अंग्रेजी हुकूमत का सबसे महंगा वकील, जिसने गांधी जी से प्रभावित होकर छोड़ दी वकालत
जयंती विशेष
– वकील, कांग्रेस के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरू की आज जयंती, देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू के पिता थे मोतीलाल नेहरू
PEN POINT, DEHRADUN : देश में अभी अंग्रेजी हुकूमत थी, महात्मा गांधी भी विदेश में वकालत कर रहे थे। वहीं, देश में कश्मीरी मूल का एक वकील अंग्रेजी हुकूमत के दौरान देश का सबसे महंगा वकील बन चुका था। बताया जाता है कि साल 1894 में इटावा जिले के राज लखना केस के लिए इस वकील को बतौर फीस मिली थी 1 लाख 52 हजार रूपए। यह वह दौर था जब देश की अधिसंख्य जनता की महीने की कमाई दो रूपए से भी कम थी। लेकिन, 1920 में महात्मा गांधी से प्रभावित होकर देश के महंगे वकीलों में शुमार, यूरोपीय जीवन को ओढ़ने जीने वाले मोतीलाल नेहरू ने अपना वकालत का पेशा छोड़ आजादी की लड़ाई में शामिल होने का फैसला ले लिया। उनके इकलौते बेटे देश की आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री बने और आज तक उनका परिवार देश का महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवार बना हुआ है।
आज है जयंती कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, वकील मोतीलाल नेहरू की। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख व्यक्तियों में एक पंडित मोतीलाल नेहरू जन्म आज के ही दिन 6 मई 1861 को आगरा में हुआ था। नेहरू जी के पिता का नाम गंगाधर नेहरू और माता का नाम इंद्राणी था। मोतीलाल नेहरू के पिता का निधन उनके जन्म के तीन पहले ही हो गया था। तो उनके बड़े भाई ने उनकी देखरेख की। बड़े भाई नंदलाल नेहरू हाईकोर्ट में वकील थे। उनकी देखरेख में मोतीलाल नेहरू ने अपनी पढ़ाई पूरी की। इलाहबाद से कानून की डिग्री में टॉप कर उन्होंने सबको हैरान कर दिया था। 1883 से कानूनी प्रेक्टिस शुरू की तो पहले केस के एवज में 5 रूपए मिले थे। लेकिन, अपनी योग्यता और कुशलता से वह जल्द ही लोकप्रिय वकील बन गए। यह वह दौर था जब अब अंग्रेज जज भारतीय मूल के वकीलों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे लेकिन मोतीलाल नेहरू की काबिलियत के मुरीद अंग्रेज जज भी थे। वकालत के दम पर मोतीलाल नेहरू उस दौर के अमीर भारतीय में शुमार हो गए थे।
उन दिनों भारत के किसी वकील को ग्रेट ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल में केस लड़ने के लिए शामिल किया जाना लगभग मुश्किल था लेकिन मोती लाल ऐसे वकील बने, जो इसमें शामिल किए गए। वकालत में अव्वल रहे तो खूब दौलत कमाई लिहाला रहन सहन सब यूरोपीय हो गया। वकालत में अपने चरम पर पहुंचने के बाद मोतीलाल नेहरू ने भारतीय स्वत्रंतता आंदोलन में हिस्सा लेना शुरू किया। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। और उन्होंने दो बार पार्टी के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था. मोतीलाल नेहरू 1919 में पहली बार अमृतसर से और फिर 1928 में कलकत्ता से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के अध्यक्ष चुने गए थे। महात्मा गांधी के संपर्क में आए तो उन्होंने वकालत छोड़ दी। आजादी के आंदोलन में मोतीलाल नेहरू को कई बार जेल भी जाना पड़ा।
मोतीलाल नेहरू ने 1 जनवरी 1923 को चितरंजन दास के साथ स्वराज पार्टी की सह-स्थापना की, जिसके बाद वह नई दिल्ली में दिल्ली में ब्रिटिश भारत की संयुक्त प्रांत विधान परिषद के लिए चुने गए। जहां उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में काम किया था। मोतीलाल ने प्रसिद्ध ’नेहरू रिपोर्ट’ लिखी थी, जिसमें उन्होंने संवैधानिक और कानूनी अधिकारों के साथ एक लोकतांत्रिक समाज के विचारों को सामने रखा।
6 फरवरी 1931 को इलाहबाद में मोतीलाल नेहरू का निधन हो गया लेकिन वह अपने पीछे छोड़ गए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक विरासत और एक कभी न मिटने वाला इतिहास।