मौसम और पर्यटन विभाग की बेरुखी : बर्फवारी के लिए तरसता औली और आसपास की पर्वत श्रंखला
PEN POINT, JOSHIMATH: उत्तराखंड की महज एक शीत कालीन क्रीड़ा स्थली औली इन दिनों मौसम की बेरुखी की मार झेल रही है. इस वजह से यह पूरा इलाका पर्यटकों की आमद की बात जोहने को मजबूर है. कुछ सालों से मौसम ने पूरा मिजाज बदल दिया है. यहाँ समय पर बर्फवारी नहीं हो रही है.
बता दें कि आम तौर पर इस मौसम में हमेशा औली गोरसों से दिखने वाला गढ़वाल हिमालय का 360 डिग्री का पेनोरमिक व्यू और उसमे दिखने वाली पर्वत श्रृंखला बर्फ सराबोर हुआ करती थी. इससे यहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य में चार-चाँद लग जाया करते थे. लेकिन इस बार यह पूरी हिमालयी बेल्ट सूखी नजर आ रही है.
भू वैज्ञानिकों की माने तो विंटर में तापमान बढ़ने से बर्फबारी की प्राकृतिक प्रक्रिया शिफ्ट हो रही है, जो हिमालय, खास कर औली सहित अन्य बर्फीले शीत कालीन पर्यटन स्थलों के लिऐ ठीक नही है. हिम क्रीड़ा स्थली के नाम से पर्यटन मानचित्र में दर्ज विंटर डेस्टिनेशन औली में आलम ये है कि अब जब 6.5 करोड़ के स्नो गन मशीनों में जंग लग चुका है और कृत्रिम बर्फ तो दूर प्राकृतिक बर्फ़ के तक दर्शन दुर्लभ हो गए हैं.
औली बुग्याल की सुंदर प्राकृतिक ढलानों पर विंटर गेम्स के लिए बनाई गई इंटर नेशनल स्की फेडरेशन से एप्रूव नंदा देवी स्की स्लोप बिना बर्फ के सूखे रेगिस्तान जैसे दिखाई दे रही है. इन 1.35 किलोमीटर लंबे दक्षिण मुखी स्की ढलानों पर करीब साढ़े 6 करोड़ की लागत से यूरोप से आयातित आर्टीफिशियल स्नो मेकिंग सिस्टम और स्नो गन एक दशक से महज शो पीस साबित हो गयी है.
जानकारों का मानना है कि यह सिस्टम ही अगर इन दिनों काम कर जाता, तो बर्फ के लिऐ जूझ रहे औली आने वाले सैकड़ों पर्यटक इसी कृत्रिम बर्फ का लुफ्त उठाते और यहां नेशनल विंटर गेम्स भी अयोजित होते. प्राकृतिक बर्फबारी पर निर्भरता भी कम हो जाती अगर ये सफेद हाथी नन्दा देवी स्कीइंग स्लोप पर बर्फ बनाने में कामयाब हो जाते, तो पूरे पहाड़ में जहां तापमान इतना नीचे जा रहा है कि पानी की पाईप लाईने भी जम जा रही हैं.
ऐसे में इसे विंटर डेस्टिनेशन औली का ही दुर्भाग्य ही माना जा सकता है कि यहाँ इतने तापमान में भी न कृत्रिम बर्फ बनाने वाली मशीन औली की नन्दा देवी स्किंग स्लोप पर बर्फ बनाने में सक्षम हो पा रही और नही 4 करोड़ खर्च कराने के बाद पिछले 4 सालों से औली ओपन आईस स्केटिंग रिंक में आईस जम सकी है. जबकि इस इलाके में प्राकृतिक झरने,नाले,ताल पूरी तरह जम गए हैं, लेकिन मजाल है कि औली में लगी स्नो गन बर्फ बना दे, ताकि थोड़ा बहुत पर्यटकों को कृत्रिम बर्फ में ही सही स्कीइंग और स्नो फन का आनंद उपलब्ध कराया जा सके.
स्थानीय लोग और पर्यटन कारोबारियों का मानना है कि स्केटिंग रिंक में अगर आईस जम जाती तो, औली मे स्कीइंग के अलावा एक और आउट डोर ऐडवेंचर का लुफ्त पर्यटक उठाते, लेकिन अफसोस पर्यटन महकमे और GMVN की अगुवाई में ये स्नो मेकिंग सिस्टम और आईस स्केटिंग रिंक के हालात सुधारने की दिशा में मौन साधे बैठे हैं.
फिलहाल सबकी निगाहें 10जनवरी के आसपास होने वाले एक और पश्चिमी विक्षोभ पर टिकी हुई है, 25दिसंबर और न्यू ईयर सेलिब्रेशन पर औली गोरसों पहुंचने वाले पर्यटकों को बर्फ नही दिखने से मायूसी हाथ लगी, ऐसे में बड़ी बात ये की बर्फबारी के सीजन में औली सहित सभी उच्च हिमालई इलाके को बर्फ के लिए जूझना पड़ रहा है.
स्थानीय पर्यटन कारोबारियों ओर स्कीइंग प्रेमियों की अभी भी आस है की बर्फबारी ज़रूर होगी और औली गोरसों की वादियां सहित गड़वाल हिमालय की हिम विहीन पर्वत श्रंखलाये बर्फ से लक दक होंगी, फिर से यहां चहल पहल लौटेगी ऐसे में आने वाले दिनों में वेस्टर्न डिस्टरबेंस कितना सक्रिय होगा यहां और बर्फबारी से पर्यटन कारोबार चमकेगा और पर्यटकों की बर्फबारी दिखने की मुराद भी पूरी होगी.