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पचास किलो आलू के बदले डेढ़ किलो टमाटर

– भारी बारिश से बंद सड़कों के चलते ग्रामीण औने पौने दामों पर आलू बेचने को मजबूर,टमाटर की उंची कीमतों के बावजूद टमाटर उत्पादक भी घाटे में
PEN POINT, DEHRADUN : उत्तरकाशी स्थित सब्जी मंडी से चालीस किमी दूर गोरसाली गांव से प्रेम सिंह ने शुक्रवार को धूप खिलते ही परिवार के साथ खेतों में जाकर आलू खोदने शुरू किए। परिवार ने कड़ी मेहनत कर करीब चार कुंतल आलू की खुदाई की, पचास पचास किलो के थैलों में यह आलू भरकर प्रेम सिंह शनिवार को इन्हें बेचने की गरज से उत्तरकाशी सब्जी मंडी पहुंचा लेकिन सब्जी मंडी स्थित कोई भी सब्जी विक्रेता, व्यापारी आलू खरीदने को तैयार नहीं हुआ, मालूम चला कि आज 4 रूपए प्रति किलो की दर से ही आलू बेचे जा सकते हैं, एक पचास किलो का बैग 200 रूपए का, प्रेम सिंह के पास कोई विकल्प नहीं था लिहाजा उसे 200 रूपए प्रति कट्टे की दर से आलू आढ़तियों को बेचना पड़ा, वापसी में घर के लिए टमाटर खरीदने निकला तो उसके पचास किलो आलू की कीमत के बदले बस डेढ़ किलो टमाटर खरीदने पड़े।
मार्च के महीने में करीब 1600 प्रति कुंतल की दर से आलू के बीज खरीद, 22 सौ रूपए प्रति कुंतल की दर से खाद खरीदने के साथ ही परिवार की महिलाओं ने करीब तीन दिन तक खेतों में गोबर की खाद पहुंचाई। आलू की बुआई के बाद गुड़ाई समेत आलू की देखभाल में पूरा परिवार चार महीनों तक जुटा रहा लेकिन अब जब आलू की फसल को बाजार तक पहुंचा कर मुनाफा कमाने का समय आया तो पचास किलो आलू के बदले डेढ़ किलो टमाटर मिल रहा है। इन दिनों टमाटर के भाव रॉकेट बने हुए हैं, हालांकि, उत्तरकाशी की यमुना घाटी में टमाटर का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है लेकिन गंगा घाटी में टमाटर का उत्पादन न के बराबर है लिहाजा यहां मैदानी मंडियों से ही टमाटर पहुंच रहा है।
उत्तरकाशी जनपद राज्य के पर्वतीय जनपदों में सीजनल सब्जियों के उत्पादन में अव्वल जनपदों में शुमार है। जिले के 6301 हेक्टेयर भूमि पर सालाना 37371 मीट्रिक टन सीजनल सब्जी का उत्पादन होता है जिसमें से आलू की हिस्सेदारी पचास फीसदी के करीब है जबकि टमाटर की हिस्सेदारी 20 फीसदी है। लगातार हो रही बारिश और बंद सड़कों के चलते पर्वतीय क्षेत्रों से सीजनल सब्जियां मंडियों तक नहीं पहुंच रहे हैं लिहाजा आलू समेत अन्य सीजनल सब्जियों को बाजार नहीं मिल पा रहा है। मजबूरन किसान भी औन पौने दामों पर अपनी फसलों को स्थानीय सब्जी मंडी में बेचना पड़ रहा है।
उत्तरकाशी जिले में भागीरथी घाटी आलू उत्पादन में तो यमुना घाटी टमाटर समेत सीजनल सब्जियों के उत्पादन के लिए मशहूर है। लेकिन, इन दिनों ऊंची कीमतों के बावजूद न तो यमुना घाटी के टमाटर उत्पादक किसानों को फायदा पहुंच रहा है न हीं भागीरथी घाटी के आलू उत्पादकों को उनके उपज के सही दाम मिल पा रहे हैं।
बंद सड़कों के चलते और लगातार बारिश के चलते सब्जियों को देहरादून, ऋषिकेश की मंडियों तक पहुंचाने वाले आढ़तियों की राह भी रूकी हुई है। सब्जियों की आढ़त का काम करने वाले रहमान बताते हैं कि इन दिनों सड़क टूट रही है और जो आलू और टमाटर खेतों से आते हैं वह अगर रूक गए तो तेजी से सड़ने शुरू हो जाते हैं ऐसे में मंडियों तक पहुंचने से पहले ही आधा माल सड़कर खराब हो जाता है। रहमत बताते हैं कि कांवड़ सीजन के चलते वाहनों को भी आवाजाही के लिए दिक्कत हो रही है ऐसे में पहाड़ से माल उठाकर मैदान तक लेकर जाने के लिए वाहन आसानी से तैयार नहीं हो रहे हैं।
भागीरथी घाटी इन दिनों आलू की अगेती किस्म की खुदाई पूरी हो चुकी है। मनेरी, नेताला, गणेशपुर समेत निचले इलाकों में बीते महीने से ही अगेती किस्म के आलू की खुदाई हो गई थी क्योंकि इन खेतों में धान की रोपाई होनी थी। वहीं, गोरसाली, रैथल, बार्सू समेत उंचाई पर बसे गांवों में अगेती किस्म के आलू की खुदाई शुरू हो रही है। इन गांवों में ग्रामीणों को अब अगस्त महीने से पहले इन खेतों में मटर की बुआई करनी है। लेकिन, सब्जी मंडियों में अगेती किस्म के आलू की कीमत बीते सालों के मुकाबले बहुत कम है, ऐसे में किसानों के लिए आलू के एक बोरे को उत्तरकाशी मंडी तक पहुंचाने के लिए उपज के बराबर भाड़ा भी देना पड़ रहा है।
हालांकि, उम्मीद जताई जा रही है कि बारिश कम होने के साथ ही मैदानी मंडियों में जल भराव समेत आवाजाही सुलभ होने के बाद जैसे ही मांग बढ़नी शुरू होगी आलू समेत सीजनल सब्जियों के दाम भी बढ़ने लगेंगे तो टमाटर के किसानों को भी उनकी उपज मैदानी मंडियों तक पहुंचाने की राह खुल सकेगी जिससे वह भी अपनी उपज की अच्छी कीमत पा सके।

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