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कितने अनूठे हैं उत्तराखंड के लोक उत्सव, तस्वीरों में देखिए

Pen Point : पहाड़ों में ठंड की आहट के साथ ही मेलों और उत्सवों का उल्लास के रंग चढ़ने लगे है। ये रंग इतने अनूठे हैं कि अपनी ओर खींच लेते हैं। जौनसार में महासू का जागड़ा, उत्तरकाशी का सेलकू, टिहरी में सेम मुखेम का मेला, चमोली में नंदा की वार्षिक राजजात, और जाख का मेला, पिथौरागढ़ की हिलजात्रा कुछ ऐसे ही लोक उत्सव हैं- जिन्हें शब्दों से ज्यादा चित्रों के जरिए महसूस किया जा सकता है। ऐसे ही कुछ चित्रों को देख आप अगली बार इन लोक उत्सवों में शामिल होने का मन जरूर बनाएंगे-

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उत्तरकाशी जिले के टकनौर इलाके में मनाया जाने वाला लोकपर्व सेलकू, जिसमें हिमालयी राजा समेश्वर देवता की पूजा की जाती है।
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सेलकू पर्व पर पारंपरिक लोकनृत्य करती ग्रामीण महिलाएं।
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जौनसार में महासू देवता की उपासना के पर्व जागड़ा पर उमड़ा जनसमूह
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केदार घाटी में जाख मेले में अंगारों पर नृत्य करता यक्ष राज का पश्वा। दुर्गम इलाके में इस मेले में बहुत बड़ी तादाद में लोग पहुंचते हैं।
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चमोली जिले के बधाण इलाके में हिमालय की अधिष्टात्री देवी मां नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा। यह यात्रा जब वाण गाँव पहुंचती है तो मां नंदा और उनके भाई लाटू देवता के मिलन का दृश्य लोगों को भाव विभोर कर देता है।
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पिथौरागढ़ जिले में कुमौड़ की हिलजात्रा का एक दृश्य। सदियों से चले आ रहे इस लोकपर्व में का मास्क और मेकअप के साथ कलाकारों की भाव भंगिमा हर किसी को अपनी ओर खींच लेती है।
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रम्माण, चमोली जिले के सलूड़ गांव में हर साल अप्रैल में आयोजित होने वाला यह उत्सव युनेस्को की विश्व धरोहरों में शामिल है। राम से जुड़े प्रसंगों लोक शैली में प्रस्तुतिकरण, लोकनाट्य, स्वांग, देवयात्रा, आदि के द्वारा किया जाता है। जिसमें मुखौटों का अभिनव प्रयोग देखने को मिलता है।
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टिहरी जिले के प्रतापनगर इलाके में सेम मुखेम का मेला। जहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु नागराज की पूजा के लिये पहुंचते हैं। यह उत्तराखंड के प्रमुख नागतीर्थों में से एक है।

Featured Image-Jaimitra Singh Bisht, Kitab Ghar, Almora.

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