लोकायुक्त: भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की हवा हाईकोर्ट ने निकाल दी है
– भाजपा सरकार छह सालों से नहीं करवा सकी लोकायुक्त की नियुक्ति, 100 दिनों में लोकायुक्त नियुक्त करने का किया था वायदा
– अब हाईकोर्ट की फटकार, आठ महीनों में लोकायुक्त करो तैनात
Pen Point, Dehradun : राज्य सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के दावों की हवा हाईकोर्ट ने निकाल दी है। बीते मंगलवार को उच्च न्यायालय ने दस सालों में भी लोकायुक्त नियुक्त न करने पर सरकार को फटकार लगाते हुए अगले आठ महीनों में लोकायुक्त नियुक्त करने के निर्देश दिए। साथ ही लोकायुक्त दफ्तर के नाम पर हो रहे करोड़ों के खर्चों पर रोक लगाते हुए हिसाब किताब भी तलब किया। 2017 में जब भाजपा सरकार ने कांग्रेस को हराकर देहरादून की सत्ता काबिज की थी तो इस जीत में उस वायदे की बड़ी भूमिका थी जिसमें कहा गया था कि राज्य में भ्रष्टाचार पर कड़े प्रहार के लिए सरकार बनते ही 100 दिनों के भीतर खाली चल रहे लोकायुक्त पर नियुक्ति कर दी जाएगी। लेकिन, सरकार दोबारा बनाने के बावजूद राज्य सरकार ने खाली पड़े लोकायुक्त पद पर किसी की नियुक्ति के प्रयास नहीं किए। हालांकि, इस दौरान करोड़ों रूपए बिना मुखिया के इस लोकायुक्त विभाग पर खर्च जरूर कर लिए गए।
कांग्रेस सत्ता में थी और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर भाजपा 2017 के विधानसभा चुनाव की तैयारियों का बिगुल फूंक चुकी थी। घोषणापत्र जारी होने से पहले ही भाजपा ने पूरा जोर तत्कालीन हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार पर कार्रवाई करने के साथ ही राज्य में गहरे जड़े बना चुके भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार करने के लिए सरकार बनते ही 100 दिनों के भीतर प्रदेशा में लोकायुक्त बनाने का वायदा किया था।
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर 2017 चुनाव में उतरी थी भाजपा
विधानसभा चुनाव भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग के मैदान में तब्दील हो गया तो लोगों को भी 100 दिनों में लोकायुक्त नियुक्ति का वायदा खूब पसंद आया और भाजपा के इस संकल्प को लोगों ने हाथों हाथ लेकर 2017 विधानसभा में भारी बहुमत दिया। शुरूआती दौर में कांग्रेस शासनकाल के कुछ भ्रष्टाचार के मामलों की फाइलें खुलने लगी तो लगने लगा कि जल्द ही लोकायुक्त नियुक्त करने वायदा भी सरकार पूरा कर लेगी। लेकिन, पांच साल बीतने के बाद और अब दोबारा जीत कर एक साल का कार्यकाल पूरा करने के बावजूद भी भाजपा सरकार को राज्य में लोकायुक्त नियुक्त करने का वायदा याद नहीं आया है। हालांकि, अब जब बीते मंगलवार को हाईकोर्ट की ओर से लोकायुक्त नियुक्त करने पर राज्य सरकार को फटकार लगाई तो एक नई कहानी खुली कि राज्य में भाजपा ने छह सालों में लोकायुक्त की नियुक्ति भले ही न की हो लेकिन लोकायुक्त दफ्तर के संचालन पर 30 करोड़ रूपए से से अधिक की रकम खर्च कर चुकी है। दस सालों से बिना मुखिया के लोकायुक्त दफ्तर चल रहा है।
लोकायुक्त बिल पेश लेकिन नियुक्ति नहीं
बीते मंगलवार को नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीश की टिप्पणी से सरकार की कलई खुल गई। हुआ यूं कि राज्य में लोकायुक्त दफ्तर संचालित हो रहा है और हर साल दफ्तर के संचालन में सरकार 4 से 5 करोड़ रूपए की भारी भरकम रकम भी खर्च कर रही है लेकिन अब तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की गई है। जबकि, 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने सरकार बनते ही 100 दिनों के भीतर लोकायुक्त की नियुक्ति का वायदा किया था। बहुमत से चुनाव जीतने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2017 में ही विधानसभा पटल पर लोकायुक्त बिल पेश किया। विपक्ष की सहमति के बावजूद भी सरकार ने इसे प्रवर समिति के पास भेज दिया, इस पर खूब विवाद भी हुआ था लेकिन सरकार ने इसे प्रवर समिति के पास भेजने का फैसला बदला नहीं। 2017 से यह बिल प्रवर समिति के पास लटका पड़ा है लेकिन इस पर अब तक फैसला नहीं हुआ है। सरकार ने भी विधानसभा में लोकायुक्त बिल पेश कर वायदा पूरा करने की रस्म अदायगी कर दी लेकिन लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई या फिर जानबूझकर लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर कोई बड़ा कदम नहीं उठाया।
फाइलों में दबा शिकायतों का अंबार
अन्ना आंदोलन के दौरान लोकायुक्त को लेकर इस तरह का माहौल बन गया था कि ज्यादातर लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकायुक्त ही रामबाण इलाज लगने लगा था। राज्य में लोकायुक्त के रूप में नियुक्त जस्टिस एमएस घिल्डियाल इस पद पर 2013 तक बने रहे। उनकी विदाई हुई तो लोगों को लगा कि जल्द ही नया लोकायुक्त नियुक्त हो जाएगा। लिहाजा आम नागरिक भ्रष्टाचार से जुड़ी शिकायतें लोकायुक्त तक पहुंचाते रहे। लेकिन, दस वर्षों से लोकायुक्त की नियुक्ति न होने से वह तमाम शिकायतें फाइलों में ही दबकर रह गई है। एक सूचना के अनुसार ही लोकायुक्त पद रिक्त होने के बाद भी 970 शिकायतें लोकायुक्त दफ्तर में दर्ज की गई। जबकि लोकायुक्त नियुक्त होने से लेकर बीते साल तक लोकायुक्त में 8535 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें से 6920 शिकायतों का निपटारा हुआ।
प्रवर समिति से रिपोर्ट तलब
अब जब राज्य सरकार को इस मामले में हाईकोर्ट की फटकार पड़ी है तो अब लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर छह महीनों से दबी फाइलों से धूल झाड़ने की रस्म अदायगी भी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूडी ने प्रवर समिति से मामले की रिपोर्ट तलब की है। हालांकि, यह तेजी सिर्फ हाईकोर्ट की फटकार के बाद ही देखी जा रही है या किसी परिणाम पर भी पहुंचेगी यह देखना बाकी है।