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जब आजादी के 30 साल बाद देश को मिला पहला गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री

-आज के ही दिन आपातकाल के बाद जनता दल के पहले प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बने
PEN POINT, DEHRADUN : देश को आजाद हुए तीस साल हो चुके थे और दो साल तक देश ने आजादी के बाद आपातकाल के रूप में तानाशाही भी देख ली थी। लेकिन, आज के ही दिन 24 मार्च 1977 को स्वमूत्र पान जैसी अजीब आदत के लिए प्रसिद्ध मोरारजी देसाई ने देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। पूरा देश इसका गवाह बना। आजादी के बाद पहला मौका था जब कांग्रेस सत्ता से बाहर बैठी थी और गैर कांग्रेसी सरकार देश की शीर्ष सत्ता पर थी। कांग्रेस में कई बार केंद्रीय मंत्री रहे मोरारजी देसाई के हिस्से यह उपलब्धि आई कि उन्होंने अपनी ही पार्टी को हराकर प्रधानमंत्री का पद पाया।
देश के लोकतंत्र में आपातकाल के रूप में एक गहरा धब्बा लग चुका था, दो सालों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल समाप्त कर लोक सभा चुनाव की घोषणा कर दी। उम्मीद के मुताबिक आपातकाल ने इंदिरा गांधी की प्रतिष्ठा को बुरी तरह प्रभावित किया। लिहाजा जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ बड़ी जीत हासिल की। अब देश की आजादी के बाद तीन दशक के भीतर देश में पहली बार पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनने की राह खुल चुकी थी। लेकिन, गठनबंधन की इस सरकार में प्रधानमंत्री पद के तलबगार कई थे।
शुरू से ही जनसंघ अब की भाजपा ने तय कर लिया था कि जनता पार्टी में विवाद पैदा नहीं करना है। 1977 के चुनावों में जनता पार्टी में शामिल चार अन्य दलों से ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद जनसंघ की ओर से किसी ने भी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी नहीं की। अब प्रधानमंत्री के लिए मोरारजी देसाई, बाबू जनजीवन राम व चरण सिंह के बीच खींचतान मची हुई थी।
मोरारजी देसाई पहले भी पं. जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद व लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद प्रधानमंत्री बनते बनते रह गये थे। बताया जाता है कि उनके व्यापारी वर्ग का समर्थन करने व हिंदू रूझान वाले नेता की छवि के कारण कांग्रेस उन्हें प्रधानमंत्री बनाने से बचती रही।
मोरारजी देसाई राज्य के मुख्यमंत्री के साथ ही कई सालों तक केंद्रीय मंत्री भी रह चुके थे। वहीं बाबू जगजीवन राम इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा मंत्री होने के साथ ही लंबे समय से सांसद बने रहने का कीर्तिमान स्थापित कर चुके थे। दलित जाति से होने के नाते जनसंघ की पहली पसंद भी बाबू जगजीवन राम थे, जनसंघ का मानना था कि दलित प्रधानमंत्री के नेतृत्व में काम करने से हिंदुत्व एकता का संदेश जाएगा लेकिन जाट नेता चरण सिंह दलित नेतृत्व के सख्त खिलाफ थे। चरण सिंह प्रधानमंत्री पद की मांग इसलिए कर रहे थे क्योंकि उनके भारतीय लोकदल को मोरारजी के कांग्रेस ओ से ज्यादा सीटें मिली थी। लेकिन, जयप्रकाश नारायण की ओर से मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री चुनने के साथ ही जगजीवन राम और चरण सिंह प्रधानमंत्री पद की दौड़ से बाहर हो गये। बाद में जगजीवन राम को रक्षा मंत्रालय और चरण सिंह को गृह मंत्रालय देने के साथ दोनों को उप प्रधानमंत्री बनाकर शक्ति संतुलन की कोशिश की गई।
पहली बार कांग्रेस सत्ता से बाहर थी और विभिन्न दलों की मिली जुली सरकार पहली बार देश में गैर कांग्रेसी सरकार बनाने की तैयारियां कर चुकी थी। विभिन्न दलों से 19 लोगों को मोरारजी देसाई के मंत्रीमंडल के लिए चुना गया। और आखिरकार 24 मार्च 1977 को देश को पहले गैर प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई मिले। हालांकि, वह बस दो साल ही प्रधानमंत्री पद रहे और प्रधानमंत्री पद से चूके चरण सिंह ने इंदिरा गांधी के सांसदों का समर्थन लेकर जुलाई 1979 को मोरारजी देसाई की सरकार गिरा दी। चरण ने इंदिरा गांधी के सांसदों के साथ मिलकर सरकार बनाई और दो साल के भीतर ही दूसरे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली लेकिन 6 महीने के कार्यकाल में ही इंदिरा गांधी के सांसदों ने समर्थन सरकार से वापिस ले लिया और 14 जनवरी 1980 को सरकार गिर गई और आम चुनावों की घोषणा हो गई। पहली गैर कांग्रेसी सरकार का यह प्रयोग असफल रहा लेकिन इसने भविष्य में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने की नींव भी तैयार की।

स्रोत – जुगलबंदी, वन लाइफ इज नॉट इनफ, एमरजेंसी रिटोल्ड पुस्तकें।
प्रस्तुति – पंकज कुशवाल।

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