खतरे के मुहाने पर खड़ी है धरती ?
PEN POINT, DEHRADUN : बढ़ता तापमान और मौसम में हुए बदलाव को आमतौर पर जलवायु बदलाव के तौर पर माना जाता है। क्योंकि जिस तरह से अब सर्दी, गर्मी, बारिश और बर्फवारी अपने पारंपरिक समय पर न हो कर बेवक्त पर हो रही है, यही बदला पैटर्न जलवायु परिवर्तन की गवाही चीख-चीख कर दे रहा है। लेकिन मानव विकास की अंधी रेस इसे कम कमरने के बजाय बढ़ाने पर आमादा दिखाई दे रही है। इसके लिए आम लोग इतने जिम्मेादार नहीं हैं, जितने पूॅंजीपति और इनकी पिछलग्गू बनी फिर रही सरकारें हैं। भूगोल के इतिहास और उसकी उम्र की रफ़्तार को गंभीरता से देखा जाए, तो ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि हमने अपनी प्यारी धरती को खतरे के मुहाने पर ला खड़ा कर दिया है।
मौसम और तापमान के बदले हुए मिजाज से धरती को तेजी से खतरा पैदा हो रहा है। क्योंकि मानव जनित ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बड़ी मात्रा में हो रहा है। इसके अलावा मौसम विज्ञानियों और पर्यावारण विशेषज्ञों की अध्ययन रिपोर्ट्स यह भी बताती हैं कि इसमें बहुत कम मात्रा में सूर्य की गतिविधि में आए आंशिक बदलाव और धरती पर लाखों सालों से सुलग रहे बड़े ज्वालामुखी विस्फोट भी स्वाभाविक कारण हैं। लेकिन इसके अलावा जो तेजी जलवायु परिवर्तन¬¬¬ में दर्ज की गई है, वह इन्हीं बीते 200-250 सालों में सामने आई है। जलवायु परिवर्तन पर सबसे अधिक प्रभाव अंधाधुद औ़द्योगिक विकास के चालक के तौर पर सामने आया है। इसमें सबसे अधिक भूमिका जीवाश्म ईंधन के जलने की रही है।
कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाये जाने से कार्बनडाई ऑक्साइड और मीथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों उत्सर्जन पैदा होता है। यही हमारी प्यारी धरती को चारों ओर से कंबल की तरह ढक लेता है। इके बाद यह कंबल सूरज की गर्मी से गरम हो कर और धरती के तापमान को बढ़ने का काम करता है। इसी पूरी गैर प्राकृतिक प्रक्रिया से धरती के तापमान में अनाववश्यक रूप से बढ़ोत्तरी होने पर वाष्पीकरण की प्रोसेस में बदलाव आ जाता है, जिससे बेमौसम बारिश, आंधी, तूफान आने धरती और उसके समुद्री क्षेत्र में उथल-पुथल मचाने लगते हैं और विनाश का कारण बनते हैं। इससे धरती की जैव विविधता नष्ट होती है।
विकास और सुख सुविधाओं के बाजार ने धरती के तापमान को बढ़ाने में कोई कोर कसर नही छोड़ी है। इमारतों, कारों को गर्म रखने के लिए कोयले और तेल की उपयोगिता से ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं। जंगलों निरंतर कटाई भी कार्बन डाईऑक्साइड रिलीज हो सकती है। मीथेन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत के तौर पर कृषि, तेल और गैस के उपयोग का चलन भी एक प्रमुख कारक के रूप में दर्ज किया गया है। ऊर्जा, उद्योग, परिवहन, भवन, कृषि और भूमि उपयोग ग्रीनहाउस गैसों के उत्सार्ज के प्रमुख क्षेत्रों सुमार हैं।
प्रकुति के साथ बढ़ी अनावश्यक मानवीय गतिविधियां पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। यही गतिविधियां ही ग्रीनहाउस गैसों का बड़ा कारण बन रही हैं, जो कम से कम पिछले दो हजार वर्षों में किसी भी समय की तुलना में सबसे तेजी से दुनिया को गर्म करने में लगी हुई हैं।
अध्ययन बताते हैं कि पृथ्वी की सतह का औसत तापमान औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म हुआ है और पिछले 100,000 वर्षों में किसी भी समय की तुलना में अधिक गर्म है। हाल के समय पर नजर दौड़ाएं तो पिछला दशक (2011-2020) रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म दर्ज किया गया।
जलवायु परिवर्तन का अर्थ आम तौर पर महज मौसम में पैदा हुई गर्मी से लगाया जाता है। लेकिन ये तापमान की वृद्धि इस विषय की की शुरुआत भर है। भूगोल के विशेषज्ञ पृथ्वी को एक प्रणाली के रूप में देखते हैं, इसमें बहुत कुछ जुड़ा हुआ है, एक क्षेत्र में परिवर्तन अन्य सभी में परिवर्तन ला देता है। जलवायु परिवर्तन के परिणामों में अब अन्य बातों के साथ-साथ तीव्र सूखा, पानी की कमी, गंभीर आग, समुद्र का बढ़ता स्तर, बाढ़, ध्रुवीय बर्फ का तेजी से पिघलना, विनाशकारी तूफान और घटती जैव विविधता शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन हमारे स्वास्थ्य, कृषि आधारित खाद्य पदार्थों को उगाने की क्षमता, निवास, सुरक्षा और काम-काज को प्रभावित कर रहा है। बहुत से लोग हमेशा से ही जलवायु प्रभावों के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील रहे हैं, जैसे कि छोटे द्वीप, देश और अन्य विकासशील देशों में रहने वाले लोग इस विकट समस्या को बेहद संबेदनशीलता से महसूस कर रहे हैं। ऐसे ही कई स्थानों पर निवासरत पूरे मानव समुदायों को स्थानांतरित करने की नौबत आ गई है। ग्लोबल स्तर पर लंबे समय से पड़ रहा सूखा लोगों को अकाल के खतरे में डाल रहा है। भविष्य में, जलवायु परिवर्तन बडी¬¬¬ समस्या बन कर उभर कर आ रहा है। ऐसे में शरणार्थियों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों में हजारों वैज्ञानिकों और सरकार के समीक्षकों ने माना है कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं जाने दिया जाए। इसे सीमित करने से खराब जलवायु प्रभावों से बचने में मदद मिलेगी। धरती रहने योग्य बनी रहेगी। लेकिन बावजूद इसके मौजूदा वक्त में वैश्विक स्तर पर सरकारों की गतिमान नीतियां इस सदी के अंत तक 2.8 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने की ओर इशारा कर रही हैं, जोकि मानव सहित पूरी जैवविधता के अस्तित्व के लिए बेहद खतरनाक संकट पैदा करने वाली होगी।
जलवायु परिवर्तन के लिए हानिकारक माने जाने वाले ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन दुनिया के हर हिस्से में हो रहा है, जोकि हर किसी को प्रीभावित कर रहा है। लेकिन दुनिया के तमाम बड़े और विकसित और अग्रणी विकासशील देश इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। इनमें सबसे बड़े उत्सर्जक देशों में चीन, अमेरिका, भारत, यूरोपीय संघ, इंडोनेशिया, रूसी फेडरेशन, और ब्राजील ने ही 2020 दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का करीब आधा हिस्सा बढ़ाया है।
ऐसे में जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन को बढ़ाने वाले सभी देशों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए लेकिन इसमें अधिक समस्या पैदा करने वाले लोगों और देशों पर पहले और ज्यार अंकुश लगाए जाने की जरूरत है।