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मधुमेह और पीलिया में सुपर फूड है झंगोरा, जानिए खूबियां

Pen point (Health Desk): उत्तराखंड की परंपरागत फसलें सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। झंगोरा यहां की एक ऐसी ही फसल है। कुमाउँनी में इसे मादिरा और हिंदी में सांवा, सुंवा या समा कहा जाता है। अंग्रेजी में इसका नाम बार्नयार्ड मिलेट है। हरित क्रांति के बाद चावल को सामाजिक एवं सरकारी मान्यता जरूर मिली लेकिन पोषण के लिहाज से झंगोरा की बड़ा अहम है। यह है तो बारीक दानेदार फसल लेकिन इसे मोटे अनाज में ही शामिल रखा गया है। झंगोरा को नवरात्र व्रत, और अन्य धार्मिक उत्सवों में फलाहार के रूप में भी खाया जाता है। आर्थिक नजरिए से यह चावल से पांच से सात गुना ज्यादा फायदेमंद है। इसकी खेती बहुत ही सरल तरीके से की जाती है।
भारत में झंगोरा के उत्पादन के मामले में उत्तराखंड अव्वल है। वैद्य, डॉक्टर पोषण के जानकार एवं पुराने लोगों की नजर में यह उत्कृष्ट भोजन है। इसमें सभी फसलों से सबसे ज्यादा फाईबार पाया जाता है। जो शुगर या मधुमेह के रोगियों के लिए जरूरी है। पीलिया के रोगियों के लिए यह हल्का खाना है। पीलिया ोने पर डॉक्टर भी झंगोरा खाने की ही सलाह देते हैं। इसमें प्रोटीन, खनिज एवं लौह तत्वा चावल से अधिक हैं। यह बादी नहीं करता इसलिए गठिया रोगियों के लिए भी अच्छा है। ग्रामीण इलाकों में झंगोरे को स्थानीय खाद्य सम्प्रभुता का प्रतीक माना जाता है।

साबुत झंगोरा को कई दशकों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसकी फसल सौ फीसदी ऑर्गेनिक होती है। झंगोरा की गुणवत्ता फसल चक्र के तहत उगाने से भी बढ़ती है। झंगोरा का चारा पशुओं के लिए बेहद पौष्टिक है। दुधारु गाय-भैंस झंगरेट चारा खाकर दूध बढ़ाते हैं और उस दूध में पोषक तत्व ज्यादा होते हैं। झंगोरा में 6.2 प्रतिशत प्रोटीन, 5 प्रतिशत वसा, 309 कैलोरी उर्जा और 9.8 प्रतिशत फाइबर होता है। इसके अलावा इसमें बहुत से मिनरल्स होते हैं।

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