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TRENDING : कितना फर्क है हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के भू-कानूनों में

– राज्य में बीते दिनों से सोशल मीडिया पर राज्य में सख्त भू कानून लागू करने की मांग हो रही है ट्रैंड, लोगांे की मांग हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सख्त भू कानून बनाया जाए
– उत्तराखंड में मौजूदा भू कानून में क्या क्या है कमजोरियां, और हिमाचल प्रदेश के भू कानून में क्या है ऐसा कि लोग कर रहे हैं इसका समर्थन 

PEN POINT, DEHRADUN : बेहद सख्त भू कानून वाले हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुक्खविंदर सिंह सुक्खु के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने बीते दिनों ही हिमाचल प्रदेश लीज संशोधन नियम-2023 बना कर इसके नियम-7 में संशोधन कर राज्य में भूमि लीज पर लेने की समयावधिक को 59 साल कम कर दिया है। अब तक यहां विभिन्न औद्योगिक गतिविधियों के लिए 99 साल तक भूमि लीज पर ली जा सकती थी लेकिन नए नियमों के मुताबिक अब केवल 40 साल के लिए ही भूमि लीज पर मिल सकेगी। बीते सालों से उत्तराखंड में हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर सख्त भू-कानून लाने की मांग को हिमाचल प्रदेश सरकार के इस फैसले के बाद फिर से हवा मिल गई है। राज्य में बड़ा वर्ग लंबे समय से ही हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर एक सख्त भू कानून लागू करने की मांग कर रहा है जिससे पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से भूमि के क्रय विक्रय के कारोबार पर रोक लग सके।
उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद ही विकास के पैमाने पर लगातार हिमाचल प्रदेश के नक्श-ए-कदम पर चलने की मांग होती रही है। भौगोलिक परिस्थितियों के लिहाज से दोनों पड़ोसी राज्य एक जैसे हैं, जहां हिमाचल प्रदेश की स्थापना को 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं तो वहीं राज्य भी अपनी स्थापना के सिल्वर जुबली मनाने के करीब है। हिमाचल प्रदेश राज्य की स्थापना के साथ ही यहां राज्य सरकार ने भूमि के संभावित खरीद फरोख्त की आशंकाओं को देखते हुए हिमाचल प्रदेश में टेनेंसी एक्ट लागू कर दिया। इस अधिनियम एक्ट के सेक्शन 118 के तहत कोई भी गैर हिमाचली व्यक्ति, यानि जिसकी नागरिकता हिमाचल प्रदेश से बाहर की हो, वह इस राज्य में जमीन नहीं खरीद सकता। ऐसे में यदि हिमाचल प्रदेश में किसी को जमीन खरीदनी भी है तो राज्य सरकार की इजाजत लेने के बाद यहां गैर कृषि भूमि खरीद सकते हैं। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश के टेनेंसी और लैंड रिफॉर्म्स रूल्स 1975 के सेक्शन 38। (3) के तहत राज्य सरकार को भूमि क्रय का उद्देश्य भी बताना होता है, राज्य सरकार के इस उद्देश्य पर संतुष्ट होने के बाद ही यहां किसी बाहरी को 500 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की इजाजत हैं। हालांकि, यह भूमि गैर कृषि होगी और इस पर कृषि गतिविधियों की पूर्ण पाबंदी होगी।
उत्तराखंड भी में बीते सालों में हिमाचल प्रदेश सरकार की तर्ज पर ही सख्त भू कानून लागू करने की मांग की जा रही है। सोशल मीडिया पर हर दिन ही भू-कानून को सख्त बनाने की मांग ट्रैंड में रहती है। विधान सभा चुनाव 2021 में जाने से पहले ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में भू कानून को सख्त बनाने का आश्वासन देते हुए अगस्त 2021 को उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। 2022 में भाजपा ने दोबारा राज्य में सरकार बनाई तो एक बार फिर सोशल मीडिया पर भू कानून को लेकर मांग ट्रैंड करने लगी। इस उच्च स्तरीय समिति ने भी सितंबर 2022 को अपनी अध्ययन रिपोर्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंपी। करीब 80 पन्नों की इस रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश के समान सख्त भू कानून के निर्माण की जरूरत के साथ ही कई अन्य सुझाव भी सरकार को दिए गए थे। हालांकि, इस रिपोर्ट को मुख्यमंत्री को सौंपे साल भर बीतने को है लेकिन अब तक राज्य सरकार ने भू-कानून में बदलाव को लेकर कोई बड़ी पहल नहीं की है।

यह थे समिति के सुझाव –

समिति ने कृषि या औद्येानिक प्रयोजन हेतु खरीदी गयी कृषि भूमि के कुछ प्रकरणों में दुरूपयोग के मद्देनजर इसकी अनुमति जिलाधिकारी के स्तर से हटाकर शासन स्तर से दिए जाने की संस्तुति की है। इसी प्रकार, वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति भी जिलाधिकारी स्तर से हटाकर शासन स्तर पर ही दिए जाने की सिफारिश की गयी है।

वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा पर्वतीय एवं मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिक प्रयोजनों, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान, पर्यटन एवं कृषि के लिए 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक को देने की व्यवस्था को समाप्त करते हुए इसे हिमाचल प्रदेश की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता के आधार पर दिए जाने की सिफारिश की गयी है।

समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि बड़े उद्योगों के अतिरिक्त केवल चार या पांच सितारा होटल/ रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट को ही भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाए जबकि अन्य प्रयोजनों हेतु लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए।

– उत्तराखंड में मौजूदा समय में कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम बिना अनुमति के अपने जीवनकाल में अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि आवासीय प्रयोजन हेतु खरीद सकता है। समिति ने सिफारिश की है कि परिवार के सभी सदस्यों के नाम से अलग-अलग भूमि खरीद पर रोक लगाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेखों से जोड़ दिए जए।

– रिपोर्ट में भूमि, जिस प्रयोजन के लिए क्रय की गई, उसका उल्लघंन रोकने के लिए जिला/ मंडल/ शासन स्तर पर एक कार्य बल बनाने की अनुशंसा की गयी है ताकि ऐसी भूमि को राज्य सरकार में निहित किया जा सके।

– संस्तुति में कहा गया है सरकारी विभाग अपनी खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाएं।

– सिफारिशों में कहा गया है कि विभिन्न प्रयोजनों हेतु खरीदी जाने वाली भूमि पर समूह ग व समूह घ श्रेणियों में स्थानीय लोगो को 70 प्रतिशत रोजगार आरक्षण सुनिश्चित हो तथा उच्चतर पदों पर उन्हें योग्यतानुसार वरीयता दी जाए।

– वर्तमान में भूमि क्रय करने के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि निर्धारित है और राज्य सरकार अपने विवेक के अनुसार इसे बढ़ा सकती है। इसमें संशोधन की सिफारिश करते हुए समिति ने इसे विशेष परिस्थितयों में एक वर्ष बढाकर अधिकतम तीन वर्ष करने को कहा है।

– पारदर्शिता हेतु क्रय- विक्रय, भूमि हस्तांतरण एवं स्वामित्व संबंधी समस्त प्रक्रिया को ऑनलाइन करने तथा वेबसाइट के माध्यम से संबंधित जानकारी सार्वजनिक मंच पर रखने की संस्तुति भी की गयी है।

– समिति ने सिफारिश की है कि प्राथमिकता के आधार पर ‘सिडकुल’ तथा अन्य औद्योगिक आस्थानों में खाली पड़े औद्योगिक भूखंड तथा बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आवंटन औद्योगिक प्रयोजन हेतु किया जाए।
– प्रदेश में बन्दोबस्त की प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने की सिफारिश की गयी है तथा कहा गया है कि धार्मिक प्रयोजन हेतु कोई भूमि क्रय या निर्माण किया जाता है, तो अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाए।

वर्तमान में उत्तराखंड का भू-कानून क्या है?
उत्तराखंड का वर्तमान भू-कानून बहुत लचीला है। जिसके चलते यहां देश का कोई भी नागरिक आसानी से जमीन खरीद सकता है और बस सकता है। उत्तराखंड बनने के बाद राज्य में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम 1950 लागू किया गया। इसके बाद यहां इस कानून में समय-समय पर संशोधन हुए। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2002 तक उत्तराखंड में अन्य राज्यों के लोग केवल 500 वर्ग मीटर जमीन खरीद सकते थे। 2007 में यह सीमा 250 वर्गमीटर कर दी गई थी। लेकिन 6 अक्टूबर 2018 में भाजपा सरकार एक अध्यादेश लाई और “उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम”,1950 में संसोधन का विधेयक पारित करके, उसमें धारा 143 (क) धारा 154 (2) जोड़कर पहाड़ों में औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमि खरीद की अधिकतम सीमा को पूरी तरह खत्म कर दिया गया। जिसके बाद बाहरी लोगों ने राज्य में निवेश के नाम पर बेतहाशा जमीनें खरीद डालीं, लेकिन इन जमीनों पर आज तक उद्योगों की फसल खड़ी नहीं हुई।

हिमाचल प्रदेश का भू-कानून ?
हिमाचल में एक मजबूत भू-कानून होने के कारण कोई भी बाहरी व्यक्ति जमीन नहीं खरीद सकता। यहां के भूमि सुधार कानून में लैंड सीलिंग एक्ट और धारा-118 के में बाहरी लोगों के भूमि खरीद पर रोक है। वर्ष 1972 में बने इस कानून का उद्देश्य बाहरी लोग हिमाचल में जमीन खरीदने को रोकने का था। हिमाचल प्रदेश टेंसी एंड लैंड रिफॉर्म एक्ट 1972 में प्रावधान किया था। एक्ट के 11वें अध्याय में कंट्रोल ऑन ट्रांसफर ऑफ लैंड्स (भूमि के हस्तांतरण पर नियंत्रण) में धारा-118 के तहत हिमाचल में कृषि भूमि नहीं खरीदी जा सकती। गैर हिमाचली नागरिक को यहां जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है और व्यवसायिक प्रयोग के लिए यहां भूमि लीज पर ली जा सकती है जिसकी समय सीमा 99 साल थी लेकिन इसी सप्ताह हिमाचल प्रदेश की कंाग्रेस सरकार ने यह समय सीमा घटाकर 40 साल कर दी है। इससे पहले 2007 में भाजपा सरकार ने धारा-118 में संशोधन कर के यह प्रावधान किया कि बाहरी राज्य का व्यक्ति जिसे हिमाचल में निवास करते हुए 15 साल हो चुके हो वह यहां जमीन खरीद सकता है लेकिन इस संशोधन का हिमाचल प्रदेश में व्यापक विरोध हुआ। जिसे देखते हुए 2012 में कांग्रेस सरकार ने यह समय सीमा बढ़ाकर 30 साल कर दी।

 

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