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ब्रिटिश राज इन गढ़वाल: आज से हुई थी गुलामी की शुरूआत

-14 जुलाई 1815 को गढ़वाल का एक हिस्सा राजा को मिला और दूसरा अंग्रेजों ने हथिया लिया था।

Pen Point, Dehradun : करीब दो सदी पहले ठीक-ठीक कहें, तो 208 साल पहले, जगह गढ़वाल राज्य की राजधानी श्रीनगर का गुलाब बाग, जहां अंग्रेज अफसर विलियम फ्रेजर ने अपना कैम्प जमा रखा है। तारीख थी पहली श्रावण 1872 यानी अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 14 जुलाई 1815। वहीं पीछे से गढ़वाल नरेश सुदर्शन शाह भी श्रीनगर पहुंच गया है। उसका शिविर भी रास्ते में बागवान में है। दूसरे दिन राजा की मौजूदगी में ही फ्रेजर ने घोषणा कर दी कि रूद्रप्रयाग और अलकनंदा के पूर्वी तट का क्षेत्र और उत्तर की ओर मंदाकिनी के पूर्वी इलाके अब ब्रिटिश राज के अधीन हैं और यहां के लोग खुद को ब्रिटिश प्रजा समझें। इतना ही नहीं उसने साफ किया कि ब्रिटिश गढ़वाल के सभी परगनों के निवासी अपने व्यवसायों को पूर्ववत् आरम्भ करें। खेती में जुट जाएं और राजतंत्र की दासता को समाप्त कर दें।
उसने अलकनंदा वार के प्रदेश के सभी कमीण सयाणों को बुलाकर उन्हें बताया कि अलकनंद वार के प्रदेश को कुमायूं के साथ एक परगने के रूप में मिला दिया गया है। साथ ही कहा कि अब अपने को कुमाउं कमिश्नर एडवर्ड गार्डनर के अधीन समझें। इसके बाद उसने इसकी लिखित जानकारी अपने 21 जुलाई 1815 के पत्र के जरिए एडवर्ड गार्डनर को भी भेज दी इसके साथ कमीण-सयाणों की एक सूची भी भेजी जो परगना गर्खा, व्यक्तियों के नामों के नजरिए से बड़ी रोचक है। उसने एडवर्ड गार्डनर से निवेदन किया कि आप इस प्रदेश का प्रबंध जितना जरूरी संभाल सकें उतना ही लाभप्रद रहेगा। अब केवल इतना ही निश्चित करना रह गया है कि क्या ब्रिटिश परगने गढ़वाल की पश्चिमी सीमा भागीरथी के पूर्वी तट तक रखी जाएगी या नहीं उसने श्रीनगर के कुछ राज्याधिकरियों को भी जो इस प्रदेश से सुपरिचित थे, शासन सम्बन्धी आदेश प्राप्त करने के लिए गार्डनर के पस अल्मोड़ा भेजा।

विलयिम फ्रेजर ने जो सूची एडवर्ड गार्डनर के पास भेजी थी उसमें नागपुर परगने की कमीण सयाणों का तो उल्लेख है किन्तु भागीरथी उपत्यका के कमीण-सयाणों का नहीं है। इससे साफ है कि विलियम फ्रेजर ने मन्दाकिनी को ब्रिटिश गढ़वाल परगने की पश्चिमी सीमा बनाने का निश्चय कर लिया था।

सुदर्शन शाह को फैसले की कच्ची सनद
24 जुलाई 1815 के दिन विलियम फ्रेजर और सुदर्षन शाह ने दिल्ली के लिए प्रस्थान किया। इससे पहले मेजर बालडौक के साथ 5 अन्य अंग्रेज अफसरों और 500 सुरक्षा सैनिकों को श्रीनगर की सुरक्षा का भार सौंपा गया। स्ुाुदर्शन शाह दिसम्बर 1815 में बड़े दिन तक दिल्ली में ही रहा। उसको सनद देने से पहले विलियम फ्रेजर से गढ़वाल राज्य के बारे में साधनों आदि के बारे में विस्तृत जानकारियां मांगी गई थी। उसेने अपने 16 अक्टूबर 1815 के पत्र के साथ वांछित सूचनाएं प्रेषित की थी।
उन पर विचार करके गवर्नर जनरल की परिषद ने 17 नवम्बर 1815 के प्रस्ताव के अनसार भूवपूर्व गढ़राज्य के भाग देहरादून को स्थाई ब्रिटिश राज्य में मिलाने तथा से सहारनपुर जिले के साथ जोड़ने का निश्चय किया। इसी सम्बंध में जौन आदम ने उसी मास नवम्बर 1815 में विलियम फ्रेजर के लिए जरूरी निर्देष भेजे। जिसमें दून उपत्यका और रवांई परगने को ब्रिटिश राज में शामिल करने को कहा गया था।

स्रोत- टिहरी गढ़वाल राज्य का इतिहास, डॉ.शिवप्रसाद डबराल

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