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शराब की स्वीकार्यता के इस दौर में निर्मल पंडित की शहादत शून्य हो गई ?

Pen Point, Dehradun : क्या आपने निर्मल पंडित और उनकी शहादत के बारे में सुना है। हमारे लिये इसके क्या मायने है, खास तौर पर आज के दौर में। जब शराब का चलन आम हो गया है और सरकार भी शराब के जरिये कमाई के नए तरीके ईजाद कर रही है। ऐसे में आज की पीढ़ी के लिये निर्मल पंडित के बारे में जानना जरूरी हो जाता है।
बात राज्य बनने से करीब दो साल पहले यानी 1998 की है। उत्तराखंड में महिलाएं और युवा सरकार की शराब नीति का विरोध कर रहे थे। पहाड़ में शराब के चलन को बढ़ाने के लिये ठेकों की नीलामी चल रही थी। 27 मार्च दिन था और पिथौरागढ़ कलक्ट्रेट में भी छात्र नेता निर्मल पंडित अपने साथियों के साथ मौजूद थे। शराब की दुकानों की नीलामी को इन युवाओं ने पहाड़ों के लिये घातक बताया। सरकार के अड़ियल रूख को देखते हुए निर्मल पंडित ने खुद पर पैट्रोल छिड़क कर आग के हवाले कर दिया। आनन फानन में उन्हें दिल्ली रैफर किया गया। जहां 16 मार्च 1998 को इस युवा नेता ने दम तोड़ दिया। निर्मल पंडित तो शहीद हो गए, लेकिन उत्तराखंड में नशा विरोधी आंदोलन जारी रहा।

कहा जा सकता है कि उत्तराखंड और नशा विरोधी आंदोलन एक दूसरे के पूरक रहे हैं। राज्य गठन से पहले ही इस हिमालयी हिस्से में नशा विरोधी आंदोलन का इतिहास बहुत पुराना है। पहाड़ की महिलाओं को उम्मीद थी कि नया राज्य बनेगा तो नशे का भूत भी साथ छोड़ देगा और सपनों का नशा मुक्त राज्य आकार लेगा। लेकिन, राज्य गठन के बाद नशा मुक्त राज्य का सपना टूट गया।

शराब की दुकानें हर छोटे बड़े कस्बे तक पहुंच गई। पहले शराब तस्कर अवैध रूप से शराब बेच रहे थे तो राज्य गठन के बाद सरकार ने दुकानें खोल खुद शराब बेचना शुरू किया। दलील दी गई कि राज्य के विकास को रफ्तार देने के लिए शराब से होने वाली कमाई जरूरी है। राज्य निर्माण के दो दशकों में हर छोटे बड़े बाजारों तक शराब की दुकानें खोलने के बाद अब राज्य सरकार ने घरों को भी बार में तब्दील करने की ठान ली।

और कमाल देखिए इस हफ्ते की शुरुआत में राज्य में पहला घर-बार भी बन गया। उत्तराखंड सरकार ने नई आबकारी नीति 2023-24 में शराब के शौकीनों के व्यक्तिगत उपयोग के लिए घर में बार खोलने का लाइसेंस देने का प्रावधान किया है जिसके तहत उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से एक व्यक्ति ने ऑनलाइन आवेदन किया जिसका इस हफ्ते की शुरुआत में लाइसेंस जारी कर दिया गया है।

खास बात ये है कि अब कुछ महिला संगठनों को छोड़कर शराब विरोधी आंदोलन से युवा गायब हैं। यही वजह है कि शराब को लेकर सरकार के किसी भी कदम का विरोध कहीं नहीं दिखता। लिहाजा जिस राज्य में शराब के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर जाया करते थे, आज उसी राज्य की हर सड़क और हर गली में शराब बिकती नजर आ रही है।

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