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आज ही के दिन रिलीज हुई थी पहली बोलती हुई भारतीय फिल्म

PEN POINT: सोमवार 13 मार्च की तारीख एक भारतीय फिल्म को पहला ऑस्कर मिलने के बाद इतिहास में दर्ज हो गई। ठीक इसी तरह आज 14 मार्च 1931 की तारीख भारतीय सिनेमा के लिए ऐतिहासिक दिन बना था। क्योंकि ब्रिटिश राज के दौर में इसी तारीख को देश में पहली बोलती हुई फिल्म भारतीय दर्शको के लिए रिलीज की गई। इस फिल्म को लेकर दर्शकों में बेतहाशा उत्साह था। लिहाजा कमाई के मामले में भी इस फिल्म ने शानदार व्यवसाय किया। दर्शकों की भीड़ को सम्भालने के लिए मुम्बई (तब बम्बई ) के सिनेमा घरों में पुलिस लगानी पड़ी। इस फिल्म में डायलॉग के साथ ही गीत संगीत पक्ष पर बहुत ध्यान दिया गया।

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जी हाँ इसी पहली बोलती हुई भारतीय फिल्म का नाम था आलम-आरा। फिल्म में भारतीय सिनेमा में गीत संगीत के जिस पक्ष को प्रमुखता से सजाया संवारा गया, उसकी अमिट छाप इस इण्डस्ट्री में आज भी पूरी मजबूती के साथ कायम है। ये पहली ऐसी भारतीय फिल्म थी जिसमें दर्शकों को पहली बार संवाद और संगीत सुनने को मिला, बावजूद इसकी वॉइस रिकार्डिंग क्वालिटी की आलोचना भी हुई। देश को पहली फिल्म बोलती हुई फिल्म देने वाले भारतीय का नाम था अर्देशिर ईरानी। वही इस फिल्म के डायरेक्टर और स्क्रिप्ट राइटर भी थे। जबकि फिल्म का संगीत फिरोजशाह मिस्त्री और बी ईरानी ने तैयार किया। यह फिल्म इम्पीरियरल प्रोडक्शन कंपनी के बैनर तले बनाई गई। वितरण का काम सागर मूवीटोन ने संम्भाला। फिल्म की अवधि 2 घण्टे 4 मिनट थी। आलम-आरा उस दौर में 40 हजार के भारीभरकम बजट में बनाई गई। अर्देशिर ईरानी अभिनीत यह फिल्म दर्शकों को खूब पसंद आई। फिल्म प्रोडक्शन का काम जाजेफ डेविड ने किया।
देश की पहली साउण्ड फिल्म होने के कारण इर्द्रेशिर ईरानी के करियर के लिए आलमआरा को एक सफल फिल्म माना गया। जिसने भारतीय फिल्म उद्योग की जड़ों को मजबूती देने का काम किया।

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1929 में एक अमेरिकी पोर्ट-टॉकी शो बोट को देखने के बाद ईरानी को आलम-आरा बनाने की प्रेरणा मिली। इस फिल्म की कहानी को इसी नाटक के इर्द गिर्द बुना गया। जिस स्टूडियो में फिल्म बनाई जा रही थी, वह एक रेलवे स्टेशन के पास था। ऐसे में ज्यादातर समय ट्रेनों की आवाजाही के कारण बहुत शोर-शराबा होने के कारण दिन के वक्त शूटिंग में में दिक्कतें पेश आना लाजिमी था। इसी परेशानी से बचने के लिए फिल्मांकन के लिए ज्यादातर रात का समय निर्धारित किया गया। फिल्म की सबसे जरूरी चीज थी, उसमें आवाज डालना। बड़ी सूझबूझ से इर्देशिर ईरानी ने एकल साउण्ड रिकॉडिंग प्रणाली का उपयोग कर वॉयस साउण्ड रिकार्डिंग का काम पूरा किया।

इस तरह 14 मार्च 1931 को भारत की पहली बोलती हुई पहली फिल्म आलम-आरा दर्शकों के लिए रिलीज की गई, जिसे हिंदी में बनाया गया था। फिल्म बेहदद हिट हुई, जो संबादों और गीत-संगीत के साथ दर्शकों की जिज्ञासा को बढ़ाने के लिए काफी थी। लेकिन जब आज इस फिल्म की रलीज की तारीख की 92वीं सालगिरह है, तो इस फिल्म को कोई भी प्रिंट, कॉपी, ग्रामोंफोन रिकार्ड नहीं बचा है, जिसे देखा जा सके। आज ये एक गुमनाम फिल्म मात्र बन कर हमारे सामने है। जिसका केवल जिक्र पढ़ा और सुना जा सकता है। महज कलाकृतियों के तौर पर इसके पोस्टर और फोटोग्राफ ही देखने को मिलते हैं। ब्रिटिश फिल्म संस्थान ने 2017 में इसे भारत में निर्मित एक खोई हुई फिल्म के तौर पर घोषित किया।
हालांकि आलम आरा का साउण्ड ट्रैक आज भी सारेगामा के पास मौजूद है, इसमें सात गाने हैं। इन गानों में से सबसे प्रमुख हिट गाने को मुहम्म वजीर खान ने गाया था, जिसके बोल हैं “देेदे खुदा के नाम पे प्यारे” शामिल है। यह गीत अपनी रिलीज के दौरान ही बेहद लोकप्रिय हो कर लोगों जुबान पर चढ़ गया। इसीलिए इसे हिन्दी सिनेमा के पहले गाने के तौर पर अपना लिया गया।

कुल मिला कर कहा सकता है कि आलम आरा ने भारतीय फिल्म को इतिहास में तो दर्ज कराया ही लेकिन उसी साउण्ड और संगीत और डांस की शुरूआत से आज भारतीय फिल्म इंडस्ट्री आज ऑस्कर जैसे सबसे प्रतिष्ठत अंतर्राष्ट्रीय अवॉर्ड  हासिल करने में सफल हुई है। यह सम्मान 13 मार्च 2023 को तेलगू फिल्म आरआरआर को मिला है, जिसने आलमआरा की प्रतिष्ठा पर चार-चाँद लगा दिए हैं।

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