अनूठी है पत्रकार संदीप गुसांई की चारधाम पैदल यात्रा, जानिए क्या है मक़सद
Pen Point, Dehradun : पीठ पर लदा एक बैग, जिसमें जरूरी कपड़े, एक छोटा चाकू, पानी की बोतल, कुछ पोटलियों में चना, मूंगफली, मूंग दाल और बादाम। इसके अलावा कैमरा, ट्राईपोर्ट और वॉइस रिकॉर्डर। इतने ही सामान के साथ पत्रकार संदीप गुसांई चारधाम की पैदल यात्रा पर निकले हैं।
आज जबकि उत्तराखंड की चारधाम यात्रा सड़क और हवाई सुविधाओं से लैस है। रेलवे लाइन भी तैयार हो रही है। ठीक ऐसे वक्त में संदीप गुसांई ने यात्रा के लिए पैदल राह चुनी है। पिछली सदी के छठवें दशक तक जब पहाड़ में सड़कें नहीं थी तब पैदल यात्रा का चलन हुआ करता था। ये पैदल पथ अब जीर्ण हो चुके हैं। कहीं पर पूरी तरह खत्म हैं, तो कुछ जगहों पर इनके अवशेष ही नजर आते हैं। यानी ये रास्ते अब कभी कभार ही इस्तेमाल होते हैं। इन्हीं बीहड़ रास्तों को छूते हुए संदीप गुसांई के कदम सोमवार को केदारनाथ धाम पहुंच गए। हरिद्वार से 10 अप्रैल को शुरू हुई अपनी अनूठी यात्रा में संदीप अब तक 290 किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं। तीन धाम और बाकी हैं, कुल मिलाकर 1200 किमी की यात्रा उन्हे तय करनी है।
यात्रा का मकसद
अब तक 25 दिनों की की हुई ये यात्रा महज घुमक्कड़ी ना होकर खास मकसद लिए हुए है। संदीप यूट़यूब चैनल रूरल टेल्स के जरिए पहाड़ के सुदूर गांवों की तस्वीर दुनिया के सामने लाते रहे हैं। उनकी इस पैदल यात्रा के पीछे भी उन गांवों की चिंता शामिल है, जो कभी पैदल यात्रा मार्गों पर हुआ करते थे। पैन पॉइंट से बातचीत में संदीप बताते हैं कि सड़कों के जरिए यात्रा में स्थानीय लोगों के लिए संभावनाएं बेहद सीमित हैं। बड़े पैमाने पर यात्रा और पर्यटन की गतिविधियां कंपनी ओरिएंटेड हो गई हैं। बड़ी कंपनियों ने इस क्षेत्र में बड़ी हिस्सेदारी को कब्जा लिया है। जिससे स्थानीय लोगों के लिए व्यावसायिक रूप से आगे बढ़ना आसान नहीं रह गया है।
अब तक के अनुभव के आधार पर संदीप बताते हैं कि यात्रियों और पर्यटकों की तादाद लगातार बढ़ रही है। ऐसे में हर चारों धामों पर दबाव बढ़ गया है, क्यों कि यात्रा एक ही रूट से संचालित हो रही है। जबकि पहले चारधाम यात्रा के रूट अलग-अलग थे। कोटद्वार से बद्रीनाथ, काठगोदाम से बद्रीनाथ, के साथ ही चारों धाम पहाड़ के पैदल रास्तों से जुड़े हुए थे। जिनमें कई जगहों पर पुरानी चट्टियों के अवशेष आज भी हैं। यात्रा के इस स्वरूप की जरूरत आज बढ़ गई है।
संदीप का तर्क है कि ऐसा करने से पहाड़ के कई गांव सीधे तौर पर यात्रा से जुड़ जाएंगे। नए दौर में ये गांव पूरी तरह अलग थलग हैं, जबकि चारधाम यात्रा और सीजनल पर्यटन के रूप में एक बड़ा बाजार देश दुनिया से उत्तराखंड पहुंच रहा है। लेकिन जो यात्रा रूट चलन में है, उससे अधिकांश गांवों के लोग रोजगार के अवसरों से अछूते हैं, या फिर उनके हिस्से बर्तन मांजने और माल ढोने जैसे काम ही आते हैं।
रेलवे लाइन प्रोजेक्ट से प्रभावित गांवों की ग्राउंड रिपोर्टिंग
इस यात्रा के तहत संदीप गुसांई ने बतौर पत्रकार जनसमस्याओं को उठाने की जिम्मेदारी बखूबी निभाई है। निर्माणाधीन ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन के काम से प्रभावित गांवों से होते हुए उनकी यात्रा गुजरी। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए प्रभावित गांवों के लोगों ने बहुत कुछ खोया है। संदीप गुसांई ने इन गांवों के हालात और स्थानीय लोगों से बातचीत को लोगों तक पहुंचाया। जिनमें देखा गया कि किस तरह विकास योजनाओं के काम को मुनाफे का खेल बनाया जाता है। लगातार ब्लास्ट से घरों की दीवारों पर दरारें ऐसी की कभी भी ढह जाएं। खेत, रास्ते, मंदिर, स्कूल समेत रोजमर्रा का जीवन ही बुरी तरह प्रभावित है। ऐसी ग्राउंड रिपोर्ट्स शायद ही किसी अन्य मीडिया के जरिए लोगों के सामने आई हो।
बहुत कुछ सिखाती है यात्राएं
पैदल यात्रा में मिलने वाले अनुभव ज्यादा गहराई लिए होते हैं। हर तरह के खट्टी मीठी यादों को यात्री समेटता हुआ चलता है। मसलन, ऐसी यात्रा में गर्म पानी पीने के साथ ज्यादा प्यास से बचने और पेट को ठीक रखने के लिए सूखे फलों को भिगोकर रखने के बाद ही खाना चाहिए, बकौल संदीप यह बात उन्हें एक साधू ने बताई, जो काफी पैदल यात्राएं करते हैं।
यात्रा में इंसानी फितरत भी पढ़ी जाती है। एक किस्सा साझा करते हुए संदीप बताते हैं कि देवप्रयाग से आगे रामचट्टी में उन्होंने गांव में कई लोगों से रात को रूकने की जगह मांगी। लेकिन अजनबी समझ गांव में सबने उन्हें इनकार कर दिया। रात घिरने के साथ उनकी निराशा भी बढ़ रही थी। तभी गांव से कुछ आगे रास्ते में एक घर में पूछने की कोशिश की। वहां मौजूद बुजुर्ग दंपत्ति ने उन्हें सहर्ष रात को रूकने की जगह दी। उस खंडूड़ी परिवारने मेहमान की तरह उनका सत्कार किया, और विदा होते हुए किसी तरह के अहसान का भाव भी उनके चेहरों पर नहीं था।
बकौल संदीप, पैदल चलते हुए थोड़ी-थोड़ी दूर के लिए कई लोग हमसफर बनते हैं। कभी कोई साधू मिल गया तो कभी कोई विद्यार्थी, कुछ दूर चलने के बाद वे अपनी मंजिल को चले आते हैं और मैं आगे बढ़ जाता हूं। इन छोटी दूरियों को तय करते हुए बातचीत से क्या हासिल हुआ, यह तुरंत समझ नहीं आता। इसका महत्व बाद में पता चलता है।
इस बात से हर कोई वाकिफ है कि लंबी पैदल यात्राएं आसान नहीं होती। अकेले मौसम और लोगों के रंग ढंग में बदलावों को देखते हुए कठिनाई और ज्यादा बढ़ जाती है। उबड़ खाबड़ पहाड़ी पगडंडियां किसी की भी होम सिकनेस को बढ़ा सकते हैं। इंसान होने के नाते संदीप पर भी इन बातों का असर है। लेकिन पत्रकारिता में लीक से हटकर काम करने का जुनून और उसमें शामिल समाज की बेहतरी की सोच ही उनकी ताकत है।
रिपोर्ट- पुष्कर सिंह रावत