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परमवीर : दुश्‍मन के इरादों पर भारी पड़ा मेजर सोमनाथ का सर्वोच्‍च बलिदान

देश के पहले परमवीर विजेता वीर योद्धा की आज है जन्म शताब्दी, आज के ही दिन कांगड़ा में हुआ था जन्म
चौथी कुमाउं रेजिमेंट के कमान अधिकारी के तौर पर कश्मीर के बडगाम में दुश्मनों को छह घंटे तक रोके रखा
पंकज कुशवाल, देहरादून। मेजर सोमनाथ शर्मा, युद्ध क्षेत्र में वीरता के सर्वोच्च सम्मान को पाने वाले पहले भारतीय सेना के अफसर। महज 24 साल की उम्र में अपने पचास जवानों के साथ 700 आतंकियों से छह घंटे तक जूझते रहे। देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले इस अफसर की बहादुरी के कारण ही देश 1947 में एक बड़े खतरे से बच गया। इस बहादुर अफसर की बहादुरी और शहादत ने पाकिस्तान की श्रीनगर एयरबेस पर कब्जे की नाकाम कोशिश पर पानी फिर गया। आज इस वीर बहादुर मेजर सोमनाथ शर्मा की जन्म शताब्दी है।
मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म आज के ही दिन 100 साल पहले 23 जनवरी 1923 को कांगड़ा जिले में हुआ था। 22 फरवरी 1942 को रॉयल मिलट्री कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश सेना में कमीशन्ड मिला। आजादी के बाद यह ब्रिटिश बटालियन भारतीय फौज का हिस्सा बनकर कुमांउ रेजिमेंट की चौथी बटालियन बनी। मेजर सोमनाथ शर्मा ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी बर्मा में जापान के खिलाफ युद्ध में अदम्य साहस का परिचय दिखाया। मेजर सोमनाथ शर्मा के छोटे भाई विश्वनाथ शर्मा थे जो देश के 14वें सेनाध्यक्ष बने। मेजर सोमनाथ शर्मा ने सिर्फ 24 साल की उम्र में 3 नवंबर 1947 को बडगाम में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
किस्सा इस बहादुर अफसर की शहादत का
देश की आजादी के दो महीनों बाद ही पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ करने की कोशिश की। कबाइलियों के जरिए नये नवेले पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जंग का एलान कर दिया था। पाकिस्तान की इस घुसपैठ का मकसद श्रीनगर एयरबेस को को कब्जे में लेना था। श्रीनगर एयरबेस को कब्जे में लेने के बाद भारतीय सेना का कश्मीर पहुंचना मुश्किल हो जाता। श्रीनगर ऐयरबेस की सुरक्षा का जिम्मा चौथी कुमांउ बटालियन को मिला था। चौथी कुमाउं बटालियन के कमान संभाल रहे मेजर सोमनाथ शर्मा पर इस एयरबेस की सुरक्षा का जिम्मा था। 31 अक्टूबर 1947 को जब मेजर सोमनाथ शर्मा श्रीनगर एयरबेस पहुंचे तो उनके एक हाथ में प्लास्टर चढ़ा हुआ था। कुछ दिनों पहले ही वह हॉकी खेलते हुए हाथ में चोट लगा बैठे थे। लेकिन हाथ में प्लास्टर लगे होने के बावजूद उन्‍होंने अपने अफसरों से युद्ध क्षेत्र में जाने की अनुमति मांगी। अपनी कंपनी को लेकर मेजर सोमनाथ शर्मा पाकिस्तानी आतंकवादियों से लोहा लेने युद्ध मैदान में कूद गये।

पचास जवानों के साथ संभाला मोर्चा
दो दिन बाद यानि 2 नवंबर को जब सूचना मिली कि पाकिस्तानी घुसपैठी श्रीनगर एयरबेस से कुछ किमी दूर बड़गाम में पहुंच गये हैं तो 50 जवानों के साथ मेजर सोमनाथ दुश्मनों से मोर्चा लेने बड़गाम पहुंच गये। हालांकि, घुसपैठियों ने सेना का ध्यान भटकाने की कोशिश के लिए कुछ दुश्मनों को बडगाम भेजा था लेकिन मेजर सोमनाथ शर्मा को अंदेशा हो गया था कि दुश्मन दूसरी ओर से बड़ा हमला करने की फिराक में है लिहाजा उन्होंने अपनी कंपनी से उसी के अनुसार पोजिशन लेने को कहा। उनका अंदेशा सच निकला, बडगाम में दूसरी तरफ से करीब 700 घुसपैठियों ने भारतीय सेना की इस छोटी सी टुकड़ी पर हमला बोल दिया। कुमाउं रेजीमेंट के 50 सैनिक मेजर सोमनाथ शर्मा की अगुवाई में इन घुसपैठियों से संघर्ष कर रही थी। सेना दुश्मनों से तीनों तरफ से घिर चुकी थी, दुश्मन भारी हथियारों से हमला कर रहे थे और संख्या में भी भारतीय सैनिकों से 10 गुने से भी ज्यादा थे लेकिन मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में भारतीय सेना के जवान भी दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे। एक हाथ में प्लास्टर और दूसरे हाथ में मशीनगन थामे मेजर सोमनाथ शर्मा डटकर दुश्मनों का सामना कर रहे थे।

छह घंटे तक लिया आतंकियों से लोहा
बहादुर मेजर सोमनाथ शर्मा और उनकी टुकड़ी ने छह घंटे तक दुश्मनों से लगातार लोहा लिया। इस दौरान मोर्टार की चपेट में आने से मेजर सोमनाथ शर्मा शहीद हो गये लेकिन छह घंटों तक उन्होंने 700 आंतकियों का डटकर मुकाबला किया। इस संघर्ष में उनके साथ चौथी कुमाउं बटालियन के 20 जवान शहीद हो गये लेकिन उनकी इस बहादुरी से आतंकी श्रीगनर एयरबेस तक नहीं घुस सके और भारतीय सेना की दूसरी टुकड़ी ने आकर उन्हें पीछे खदेड़ दिया।
मरणोपरांत मेजर सोमनाथ शर्मा को उनके अदम्य साहस के लिए देश का पहला परमवीर चक्र दिया गया।

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