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इतिहास दोहराने की तैयारी, तब निशाने पर इंदिरा थी अब नरेंद्र मोदी हैं

– 2024 के आम चुनाव में भाजपा और मोदी को मात देने के लिए कांग्रेस जुटा रही विपक्षी दलों को एक मंच पर
– 1977 में आपातकाल के बाद पहले आम चुनाव में भी इस तरह ही बने थे हालात, अपने हितों को छोड़ विपक्षी दल इंदिरा गांधी व कांग्रेस के खिलाफ जुटे थे एक साथ
PEN POINT, PANKAJ KUSHWAL: 17 जुलाई 2023, बंगलुरू में 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस समेत 25 दल जुटेंगे। मकसद है भाजपा के खिलाफ एक साथ मिलकर महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने की तैयारी। इससे पहले, 17 और 18 जून को पटना में कांग्रेस समेत 15 राजनीतिक दलों ने बैठक कर 2024 में एक साथ मिलकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा की थी। लोकसभा चुनाव में करीब आठ महीने का वक्त बचा है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा 2014 और 2019 में खुद के दम पर बहुमत पाकर सरकार चला रही है। अब नरेंद्र मोदी और भाजपा को हराने के लिए विपक्ष को गोलबंदी की जरूरत महसूस होने लगी है। ताकि 2024 में भाजपा और मोदी को लोकसभा जीत की हैट्रीक लगाने से रोका जा सके।
यह पहली बार नहीं है जब केंद्र में बेहद ताकतवर हो चुकी सरकार और नेता के खिलाफ विपक्षी दल खुद के बीच के तमाम मतभेदों, राजनीतिक विचारधाराओं की तिलाजंली देकर एक साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। नरेंद्र मोदी से पहले भारतीय राजनीति में बेहद ताकतवर रही थी इंदिरा गांधी। तानाशाही के आरोपों के बावजूद भी अजेय रही। इंदिरा गांधी ने जब देश पर आपातकाल थोपा तो उनके खिलाफ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उस वक्‍त भी तमाम राजनीतिक संगठन अपने मतभेदों और विचारधारा को भुलाकर साथ आए थे। उन्‍होंने मिलकर चुनाव लड़ा और बेहद ताकतवर रही इंदिरा गांधी को हराकर सत्ता से बेदखल कर दिया।

अब परिस्थितियां लगभग वैसी हैं। बस मुख्य किरदार बदल गए हैं। करीब साढ़े चार दशक पहले जनसंघ समेत तमाम संगठन कांग्रेस या यूं कहें इंदिरा गांधी के खिलाफ लामबंद हो रहे थे। अब उस किरदार में कांग्रेस आ गई है।
इस बार कांग्रेस समेत अन्य राजनीतिक संगठनों के नेता 2024 से पहले एक मंच पर आकर भाजपा और नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन 1977 में हालात दूसरे थे। तब चुनाव लड़ने के लिए जो महागठबंधन तैयार हुआ था, वह उन नेताओं ने तैयार किया जो आपातकाल के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानते हुए जेल डाल दिए गए थे। हालांकि, जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के आह्वान के बाद से ही इंदिरा गांधी के खिलाफ माहौल बनने लगा था। उन्‍हें सत्ता से हटाने के लिए तमाम राजनीतिक संगठन एक मंच पर जुटने लगे थे। लेकिन आपातकाल घोषित होते ही इन संगठनों से जुड़े प्रमुख राजनीतिक शख्सियतों को जेलों में ठूंस दिया गया था।
आम चुनाव में इंदिरा गांधी पर जब सरकारी मशीनरी के दुरूपयोग का आरोप लगने के बाद से ही जेपी के नेतृत्व में संभावनाओं को देखते हुए राजनीतिक दल सरकार के खिलाफ एक साथ खड़े होने लगे। लेकिन, 25 जून 1975 की रात को आपातकाल की घोषणा और 26 जून से विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के बाद इंदिरा गांधी और संजय गांधी को लगने लगा था कि शायद वह विपक्षी दलों की एक साथ एक मंच पर आने की योजना को खत्म कर चुके हैं। 1977 तक देश के विकास में अवरोध पैदा करने, देश की सुरक्षा के लिए खतरे का आरोप लगाकर करीब 36000 लोगों को जेल भेज दिया गया। ज्यादातर को मीसा यानि आतंरिक सुरक्षा कानून के तहत जेलों में बंद कर दिया था। हालांकि, इंदिरा गांधी के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों, आंदोलनों की अगुवाई कर रहे जेपी और मोरारजी देसाई को हरियाणा में किसी अतिथिगृह में बंद कर दिया गया था।

आपातकाल को दो साल पूरे होने से पहले ही देश को हैरत में डालते हुए सन 1977 में 18 जनवरी को राजनैतिक कैदियों को रिहा करने का ऐलान कर दिया गया। इसके साथ ही मार्च में आम चुनाव करवाने का भी एलान हुआ। ऐसा करते हुए इंदिरा गांधी ने कहा कि लगभग 18 महीने पहले हमारा देश विनाश की कगार पर खड़ा था और आपातकाल इसलिए लगाया गया क्योंकि जनजीवन पटरी से उतर चुका था।

इंदिरा गांधी रेडियो से देश को संबोधित करते हुए आपातकाल को सही ठहरा रही थी। उसी वक्त देश की अलग अलग जेलों में बंद राजनैतिक कैदियों को भी रिहा करवाया जा रहा था। लेकिन, इन दो सालों में अलग अलग जेलों में बंद अलग अलग राजनीतिक दलों, विचारधाराओं से संबंध रखने वाले नेताओं ने एक बात तो तय कर दी थी कि बाहर आकर साथ मिलकर चुनाव लड़कर कांग्रेस और इंदिरा गांधी को सत्ता से हटाना ही प्राथमिकता होगी इसके लिए चाहे अपने हितों की कुर्बानी भी देनी पड़े। जेल से छूटते ही यह सभी नेता अपना वक्त जाया नहीं करना चाहते थे। 18 महीने जेल में बिताने के बाद 18 जनवरी को छूटते ही अगले दिन 19 जनवरी को मोरारजी देसाई ने दिल्ली स्थित अपने आवास पर जनसंघ, भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी और कांग्रेस ओ की बैठक बुलाई और साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया। यह फैसला इतनी जल्दी किया भले ही लगता है लेकिन जेल में बेतहाशा भीड़ के बीच 18 महीने गुजारने वाले सभी विपक्षी राजनीतिक दलों के नेता इस फैसले के लिए पूरी तरह से तैयार बैठे थे।

20 जनवरी को मोरारजी देसाई की अगुवाई में प्रेस को बताया गया कि चार दलों 1977 के मार्च में होने वाला लोकसभा चुनाव एक ही चुनाव चिन्ह और एक ही पार्टी के झंडे तले लड़ेंगे। तीन दिन बाद 23 जनवरी को जयप्रकाश नारायण की मौजूदगी में जनता पार्टी की विधिवत घोषणा हुई जिसमें इन सभी विपक्षी दलों ने शामिल होकर चुनाव लड़ना था। जनता पार्टी की घोषणा के दस दिन बाद इंदिरा गांधी को बड़ा झटका देते हुए केंद्रीय मंत्री बाबू जनजीवन राम ने भी केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देते हुए जनता पार्टी में शामिल होने का एलान किया। 6 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में जनता पार्टी के चुनावी अभियान का श्रीगणेश हुआ, 10 लाख की भीड़ इस रैली में शामिल हुई तो कांग्रेस के लिए यह साफ इशारा था कि उनकी नाव डूबने वाली है।

मीडिया ने उड़ाया मजाक
इन दिनों मीडिया पर आरोप लगता है कि वह सत्तारूढ़ दल भाजपा के सामने नतमस्तक है। मीडिया विपक्षी दलों के महागठबंधन का मजाक उड़ा रहा है, वह विपक्षी दलों पर सवाल उठा रहा है। ठीक ऐसा ही माहौल 1977 में भी था। 1977 के आम चुनाव में विपक्षी दल एक चिन्ह, एक झंडे तले चुनाव लड़ने को उतर गया था लेकिन इंदिरा संजय गांधी की सरकार की मीडिया पर सेंसरशिप लागू रही, लिहाजा मीडिया ने भी जनता पार्टी के खिलाफ खूब रिपोर्ट प्रकाशित की, 1977 के चुनाव से पहले ही कांग्रेस की बड़ी जीत की भविष्यवाणी की। मीडिया का बड़ा हिस्सा जनता पार्टी के खिलाफ था क्योंकि वह इंदिरा गांधी और संजय गांधी के गुस्से का कोपभाजन नहीं बनना चाहता था।

कांग्रेस ने बताया चूहों का समूह
जून में जब कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों की बैठक पटना में हुई थी तो भाजपा ने अपने ही अंदाज में इसे चूहों का समूह बताया। वहीं भाजपा नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस कर सवाल पूछा कि इस बारात का दूल्हा कौन होगा यानि प्रधानमंत्री कौन होगा। बिल्कुल ऐसा ही 1977 के चुनाव में हुआ था बस किरदार बदले हुए थे। जनता पार्टी कई विपक्षी दलों, नेताओं का संगठन था। मीडिया कांग्रेस की जीत की भविष्यवाणी कर चुकी थी। उत्साही कांग्रेस भी अपनी जीत को लेकर कुछ हद तक आश्वस्त थी। वह जनता पार्टी का उत्साह खत्म करना चाहती थी। उसने देश भर में सार्वजनिक जगहों, बस स्टैंड, सार्वजनिक शौचालयों, नोटिस बोर्ड, होर्डिंग में खूब पोस्टर छाप कर जनता पार्टी को ‘चूहों का समूह’ बताया। एक ओर पोस्टर भी प्रकाशित कर खूब छापवाया जिसमें लिखा था ‘ जब टिकटों को लेकर ही लड़ाई मची है तो प्रधानमंत्री कौन होगा’। हालांकि, जनता पार्टी ने इस पोस्टर का अपने तरीके से पोस्टर छाप कर जवाब दिया। जिसमें लिखा था कि ‘जब कांग्रेस वोट मांगने आए तो नसबंदी का प्रमाण पत्र मांग लेना।

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