौर तरीकों या काम काज की कसौटी पर तोला जाता है। धामी को भी अक्सर उनके पूर्ववर्तियों के साथ तोला जाता है, जिनमें से कुछ अहम बातें निकलकर आई हैं।
सबसे युवा, कम अनुभवी
धामी अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं। यही बात उन्हें सबसे खास बनाती है। हालांकि राजनीतिक पारी के लिहाज से उनका अनुभव पर्याप्त कहा जा सकता है। दो बार विधायक होने के साथ ही वे युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहने के बाद भाजपा में काफी सक्रिय चेहरे के रूप में रहे हैं। लेकिन इस मामले में वे अपने पूर्ववर्तियों से पीछे ही कहे जाएंगे। एनडी तिवारी से लेकर पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत तक का राजनीतिक प्रोफाइल धामी से बड़ा रहा। उत्तराखंड की राजनीति को करीब से देखने वालों के मुताबिक धामी का प्रोफाइल भले ही कमतर रहा हो लेकिन भगत सिंह कोश्यारी के ओएसडी के साथ ही युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उन्हें सत्ता और संगठन का अच्छा खासा अनुभव हासिल था।
बयानबाजी को लेकर सचेत
युवा और अपेक्षाकृत कम अनुभव के बावजूद धामी अपने पूर्ववर्तियों से कई मायनों में आगे निकलते दिखे। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत जहां अपने बयानों और फिसलती जुबान से कई बार आलोचनाओं का शिकार हुए, वहीं धामी ने बयानबाजी को लेकर काफी सावधानी बरती है। इसके अलावा व्यवहार में सहजता बनाए रखने में भी वे कामयाब रहे हैं। भाजपा के ही डा.रमेश पोखरियाल निशंक जहां अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरते चले गए, वहीं भूवन चंद्र खंडूड़ी भी कुछ खास आईएएस अफसरों पर खास मेहरबानी के कारण निशाने पर रहे। लेकिन इस एक साल में पुष्कर सिंह धामी ने खुद पर ऐसा कोई आरोप नहीं लगने दिया। ना ही वे सरकारी हैलीकॉप्टर का साइकिल की तरह इस्तेमाल करते नजर आए। मीडिया से जुड़े जीतेंद्र पेटवाल बताते हैं कि धामी की ओर से अभी तक कोई भी ऐसा बयान नहीं आया, जिससे विरोधी उन्हें ट्रोल कर सकें या निशाने पर ले सकें।
खटीमा की हार चुनाव प्रबंधन पर सवाल
राजनीति में प्रतिद्वंदी पार्टी के बाहर भी होते हैं और भीतर भी। पुष्कर सिंह धाम मुख्यमंत्री रहते हुए खटीमा में अपने कांग्रेसी प्रतिद्वंदी से चुनाव हार गए। तर्क दिया जाता है कि सीएम अपने चुनाव क्षेत्र में समय नहीं दे सके, यही बात खटीमा के स्थानीय लोग भी कहते हैं लेकिन अलग ढंग से। उनका मानना है कि सीएम बनने के बाद धामी उनसे दूर हो गए। जो भी इससे धामी के चुनाव प्रबंधन पर सवाल जरूर खड़ा हुआ है।
प्रतिद्वंदियों को जोर का झटका धीरे से
पार्टी में अपने प्रतिद्वंदियों से भीतरखाने भले ही धामी की तल्खियां बनी हुई हैं, लेकिन इस एक साल में उन्होंने सार्वजनिक रूप से ना तो इसे उजागर होने दिया। और ना ही खबरनवीसों को इसकी भनक लग सकी। जबकि जिस तरीके से उन्होंने काबिना मंत्रियों के पेंच कसे हैं उसे राजनीतिक प्रतिद्वंदिता का अंदाज लगाया जा सकता है। वहीं मदन कौशिक और अरविंद पांडे जैसे कददार नेता धामी सरकार में सामान्य विधायकों की तरह समय निकाल रहे हैं। जबकि इस मामले में धामी के पूर्ववर्ती सभी मुख्यमंत्री अपने कार्य कलापों से प्रतिद्वंदियों को खुले तौर ललकारते रहे हैं।
मीडिया मैनेजमैंट
राज्य के अन्य मुख्यमंत्रियों की तुलना में पुष्कर सिंह धामी को मीडिया में अब तक बेहतर जगह मिली है। इससे उनके मीडिया मैनेजमेंट का अंदाजा लगाया जा सकता है। लगातार बेरोजगारों के निशाने पर रहने के साथ ही भ्रष्टाचार को लेकर विरोधी उन्हें घेरने की कोशिश करते दिखे लेकिन मीडिया में इन बातों को खास तरजीह नहीं मिल सकी। जिसका श्रेय उनके मीडिया प्रबंधन को जाता है।
रिपोर्ट- पंकज चौहान