पुरोला : पालिका बनने के बाद गुम न हो जाए लाल धान का कटोरा
– मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नगर पंचायत पुरोला को नगर पालिका का दर्जा देने की है घोषणा, लाल चावल के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है पुरोला क्षेत्र
Pen Point, Dehradun : बीते मंगलवार को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पुरोला नगर पंचायत को नगर पालिका का दर्जा देने की घोषणा की। मुख्यमंत्री बड़कोट में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे थे। जहां उन्होंने आगामी नगर निकाय चुनाव से पहले पुरोला को नगर पालिका का दर्जा देने की बात कही। उल्लेखनीय है कि पुरोला नगर लाल धान का कटोरा कहे जाने वाले रामा सिरांई और कमल सिरांई के बीचों बीच स्थित है। ऐसे में नगर पालिका पुरोला अगर विस्तार लेती है तो लाल धान की खेती के सिमटने का खतरा पैदा हो जाएगा।
समुद्रतल से करीब डेढ़ हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित पुरोला को एक दशक पहले नगर पंचायत का दर्जा मिला था। पुरोला कृषि उत्पादन में उत्तरकाशी जनपद में जहां अव्वल स्थान रखता है तो वहीं पर्यटन के लिए प्रसिद्ध हर की दून और केदारकांठा ट्रैक का भी द्वार कहलाया जाता है।
पुरोला नगर पंचायत के बीचों बीच गुजरने वाली कमल नदी के दोनों फैली कृषि भूमि राज्य के प्रसिद्ध लाल चावल उत्पादन वाला क्षेत्र है। साल 2023 में लाल चावल की बदौलत उत्तरकाशी जनपद एक जनपद एक उत्पाद श्रेणी में पूरे देश भर में अव्वल रहा था। पुरोला में पुरोला गांव समेत गुंदियाट गांव, कंडियालगांव, मोल्टाड़ी, कुमारकोट, श्रीकोट, खलाड़ी, नेत्री, स्वील, चंदेली, डैरिका, कुरड़ा, देवढुंग, कुमोला, कोटी में करीब साढ़े चार हजार टन लाल चावल का उत्पादन होता है। रामा सिंराई और कमल सिंराई के धान के सेरे लाल धान के कटोरे के रूप में भी विख्यात है। लेकिन, अब जैसे की आशंका जताई जा रही है कि नगर पालिका क्षेत्र का दर्जा मिलने से शहर के विस्तार और अन्य गांवों को भी पालिका क्षेत्र में शामिल करने के बाद लाल चावल के उत्पादन के लिए प्रख्यात इस कृषि भूमि पर भी खतरा मंडराने लगेगा। अब तक नगर पंचायत के सीमित क्षेत्र में शहर का विस्तार तो नहीं हो सका लेकिन पालिका क्षेत्र में अन्य गांवों को भी जोड़े जाने का प्रस्ताव है और और यह गांव ही लाल चावल के सबसे बड़े उत्पादक है।
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक पुरोला नगर पंचायत क्षेत्र में आठ हजार की आबादी निवासरत थी लेकिन निर्वतमान अध्यक्ष की माने तो वर्तमान में करीब 30 हजार से अधिक लोग पुरोला में निवासरत है जिसमें से बड़ी संख्या ऐसी आबादी की है जो शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के लिए नगर में निवासरत तो लेकिन मतदाता के रूप में अपने मूल गांव की मतदाता सूची में ही दर्ज हैं। हरकीदून व केदारकांठा पर्यटन केंद्रों का प्रमुख द्वार होने के चलते पुरोला में साल भर ही देश विदेश से साहसिक पर्यटन के शौकीनों की चहलकदमी लगी रहती है।
वहीं, नगर पालिका का दर्जा मिलने के बाद नगर पंचायत क्षेत्र में बुनियादी ढांचागत सुविधाओं के विस्तार को लेकर भी लोग आश्वस्त हैं। निर्वतमान नगर पंचायत अध्यक्ष हरिमोहन नेगी कहते हैं कि पुरोला को नगर पालिका का दर्जा देने की मांग पुरानी थी और नगर पालिका का दर्जा मिलने के बाद नगर क्षेत्र में सुविधाओं को विस्तार मिल सकेगा, ढांचागत निर्माण हो सकेगा और लोगों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया हो सकेंगी। वह कहते हैं कि पुरोला में आबादी का दबाव दिनों दिन बड़ता जा रहा है ऐसे में जरूरी है कि इसे विस्तार मिले लेकिन इसकी कीमत लाल चावल के खेतों को चुकानी पड़ेगी पर मौजूदा हाल में यह जरूरी हो गया है।
वरिष्ठ पत्रकार और स्थानीय निवासी राधाकृष्ण उनियाल बताते हैं कि पुरोला में रिहायशी जमीन कम उपलब्ध है जबकि यह इलाका कृषि उत्पादन के लिए अव्वल है, सीजनल सब्जियों के साथ ही लाल चावल के उत्पादन में यह क्षेत्र पूरे प्रदेश में अव्वल है। वह बताते हैं कि नगर पालिका का दर्जा मिलने के बाद जो कृषि योग्य भूमि है वहां पर भवन निर्माण में तेजी आएगी तो लाल चावल के वजूद पर भी खतरा मंडराने लगेगा।
बीते साल रहा चर्चाओं में
पुरोला बीते साल तब चर्चाओं में आया था जब जून महीने में यहां एक मुस्लिम व्यापारी पर स्थानीय हिंदू नाबालिग युवती को बहला फुसलाकर लेकर जाने का आरोप लगा था उसके बाद यहां वर्षों से व्यापार कर रहे मुस्लिम व्यापारियों को पुरोला छोड़ने की चेतावनी दी गई थी जिसके बाद यह पहाड़ी कस्बा देश दुनिया की खबरों में छा गया था। कथित लव जिहाद और मुस्लिमों के सामूहिक बहिष्कार को लेकर पूरे देश व दुनिया की मीडिया यहां पहुंची थी हालांकि बाद में स्थानीय निवासियों की ओर से इस मामले को बातचीत के बाद सुलझा लिया था और अब पुरोला में मुस्लिम व्यवसायी स्थानीय लोगों के साथ शांतिपूर्ण ढंग से अपना व्यवसाय संचालित कर रहे हैं। बीते साल के आखिरी महीनों में राज्य सरकार ने नगर पंचायत के अध्यक्ष पर अनियमितताओं का आरोप लगाकर उन्हें बर्खास्त कर दिया था। हालांकि, इस दौरान स्थानीय निवासी बड़ी संख्या में नगर पंचायत अध्यक्ष के समर्थन में आगे आए थे।
राज परिवार की भी पसंदीदा जगह
टिहरी राजशाही के दौरान भी टिहरी राजपरिवार को भी यह हिस्सा खूब भाता था। राजशाही के दौर से ही कृषि उत्पादन में अव्वल यह क्षेत्र राजकोष में कर का बड़ा हिस्सा जमा करता था तो राजपरिवार से जुड़े इलाके में अपना आशियाना बनाकर फुर्सत के पल गुजारा करते थे और जंगलों में आखेट भी किया करते थे।