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कर्पूरी ठाकुर : फकीर सीएम, जिसकी झोपड़ी देख रो पड़े थे बहुगुणा

बिहार की राजनीति में सबसे जनप्रिय नेता कर्पूरी ठाकुर की आज है पुण्‍यतिथि, जेपी और लोहिया से सीखे थे राजनीति के गुर

PEN POINT, DEHRADUN : दो बार बिहार के मुख्‍यमंत्री, एक बार उप मुख्‍यमंत्री और कई बार विधायक रहे, फिर भी विरासत में सिर्फ एक झोपड़ी छोड् गए। जी हां कर्पूरी ठाकुर ऐसे ही राजनेता थे जिन्‍होंने अपना सब कुछ जनसेवा में होम कर दिया। सरकारी धन को जनता का धन मानते थे। यही वजह है कि बिहार कर्पूरी ठाकुर को भारतीय राजनीति में ईमानदारी की सबसे बड़ी मिसाल माना जाता है। 17 फरवरी 1988 को उनके निधन के बाद यूपी के पूर्व सीएम हेमती नंदन बहुगुणा समस्‍तीपुर के पितैंझिया गांव पहुंचे। वहां उन्‍हें कर्पूरी ठाकुर के पैतृक घर पर ले जाया गया। घर क्‍या था फूस की एक झोपड़ी भर थी।  जिसे देख बहुगुणा रो पड़े। उन्‍हें इस बात ने भावुक कर दिया कि दो बार बिहार में सत्‍ता संभालने वाला यह शख्‍स खुद के लिए एक अदद मकान तक नहीं बना सका।

1952 में पहली बार विधायक बनने के बाद कर्पूरी ठाकुर कभी चुनाव नहीं हारे। राजनीति और सामाजिक जीवन में लोकनायक जयप्रकाश नारायण और राममनोहर लोहिया उनके गुरू थे। 1960 के बाद के दौर में भारतीय राजनीति में धन बल और बाहुबल की काली छाया पड़ने लगी थी। लगातार सत्‍ता में रहते हुए कांग्रेसी नेता भ्रष्‍टाचार और छल कपट में माहिर हो चुके थे। जिसके खिलाफ समाजवादी ताकतें संघर्ष कर रही थी। 1971 में बिहार में कांग्रेस की हार हुई और जनता पार्टी सत्‍ता में आई तब कर्पूरी ठाकुर ने मुख्‍यमंत्री की गद्दी संभाली। ऐसे में बिहार को पहला गैर कांग्रेसी मुख्‍यमंती मिला।

जब फटे कुर्ते का उपहास बना

आज जहां राजनीति धन दोहन का बड़ा जरिया बन गया है और इसमें शामिल लोग करोड़ों और अरबों की संपत्ति जुटा रहे हैं। वहीं भारत की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर जैसा ईमानदार शख्‍स भी है इस बात पर सहसा यकीन नहीं होता। आज भी बिहार में उनकी ईमानदारी के किस्‍से और मिसालें सुनने को मिलते हैं। 1977 में एक बार जेपी के आवास पर जनता पार्टी के बड़े नेता जुटे हुए थे। जिनमें चंद्रशेखर और नानाजी देशमुख भी शामिल थे। टूटी चप्‍पल और फटे कुर्ते में कर्पूरी ठाकुर भी वहां पहुंच गए। जिस पर किसी नेता ने उपहास उड़ाते हुए टिप्‍पणी कर दी कि किसी मुख्‍यमंत्री को ठीक से जीवन यापन को कितना खर्चा चाहिए..वहां मौजूद सभी लोग हंसने लगे, तभी चंद्रशेखर अपनी जगह से उठे और अपने कुर्ते को दोनों हाथों से फैलाकर हर नेता के पास जाकर बोले,,कर्पूरी जी के कुर्ता फंड में दान कीजिए। कुछ रूपए जमा हुए तो चंद्रशेखर ने कर्पूरी ठाकुर को थमाते हुए कहा कि जाकर अपने लिए धोती कुर्ता खरीद लीजिएगा। जिस पर कर्पूरी बोले- जरूरत नहीं इसे में मुख्‍यमंत्री राहत कोष में जमा करवा दूंगा।

पार्टी के विधायक ने नहीं दी अपनी कार

बिहार विधानसभा में जब कर्पूरी ठाकुर नेता विपक्ष थे तो एक बार उन्‍हें सदन में भूख लग गई। उन्‍होंने कागज की पर्ची पर नोट लिखकर अपने एक विधायक के पास भिजवाई, जिसमें उन्‍होंने लिखा कि मुझे खाना खाने के लिए घर जाना है, अपनी जीप से छुड़वा दीजिएगा। उस विधायक ने पर्ची पर वापस लिखा कि मेरी जीप में तेल नहीं है, आप अपने लिए कार क्‍यों नहीं खरीद लेते। बाद में यह विधायक बिहार का सीएम भी बना, लेकिन धन संपत्ति जुटाने को लेकर जेल भी गया। जबकि कर्पूरी की छवि मरते दम तक बेदाग रही।

पैतृक गांव अब कहलाता है कर्पूरी ग्राम

ब्रीटिश शासन के दौरान 24 जनवरी 1924 में जन्‍मे कर्पूरी ठाकुर का जन्‍म नाई जाति में हुआ था। उनके पिता गोकुल ठाकुर गरीब किसान थे और अपना परंपरागत नाई का काम करते थे। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कर्पूरी ठाकुर 26 महीने जेल में रहे। सरल और सादगीपूर्ण जीवन जीने के साथ ही वे ओजस्‍वी वक्‍ता और दूरदर्शी राजनेता थे। जिसने लोकप्रिय बनाने के साथ ही बिहार की राजनीति के शिखर तक पहुंचाया। 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनके गांव समस्‍तीपुर के पितौंझिया का नाम अब कर्पूरी ग्राम हो गया है।

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