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क्या तिवारी सरकार के नक़्शे कदम पर आगे बढ़ने का प्रयास कर रही है धामी सरकार ?

PEN POINT DEHRADUN : उत्तराखंड की मौजूदा धामी सरकार राज्य की पहली निर्वाचित तत्कालीन मुख्यमंत्री दिवंगत नारायण दत्त तिवारी के नक़्शे कदम पर एक कदम आगे चलने की योजना पर बढ़ने की कोशिश करती हुई दिखाई दे रही है। देश की तरह राज्य में भी लगातार रोजगार के अवसर कम होते देख सरकार फिर से हाथ-पांव चलाने के प्रयास में जुटती नजर आ रही है। हालांकि सीएम धामी से पहले रहे उनके पूर्ववर्तियों ने ऐसी तमाम कोशिशें की लेकिन वो धरातल पर उतरने में कितनी कारगर हो पाई ये किसी से छिपा नहीं है। मसलन राज्य में निवेश लाने के लिए देश-विदेश से उद्योग पतियों को रिझाने के लिए इन्वेस्टर समिट जैसे बड़े आयोजन किये गए। लेकिन नतीजा सिफर ही रहा।

दरअसल धामी सरकार उत्तराखंड में 20 हॉस्पिटल लगाने की योजना बना रही है। इसके लिए बनाई गयी नीति के तहत शिक्षा क्षेत्र में 10 विश्वविद्यालय, 10 कॉलेज व 10-12वीं तक के स्कूल स्थापित करने की प्लानिंग की गयी है।

वर्तमान सरकार का अनुमानित दावा है कि साल 2030 तक राज्य के युवाओं के 20 लाख के करीब रोजगार के अवसर पैदा किये जाएंगे। इसमें सेवा क्षेत्र नीति के तहत जितने भी प्रोजेक्ट राज्य में लगेंगे, उनमें राज्य के 75 प्रतिशत युवाओं को रोजगार मुहैया कराना जरूरी होगा। सरकार को उम्मीद है कि इस नीति के बाद राज्य में देश-विदेश के नामी होटल, हॉस्पिटल, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, फिल्म सिटी के निर्माण की राह आसान हो जाएगी।

'Pen Point

उत्तराखंड को बने हुए 23 साल पूरे होने वाले हैं। यहां सेवा क्षेत्र में बहुत कुछ उम्मीद जताई गयी, लेकिन इस दिशा में बढ़ने में सरकारें बहुत ज्यादा सफल नहीं हो पायीं। जो राज्य के नीति नियंताओं की दूरदृष्टि में कमी को जाहिर करता है। हालाँकि प्रदेश की पहली निर्वाचित सरकार में सीएम रहे नारायण दत्त तिवारी ने इस दिशा में एक ठोस कदम रखा था। जिसके तहत प्रदेश में रुद्रपुर, हरिद्वार, देहरादून, कोटद्वार सहित कुछ अन्य क्षेत्रों के लिए विकास का रोडमैप तैयार किया गया था। प्रदेश में सिडकुल में करीब तब शुरूआती चरण में 500 से अधिक उद्योगों की स्थापना की गयी।

उत्तराखंड में बड़ा निवेश हुआ और प्रदेश के युवाओं को बड़ी संख्या में नौकरियां मिलीं और राज्य सरकार को हर साल करोड़ों का राजस्व भी हासिल हुआ। औद्योगिक क्षेत्र स्थापित होने से इन क्षेत्रों के आसपास के क्षेत्रों में भी रोजगार के नए अवसर पैदा हुए। ऐसा ही कुछ कदम आगे बढ़ने की दिशा में एक और प्रयास करने का जोरशोर से दावा और उम्मीद की जा रही है।

वर्तमान सरकार का अनुमानित दावा है कि साल 2030 तक राज्य के युवाओं के लिए 20 लाख के करीब रोजगार के अवसर पैदा किये जाएंगे। इसमें सेवा क्षेत्र नीति के तहत जितने भी प्रोजेक्ट राज्य में लगेंगे, उनमें राज्य के 75 प्रतिशत युवाओं को रोजगार देना जरूरी होगा। सरकार को उम्मीद है कि इस नीति के बाद राज्य में देश-विदेश के नामी होटल, हॉस्पिटल, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, फिल्म सिटी के निर्माण की राह आसान हो जाएगी।

हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, काशीपुर, रुद्रपुर, रुड़की के अलावा बड़े पर्वतीय शहरों में प्रोजेक्ट की संभावनाएं जताई गई हैं। प्रदेश में कुल 20 हॉस्पिटल लगाने की योजना है। नीति के तहत शिक्षा क्षेत्र में 10 विश्वविद्यालय, 10 कॉलेज व 10 12वीं तक के स्कूल स्थापित करने की योजना है।

वहीं उच्च शिक्षण संस्थानों में 10 हजार शिक्षक व स्टाफ की जरूरत होगी, जिसमें से राज्य के 3500 होंगे। सरकार इसके लिए अलग से मल्टीपल हायर एजुकेशन जोन भी बनाएगी।खेल सेक्टर में पर्वतारोहण के लिए उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ व टिहरी, जल आधारित क्याकिंग, राफ्टिंग, कैनोइंग के लिए नैनीताल व टिहरी, शीतकालीन खेलों के तहत स्कीइंग, स्नोबांडिंग, आइएस स्केटिंग के लिए उत्तरकाशी व चमोली में संभावनाएं देखी गई हैं।

इसके तहत हाई एल्टीट्यूड ट्रेनिंग संस्थान भी स्थापित होंगे। इसी प्रकार, योगा, वेलनेस, आईटी, डाटा सेंटर आदि क्षेत्रों में भी निवेश व रोजगार की संभावनाएं देखी गई हैं। सिंगल विंडो सिस्टम के तहत नीति की सभी प्रक्रिया होगी। सिडकुल इसके लिए दिशा-निर्देश तैयार करेगा। पहले जिला स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति(डीएलईसी) से अनुमति के बाद प्रोजेक्ट का प्रस्ताव राज्य स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति के पास भेजा जाएगा। राज्य सरकार का फोकस है कि इन तमाम प्रयासों से राज्य में युवाओं के लिए 75 फीसदी रोजगार के नए मौके पैदा हो जाएंगे।

गौर तलब है कि यह कुछ-कुछ ठीक तत्कालीन नारायण दत्त तिवारी सरकार की उस औद्योगिग नीति की तरह है जिसमें स्थानीय युवाओं के लिए 70 फीसदी रोजगार देने की वैधानिक व्यवस्था की गयी थी। तब तिवारी के विजन के चलते केवल उद्योगों की स्थापना का तानाबाना ही नहीं बुना गया, बल्कि उसे बड़े पैमाने पर धरातल पर भी उतारा गया। तिवारी की दूर दृषिट वाली सोच का नतीजा रहा कि जब नवसृजित उत्तराखंड में सड़क, बिजली आदि के विकास का ढांचा तक तैयार नहीं था, तब उन्होंने औद्योगिक घरानों को देवभूमि में इंडस्ट्री स्थापित करने के लिए राजी किया। इसी का नतीजा है कि आज के कई क्षेत्र सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र तौर पर राज्य के विकास की धुरी बने हुए हैं।

वर्तमान में प्रदेश में हजारों की संख्या में औद्योगिक इकाइयां स्थापित हो चुकी हैं, जहां देश की नामचीन कंपनियां उत्पादन कर रही हैं। औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना के बाद इन इलाकों से लगे हुए क्षेत्रों में अलग अलग रूपों में बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल रहा है। ट्रांसपोर्ट उद्योग में बड़े पैमाने में फैला है। यही नहीं औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के बाद से यहाँ जमीनों के भाव बढ़े हैं। इससे क्षेत्र में किसानों को उनकी जमीनों के दाम कई गुना ज्यादा मिले।

स्थानीय स्तर पर किसानों ने अपनी जमीनें उद्योगों को दीं और उसके एवज में मिले पैसे से होटल, ढाबे, रेस्त्रां, फार्म हाउस, मोटर मैकेनिक समेत कई क्षेत्र में व्यापार की दिशा में कदम बढ़ाया। इससे क्षेत्र के गांवों का एक तरह से शहरीकरण हुआ और लोगों की जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव देखा गया।

लगता है अब तिवारी सरकार की ही तरह धामी सरकार कुछ कदम आगे बढ़ाने की योजना बना रही है। हालाँकि कि अभी जो प्लानिंग दिखाई जा रही है, उसके लिए मौजूदा सरकारी तंत्र कितना फुलप्रूफ प्लान तैयार करने की स्थिति में है। साथ ही तिवारी के राजनैतिक कद और अनुभव के सामने धामी सरकार कितना काम धरातल पर उतार पाती है, उसके लिए अभी इन्तजार करना होगा। साथ ही यह देखना भी दिलचस्प होगा कि सरकार की तरफ से आने वाले दिनों में आयोजित की जाने वाली इन्वेस्टर समिट महज राजनीतिक इवेंट बन कर न रह जाए।

हालाँकि देश के साथ ही प्रदेश में बेरोजगारी से युवओं की बड़ी आबादी इससे जूझ रही है। इन नाउम्मीद युअवों के हाथों को काम देने के लिए सरकारों को गंभीर प्रयास करने ही होंगे। हालाँकि देश के साथ ही प्रदेश में बेरोजगारी से युवाओं की बड़ी आबादी जूझ रही है। इन नाउम्मीद युअवों के हाथों को काम देने के लिए सरकारों को गंभीर प्रयास करने ही होंगे।

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